संपादकीय

राहुल का रायबरेली गणित

Shera Rajput

राहुल गांधी अंततः यूपी में परिवार के गढ़ रहे रायबरेली से लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए सहमत हो गए हैं। जाहिर तौर पर अत्यधिक अनिच्छुक राहुल को रायबरेली से भी चुनाव लड़ने को राजी करने के लिए उनकी मां सोनिया गांधी और बहन प्रियंका गांधी वाड्रा सहित पार्टी के कई लोगों को मशक्कत करनी पड़ी, हालांकि वायनाड से उनका जीतना लगभग तय हो सकता है। केरल के इस निर्वाचन क्षेत्र में लगभग पचास प्रतिशत मुस्लिम और ईसाई हैं। अमेठी और रायबरेली से कांग्रेस प्रत्याशी कौन होंगे, इसको लेकर कई दिनों से अटकलें चल रही थीं। ये वो दो सीटें हैं, जहां से कई लोकसभा चुनावों में जीतकर गांधी परिवार के सदस्य संसद पहुंचे हैं। लोगों की सबसे ज्यादा रुचि यह जानने में थी कि राहुल और प्रियंका दोनों सीटों से चुनाव लड़ेंगे या नहीं, खासकर तब जब पार्टी ने गठबंधन में वरिष्ठ भागीदार समाजवादी पार्टी द्वारा आवंटित अन्य निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्याशियों के नामों की घोषणा करते समय इन दो सीटों से अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की थी।
20 मई को पांचवें चरण के मतदान के लिए नामांकन दाखिल करने के अंतिम दिन शुक्रवार 3 मई से एक दिन पहले शाम को समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव द्वारा व्यक्तिगत रूप से यह आश्वासन दिए जाने के बाद ही राहुल नरम हुए कि उनकी पार्टी आपको जिताने केे लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेगी। बीजेपी पहले ही इस सीट से योगी सरकार में मंत्री दिनेश प्रताप सिंह को मैदान में उतार चुकी है।
2019 के लोकसभा चुनाव में वे सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़े थे और उनकी जीत के अंतर को काफी कम कर दिया था, हालांकि फिर भी सोनिया 17 प्रतिशत के ठोस अंतर से जीत गई थीं। संयोग से सोनिया पिछली बार यूपी से जीतने वाली अकेली कांग्रेस नेता थीं। अमेठी लोकसभा सीट की बात करें तो कांग्रेस ने यहां से अपने वफादार किशोरी लाल शर्मा को मैदान में उतारा है। यह अलग बात है कि हर दृष्टि से देखने से लगता है कि मोदी सरकार में मंत्री स्मृति ईरानी के खिलाफ उनके जीतने की संभावना बहुत कम है। स्मृति ईरानी ने 2019 के चुनाव में राहुल गांधी को इस सीट से हराया था। स्मृति एक बार फिर इस प्रतिष्ठित सीट को बरकरार रखने के लिए लड़ रही हैं। दरअसल, उनसे अपने निर्वाचन क्षेत्र अमेठी के साथ ही पड़ोसी निर्वाचन क्षेत्र रायबरेली में भी प्रचार करने की उम्मीद है।
इससे पहले अमेठी और रायबरेली के मतदाताओं को यह उम्मीद थी कि गांधी परिवार नामांकन दाखिल करने के दिन दो निर्वाचन क्षेत्रों का सबसे अधिक आराम से दौरा करेगा। चूंकि गांधी परिवार मैदान में है और अब उन्हें आम प्रतियोगियों की तरह हर वोट के लिए काम करना पड़ता है, इसलिए वे मजबूरन कम दूरदर्शी माने जाते हैं। चुनाव एक महान शिक्षक हैं, ये आसमान में नाक रखने वाले लोगों को धरती पर आने और मतदाताओं के साथ बराबरी करने के लिए मजबूर करते हैं लेकिन गांधी परिवार अब हर वोट के लिए काम करने के लिए बाध्य है।
बेशक, उनके लिए केरल और यूपी की सीट में से किसी एक को चुनना राजनीतिक समझ है, हालांकि यूपी ऐसा राज्य है जो लोकसभा में 80 सदस्य भेजता है। अगर कांग्रेस को यूपी में पुनर्जीवित करना है तो वहां से जीत की स्थिति में रायबरेली को बरकरार रखना जरूरी है। यदि सेनापति स्वयं मुख्य युद्ध से भाग जाता है तो पैदल सैनिकों के लिए डटे रहना और युद्ध जीतना कठिन होता है। अब, चाहे 'इंडि' ब्लॉक में प्रधानमंत्री पद के कई दावेदार इसे पसंद करें या नहीं लेकिन इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि राहुल गांधी ने विपक्ष के अग्रणी नेता के रूप में अपनी स्थिति मजबूत की है।
ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल या स्टालिन जैसे अन्य लोगों की अपने राज्यों में मजबूत स्थिति है लेकिन पूरे देश में शायद ही किसी संगठन की उपस्थिति या समर्थक हो। दूसरी ओर, कांग्रेस सौ वर्ष से भी अधिक पुरानी पार्टी होने के नाते हर राज्य में उसका प्रभाव है, भले ही उसके पास राज्य और केंद्रीय स्तर पर नेताओं की कमी हो।

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