भारत और अमेरिका के संबंध कभी बहुत कड़वे रहे। पाकिस्तान से युद्धों के समय भी अमेरिका पाकिस्तान के पाले में खड़ा दिखाई देता रहा है। शीतयुद्ध के दौरान भारत-अमेरिका मधुर संबंधों की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। सोवियत संघ के विखंडन के बाद एक ध्रुवीय विश्व में दोनों देशों के रिश्ते आगे बढ़ने शुरू हुए। अब स्थिति यह है कि पिछले दो दशकों में दोनों देशों के रिश्तों ने कई लम्बी छलांगे लगाई हैं। अब यह संबंध व्यापक सहयोग में तब्दील हो चुके हैं। शीतयुद्ध युग में भारत के परमाणु कार्यक्रम पर दोनों देशों में मतभेद बने रहे थे लेकिन अब दोनों देश सकारात्मक पथ पर हैं। रक्षा सुरक्षा सामरिक सहयोग ने दोनों देशों के संबंधों को मजबूती प्रदान की है। वैसे तो कभी-कभार दोनों देशों के बीच मतभेदों के मसले उठते रहे हैं। उसका सबसे बड़ा कारण भारत-रूस मैत्री ही रहा है। मतभेदों के बावजूद अमेरिका अब भारत को अपना रणनीतिक साझीदार मानता है। भारत से मैत्री करना अमेरिका की विवशता भी है क्योंकि भारत एक बहुत बड़ा बाजार है। दूसरा अहम पहलू यह है िक दुनिया में भारत की धमक िदन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस समय पोलैंड और यूक्रेन की यात्रा पर हैं तो दूसरी तरफ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अमेरिका के लिए उड़ान भर चुके हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हाल ही में रूस की यात्रा की थी। उसके बाद से ही राजनयिक हलचलें देखने को मिली थीं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अमेरिका रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन से बातचीत करेंगे। राजनाथ सिंह अमेरिका में राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों के लिए राष्ट्रपति के सहायक जैक सुलिवान से भी मुलाकात करेंगे। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के वाशिंगटन दौरे का मकसद दोनों देशों के बीच रणनीतिक और सैन्य संबंधों को मजबूत करना और तेजस विमानों के लिए अमेरिकी जेट इंजन की सप्लाई में हो रही देरी को दूर करना है। मुख्य बातचीत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग, संयुक्त सैन्य अभ्यास और तकनीकी सहयोग तथा संयुक्त उत्पादन समझौतों को पूरा करने पर केन्द्रित रहेगी। इनमें से कुछ प्रमुख समझौते आर्म्ड एमक्यू-9बी ड्रोन खरीदना और जीई-एफ 414 जेट इंजन का संयुक्त उत्पादन शुरू करना शामिल है। भारत जल्द ही बंगाल की खाड़ी में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ प्रमुख-नौसैनिक अभ्यास, मालाबार की मेजबानी करने जा रहा है। यह सब दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती आक्रामकता और हिंद महासागर क्षेत्र में उसके बढ़ते दखल के बीच हो रहा है।
भारतीय नौसेना के लिए हॉक आई 360 का अनुबंध काफी अहम है। दोनों देश जैवलिन एंटी टैंक गाइडेड िमसाइल और स्ट्राकर आर्म्ड व्हीकल जैसे प्रमुख रक्षा प्लेटफार्मों के सह उत्पादन को लेकर भी बातचीत करेंगे। भारत और अमेरिका ने रक्षा तकनीक सहयोग को बढ़ाने के िलए बहुत प्रयास किए हैं, इसके िलए लगातार वार्ताएं जारी रहीं।
अब भारत की कई रक्षा और अंतरिक्ष क्षेत्र की कंपनियां डिज़ाइन तैयार करने, कल-पुर्जों के निर्माण और उनकी असेंबली और अपनी वैश्विक ज़रूरतों के मुताबिक़ सिस्टम से जोड़ने के मामले में अमेरिका की बड़ी कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रही हैं। एक दशक पहले की तुलना में आज दोनों देशों के इको सिस्टम तालमेल के लिए कहीं बेहतर स्थिति में है ताकि वो इन व्यवस्थाओं को औद्योगिक सहयोग के नए स्तर तक ले जा सकें। रक्षा उद्योग में सहयोग की कार्य-योजना अपने आप में कम अवधि के दिशा-निर्देश के इरादे से बनाई गई है और इसमें बहुत जल्द संशोधन का समय आने वाला है। इसके साथ-साथ 2015 के फ्रेमवर्क फॉर यूएस इंडिया डिफेंस रिलेशनशिप में भी अपडेट किए जाने का प्रस्ताव है। हालांकि रूप-रेखाओं और परिकल्पनाओं से आगे बढ़कर कार्यक्रम और परियोजनाएं शुरू करने की दिशा में बढ़ने की ज़रूरत है।
ऐसे सहयोगात्मक कार्यों की राह में कई चुनौतियां भी आती रही हैं। कई बार अमेरिका अपना रवैया लचीला बनाने को तैयार नहीं होता तब दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी जोर आजमाइश करते हैं। मौजूदा वैश्विक चुनौतियों आैर नई उभरती चुनौतियों के बीच भारत को अपने हित भी सर्वोपरि रखने होते हैं। अमेरिका का भारत पर दबाव रहा है कि वह रक्षा क्षेत्र में रूस पर अपनी निर्भरता कम करें। भारी अमेरिकी दबाव के भारत की विदेश एवं रक्षा नीतियां स्वतंत्र हैं। भारत ने कोई दबाव न झेलते हुए रूस से एस 400 डिफैंस सिस्टम खरीदा है। भारत अमेरिका को इस बात का बार-बार एहसास दिलाता है कि अमेिरका से संबंध रूस से संबंधों की एवज में नहीं हैं। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह काफी अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं। वह संबंधों की संवेदनशीतला को बहुत बारीकी से समझते हैं। उनका लगातार प्रयास रहा है कि भारत का रक्षा तंत्र इतना मजबूत हो कि कोई भी दुश्मन उसकी तरफ आंख उठाकर न देखे। उनके नेतृत्व में ही रक्षा क्षेेत्र में भारत लगातार आत्मनिर्भरता के पथ पर अग्रसर है। रूस-यूक्रेन युद्ध, बंगलादेश में अस्थिरता के बीच राजनाथ सिंह की अमेरिका यात्रा काफी अहम है। क्योंकि हिन्द प्रशांत और राष्ट्रीय रक्षा रणनीति की बात आती है तो भारत एक महत्वपूर्ण भागीदार है। हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन की चुनौतियां भारत के साथ-साथ अमेरिका के लिए भी चिंता का सबब है।