दुनिया के सभी देश पृथ्वी के बढ़ते तापमान को लेकर चिंतित हैं और इस कोशिश में जुटे हैं कि ऊर्जा की ऐसी तकनीक विकसित की जाए जिससे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम हो सके। इन गैसों के उत्सर्जन के लिए काफ़ी हद तक मानवीय गतिविधियों को ज़िम्मेदार माना जाता है। जीवाश्म ईंधन का प्रयोग, इमारतों का निर्माण, औद्योगिक विकास, पशुपालन, जंगलों की कटाई जैसी गतिविधियों ने ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि की है और अगर ये सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो पृथ्वी का बहुत सा हिस्सा रहने लायक़ नहीं बचेगा। स्थिति को देखते हुए भारत को भी ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत ढूंढने होंगे। इस िदशा में केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने रणनीतिक पहल कर दी है। ऊर्जा के वो प्राकृतिक स्रोत जिनका क्षय नहीं होता या जिनका नवीकरण होता रहता है और जो प्रदूषणकारी नहीं हैं उन्हें अक्षय ऊर्जा के स्रोत कहा जाता है। जैसे सूर्य, जल, पवन, ज्वार-भाटा, भूताप आदि।
भारत न केवल पांचवीं सबसे बड़ी बल्कि दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था भी है। चूंकि देश के पास अपने तेल और गैस संसाधन नहीं हैं, इसलिए भारत के तेज विकास के लिए जरूरी है कि सौर, पवन, परमाणु और जल विद्युत के बल पर 2047 तक विकसित देश बनाने की दिशा में आगे बढ़ा जाए। देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करके ही भारत अक्षय ऊर्जा में वैश्विक नेता बन सकता है। इसके लिए सरकार पूरी प्रतिबद्धता के साथ लगी हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधीनगर में चौथे ग्लोबल री-इन्वेस्ट रिन्यूएबल एनर्जी इन्वेस्टर्स मीट का उद्घाटन किया।
उन्होंने कहा कि भारत की विविधता, पैमाने, क्षमता, संभावना और प्रदर्शन सभी अद्वितीय हैं। आयोजन के मिशन से साफ है कि भारत 2030 तक अपनी अक्षय ऊर्जा क्षमता का उल्लेखनीय विस्तार करने के रणनीतिक लक्ष्य की ओर तेजी से बढ़ रहा है। सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल के पहले 100 दिनों में देश की तेज प्रगति के लिए हर क्षेत्र और कारक पर ध्यान देने की कोशिश की है। भारत में ऐसे 17 शहरों की पहचान हुई है जिन्हें सोलर सिटी के तौर पर विकसित किया जाएगा। कृषि क्षेत्र में किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सौर उर्जा उत्पादन का माध्यम बना रहे हैं। अक्षय ऊर्जा के बढ़ते महत्व के साथ-साथ, महिलाएं इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। हाल ही के वर्षों में भारत के अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में महिलाओं द्वारा अग्रणी स्थान ग्रहण करने और बढ़त हासिल करने की प्रवृत्ति बढ़ी है। अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में कुछ अन्य महिला वैज्ञानिक डॉ. पूर्णिमा जलिहाल (एनआईओटी), डॉ. गीता बालाकृष्णन (जैन विश्वविद्यालय), डॉ. वसंता ठाकुर (एमएनआरई), सुश्री प्रिया (एमएनआरई) भारत में अक्षय ऊर्जा के कार्यान्वयन के लिए कार्य कर रही हैं।
यद्यपि भारत की महिलाएं कुकिंग, ड्राईंग, स्पेस हीटिंग आदि पारंपरिक विधियों का उपयोग करने की चुनौतियों से निपट रही हैं। तथापि वे बेहतर कुकिंग प्रणालियों, सोलर कुकर, बायोगैस का उपयोग कर अपने नियमित घरेलू कार्यों में अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों और सोलर ड्रायर, सोलर लैंप आदि जैसे जीविका उपार्जन के उत्पादों का उपयोग करने का प्रयास कर रही हैं।
