संपादकीय

भीषण गर्मी और जल संकट

Desk News

वैसे तो भीषण गर्मी का असर दुनियाभर के कई देशों में देखने को मिल रहा है। जलवायु परिवर्तन की बदलती स्थितियों से भारत भी अछूता नहीं है। मौसम वैज्ञानिकों ने पहले ही यह भविष्यवाणी कर दी थी कि इस वर्ष दुनिया की लगभग 80 प्रतिशत आबादी को असामान्य गर्मी का सामना करना पड़ेगा। राजधानी दिल्ली में भले ही गुरुवार की सुबह बारिश की बूंदों ने राहत पहुंचाई है लेकिन पिछले 48 घंटों में दिल्ली आैर एनसीआर में 34 लोगों की मौत दुर्भाग्यपूर्ण तो है ही साथ ही चिंता का सबब भी है। 300 से अधिक हीट स्ट्रोक के मरीज अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती हैं। नोएडा में अलग-अलग जगहों पर एक ही दिन में 14 लोगों के शव बरामद होने से हीट स्ट्रोक का खौफ पैदा हो चुका है। चिंता की बात यह भी है कि दिल्ली एनसीआर में दिन आैर रात के तापमान का अंतर बहुत कम रह गया है। वर्षों के रिकार्ड टूट गए हैं। समूचे उत्तर भारत में बीते 40 दिन से पारा 40 डिग्री के ऊपर ही रहा है। घनी आबादी वाले अधिकतर क्षेत्रों में घर गर्म भट्ठी बन गए हैं। गर्मी भी ऐसी कि खड़े-खड़े आदमी पिघल जाए। इस बार गर्मी के प्रकोप ने न तो पहाड़ी राज्यों की वादियों को बख्शा और न ही ठंडे माने जाने वाले पर्यटन स्थलों को। जम्मू और दिल्ली के तापमान में कोई फर्क नहीं रहा।

पश्चिम उत्तर प्रदेश भी बुंदेलखंड की तरह सूखे का शिकार हो गया लगता है। दिल्ली की विडम्बना यह है कि न तो यहां के लोगों को भरपूर पानी मिल रहा है और छत पर रखी पानी की टंकियां गीजर बन चुकी हैं। 24 घंटे इनमें से उबला पानी आता है। जिन इलाकों में टैंकरों से पानी उपलब्ध कराया जाता है वहां के लोगों और बच्चों की पानी के लिए संघर्ष करते दुखद तस्वीरें न्यूज चैनलों पर सामने आती हैं। दिल्ली में जल संकट को लेकर राजनीतिक दल केवल सियासत करते आ रहे हैं। पानी को लेकर ​िदल्ली, हरियाणा, यूपी, हिमाचल, राजस्थान के बीच 1994 में एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर हुए थे। इस बात को तीन दशक बीत चुके हैं और इस दौरान दिल्ली की आबादी काफी बढ़ चुकी है और उसकी जरूरतें भी बढ़ी हैं। दिल्ली ने पड़ोसी राज्य हरियाणा से मानवता के आधार पर अधिक पानी देने का अनुरोध किया है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा हुआ है। फिलहाल दिल्ली की जरूरत यह है कि उसे जल्द से जल्द पानी चाहिए। पानी की समस्या केवल दिल्ली की नहीं है, देश के सभी बड़े शहर इससे जूझ रहे हैं। देश के महानगरों में पानी की कटौती करनी पड़ रही है। यह इस बात का संकेत है कि हमारा जल प्रबंधन ठीक नहीं है। वाटर ​िरसाई​कलिंग और ग्राउंड वाटर रिचार्ज की क्षमता भी जरूरत के मुताबिक नहीं है। कहते हैं जल बिन जीवन नहीं। अमीर लोग तो पानी खरीद कर अपनी प्यास बुुझा सकते हैं लेकिन टैंकरों के पीछे दौड़ने आैर पानी के लिए धूप में लम्बी लाइनें लगाने वाले गरीब लोग आखिर कहां जाएं। जल संकट का मसला अब ​िसयासत का नहीं रह गया। इस समय यह देखा जाना चाहिए कि लोगों को जल्द से जल्द पानी कैसे मिले।

भारत के बड़े हिस्से में दूरस्थ अंचल तक 100 दिन के विस्तार में लगातार बढ़ता तापमान न केवल पर्यावरणीय संकट है, बल्कि सामाजिक-आर्थिक त्रासदी तथा असमानता और संकट का कारक भी बन रहा है। सवाल यह है कि प्रकृति के इस बदलते रूप के सामने इंसान क्या करे? यह समझना होगा कि मौसम के बदलते मिजाज को जानलेवा हद तक ले जाने वाली हरकतें तो इंसान ने ही की हैं। प्रकृति की किसी भी समस्या का निदान हमारे अतीत के ज्ञान में ही है, कोई भी आधुनिक विज्ञान ऐसी दिक्कतों का हल नहीं खोज सकता। आधुनिक ज्ञान के पास तात्कालिक निदान और कथित सुख के साधन तो हैं लेकिन कुपित कायनात से जूझने में वह असहाय है। पृथ्वी को मानव ने ही इतना गर्म ​िकया है। अगर मानव प्रकृति से छेड़छाड़ नहीं करता तो आज उसे संकट का सामना नहीं करना पड़ता। गर्मी केवल इस साल की कहानी नहीं है। जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ यह संकट और बढ़ता जाएगा। एक तरफ हमें बेहतर जल प्रबंधन की जरूरत है तो दूसरी ओर आपूर्ति के लिए जलधाराओं की उत्पत्ति भी चाहिए। अब समय आ गया है ​कि मानव को अगर गर्मी आैर लू से बचाना है तो उसे प्रकृति की रक्षा करनी होगी। ज्यादा से ज्यादा पेड़ उगाने होंगे तभी नदियां, तालाब, जोहड़ आदि निर्मल और अ​िवरल रहेंगे। जल संरक्षण, भवनों का इको फ्रैंडली होना, निजी कारों का उपयोग छोड़ सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल करना आदि उपायों का इस्तेमाल कर देश को भट्ठी बनने से बचाया जा सकता है।