संपादकीय

रैगिंग एक सामाजिक अपराध

रैगिंग एक ऐसा अमानवीय व्यवहार है जो शब्दों या लिखित में व्यक्त न किया जाये जिससे किसी दूसरे विद्यार्थी को परेशान करने, उसके साथ अभद्रता करने या ऐसा करने से वह शारीरिक या मानसिक रूप से कुंठा ग्रसित हो जाये

Aakash Chopra

रैगिंग एक ऐसा अमानवीय व्यवहार है जो शब्दों या लिखित में व्यक्त न किया जाये जिससे किसी दूसरे विद्यार्थी को परेशान करने, उसके साथ अभद्रता करने या ऐसा करने से वह शारीरिक या मानसिक रूप से कुंठा ग्रसित हो जाये और एक भय का वातावरण निर्मित हो। किसी विद्यार्थी को ऐसा कृत्य करने के लिये प्रेरित करना, विवश करना जिसमें लज्जा महसूस होती है और ऐसी गतिविधियों से जूनियर छात्रों से शैक्षणिक गतिवितियों में बाधा उत्पन्न होती है। ऐसे कृत्य जिनमें पैसों की मांग करना या पैसों को खर्च करने के लिये बाध्य करना, यौन उत्पीड़न करना, नग्न करना जिससे कि जूनियर विद्यार्थियों के शारीरिक व मानसिक सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो, ऐसे सभी कृत्य रैगिंग की श्रेणी में आते हैं।

रैगिंग विद्यार्थियों द्वारा विद्यार्थियों के लिये उत्पत्र की गयी एक ऐसी समस्या है जिसके परिणाम स्वरूप युवा अवस्था में ही विद्यार्थी का भविष्य खतरे में पड़ जाता है। ऐसे अमानवीय व्यवहार को समाप्त किया जाना आवश्यक है। रैगिंग जैसे अमानवीय व्यवहार को समाप्त करने और आवश्यक वैद्यानिक कार्यवाही के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश, राघवन समिति की अनुशंसाएं तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियम लागू किये गये हैं।

तमाम नियमों और कानूनों के बावजूद रैगिंग की घटनाएं बंद नहीं हो रहीं। गुजरात के पाटन जिले के एक मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस के 18 वर्षीय छात्र की रैगिंग के दौरान मौत हो जाने से एक बार फिर रैगिंग को लेकर गम्भीर सवाल पैदा हो गए हैं। सीनियर छात्रों ने मृतक छात्र को तीन घंटे से अधिक समय तक खड़े रहने को मजबूर किया, जिसके चलते वह बेहोश हो गया और उसकी मौत हो गई। कुछ अन्य संस्थानों से भी रैगिंग की खबरें आ रही हैं। रैगिंग के नाम पर कई बार ऐसी अमानवीय हरकतें होती हैं कि अपनी दुनिया में कभी ऐसी कल्पना नहीं कर पाने वाले बच्चे खुद ही जान दे देते हैं। सवाल है कि आखिर ऐसा कब तक होता रहेगा। सरकार और कानून के हस्तक्षेप की जरूरत वहीं होती है जहां समाज नाकाम हो जाता है। एक समाज के रूप में अविभावक अपने बच्चों को यह बताने, समझाने में विफल हाे चुके हैं कि जीवन कितना अनमोल होता है। जिस छात्र की मौत हुई उनका परिवार तो तमाम उम्र इस आघात को लेकर गमगीन रहेगा। साथ ही जिन छात्रों को आरोपी बनाया गया है उनका भविष्य भी खराब हो गया है।

रैगिंग की वजह से दुनिया में पहली मौत 1873 में हुई थी। रैगिंग के शिकार छात्र की न्यूयॉर्क की कॉरनेल यूनिवर्सिटी की इमारत से गिरने पर मौत हो गई थी। सेना में भी प्रथम विश्वयुद्ध के बाद रैगिंग बेहद खतरनाक हो गई। जब युद्ध से वापस लौटे सैनिकों ने कॉलेजों में प्रवेश लेना शुरू किया तो उन्होंने रैगिंग की नई तकनीक हैजिंग को ईजाद किया। इस तरीके को उन्होंने मिलिट्री कैंपों में सीखा था। सैनिकों के इस नए नियम से कॉलेज के आम छात्र वाकिफ नहीं थे जिस वजह से उनकी और सैनिकों की झड़पें होने लगीं। इसी के चलते 20वीं सदी के आते-आते पश्चिमी देशों में रैगिंग से जुड़ी हिंसक घटनाएं काफी बढ़ गई।

भारत में रैगिंग की शुरूआत आजादी से पहले ही हो गई थी। इसकी शुरूआत अंग्रेजी मीडियम की शिक्षा से हुई। हालांकि भारत में रैगिंग का अलग तरीका था जिसमें सीनियर और जूनियर के बीच दोस्ती बढ़ाने के लिए हल्की-फुल्की रैगिंग की जाती थी। इसमें शालीनता का परिचय दिया जाता था लेकिन 90 के दशक में भारत में रैगिंग ने विकराल रूप ले लिया। इसके बाद 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने पूरे भारत में रैगिंग पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके साथ ही यूजीसी ने भी रैगिंग के खिलाफ सख्त नियम बनाए हैं।

इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि भारत में रैगिंग शैक्षिक प्राधिकरण की नाक तले ही फली-फूली है। उन्होंने इसका कारण यह बताया कि अधिकांश मामलों में पीड़ित छात्र स्वयं पहल नहीं करते और दोषी छात्रों के विरुद्ध मामला दर्ज कराने का साहस नहीं जुटा पाते। जो छात्र पहले ही शर्मिंदगी की पीड़ा झेल चुके हैं, उनसे शिकायत दर्ज कराकर अपनी पीड़ा को और बढ़ाने की आशा क्यों की जाती है। आश्चर्य की बात है कि रैगिंग पर प्रतिबंध लगाने को लेकर एक निजी सदस्य का बिल 2005 से संसद में लंबित पड़ा है।

रैगिंग को जड़ से तभी समाप्त किया जा सकता है, जब शैक्षिक संस्थान, सरकारी प्राधिकरण, मीडिया और सिविल सोसायटी मिलकर काम करें। जिला, राज्य और केंद्रीय स्तर पर रैगिंग-विरोधी दस्तों' और समितियों की स्थापना करते हुए इस बुराई पर निरंतर दृष्टि रखी जा सकती है। इस संबंध में न्यायालय के दिशा-निर्देश सराहनीय हैं। इसने दोषियों के लिए समुचित दंड के प्रावधान का सुझाव दिया है। इसके अनुसार इस संबंध में बिना किसी विलंब के एफ.आई.आर. दर्ज करानी चाहिए। दोषी विद्यार्थियों को अपनी शिक्षा जारी रखने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए अर्थात उन्हें संस्थान से निकाल देना चाहिए और किसी भी अन्य संस्थान में दाखिला लेने के लिए अयोग्य घोषित कर देना चाहिए। रैगिंग को रोकना संस्थानों का कर्त्तव्य है। एंटी रैगिंग नीति का उद्देश्य रैगिंग को लेकर जागरूकता पैदा करना है।