कुल मिलाकर एक ओर जहां भारत में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में महिलाओं के सामने अभी भी कई चुनौतियां हैं वहीं भविष्य के लिए बहुत आशा और संभावनाएं भी हैं। बड़ी संख्या में महिलाओं द्वारा इस क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाने और योगदान करने के साथ ही भारत आने वाले समय में अक्षय ऊर्जा में अग्रणी बनने की बेहतर स्थिति में है।
स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता में वैश्विक रूप से चौथे सबसे बड़े देश के रूप में भारत का लक्ष्य वैश्विक ऊर्जा संक्रमण में अपने नेतृत्व को और मजबूत करना है। सरकार ने शुरुआती 100 दिनों में ग्रीन एनर्जी से जुड़े कई फैसले लिए। भारत 31 हजार मेगावाट हाइड्रोपावर जनरेट करने के लिए भी काम कर रहा है। इसके लिए 12 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा स्वीकृत किए जा चुके हैं। रेलवे नेटवर्क बढ़ाने की दिशा में भी पिछले 100 दिनों में 15 से ज्यादा सेमी हाईस्पीड वंदे भारत एक्सप्रेस लांच की गई। ऐसा रेलवे नेटवर्क को विस्तार देने के लिए किया है।
केन्द्र सरकार ने एक बड़ा कदम मौसम मिशन को लेकर शुरू किया। इसी हफ्ते की शुरूआत में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 'मिशन मौसम' के लिए 2,000 करोड़ रुपये की मंजूरी दी। इसे मुख्य रूप से भारत मौसम विज्ञान विभाग, राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र और भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) जैसे संगठनों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों को उन्नत (अपग्रेड) करने में खर्च किया जाएगा। ये वे संगठन हैं जो कई टाइम स्केल में भारत की मौसम और जलवायु पूर्वानुमान प्रणाली की रीढ़ बने हुए हैं। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (एमओईएस) को उम्मीद है कि 2026 तक इस मिशन के पहले चरण में वह 60 मौसम रडार, 15 वायु प्रोफाइलर और 15 रेडियोसॉन्डेस खरीदने और स्थापित करने में कामयाब हो पाएगा।
मौसम के पूर्वानुमानों को ज्यादा सटीक बनाना और इसमें लगातार सुधार करना एक ऐसा सिलसिला है जो कभी खत्म नहीं होगा लेकिन 'मिशन मौसम' इस दिशा में और कई तरह की संभावनाओं के द्वार खोलना चाहता है। मौसम के काबू में रहने के बजाय अब मानव जाति मौसम को अपने काबू में रखने की कोशिश में जुट गई है। इस मिशन के प्रस्तावों में से एक प्रस्ताव आईआईटीएम का है, जिसमें 'क्लाउड-सिमुलेशन चैंबर' स्थापित करने की बात कही गई है। यह बारिश वाले बादलों का मॉडल तैयार करने में मदद करेगा। इसके बाद वे
मौसम में किए जाने वाले अलग-अलग हस्तक्षेपों का परीक्षण करेंगे, जैसे कि बादलों की सीडिंग और उनसे होने वाली बारिश को नियंत्रित करने के लिए उनमें बदलाव करना। आकाशीय बिजली को नियंत्रित करने की भी योजना है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में प्रकृति जनित मौतों के मामले में आकाशीय बिजली सबसे आगे है, बाढ़ और
भूस्खलन से भी आगे। हालांकि इस हालत के पीछे कई सामाजिक-आर्थिक कारक हैं लेकिन मौसम वैज्ञानियों को उम्मीद है कि एक दिन वे बादलों की विद्युत विशेषताओं को बदलने में कामायाबी हासिल कर लेंगे ताकि आसमान से जमीन पर गिरने वाली बिजली के घातक झटकों की संख्या कम हो सके।