संपादकीय

शहबाज शरीफ : डगर नहीं आसान

Aditya Chopra

पाकिस्तान में हुए चुनाव लोकतंत्र के लिए एक मजाक ही हैं। पाकिस्तान की आवाम ने जनादेश में भले ही पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी के निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े उम्मीदवारों को सबसे ज्यादा संख्या में जिताकर उनका पलड़ा भारी रखा है लेकिन सरकार नवाज शरीफ की पार्टी पीएमएल (एन) और बिलावल भुट्टो की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की सरकार बनेगी। क्योंकि चुनावों की पूरी पटकथा पाकिस्तान की सेना द्वारा ही लिखी गई है। पहले तो नवाज शरीफ का एक बार फिर प्रधानमंत्री बनना तय माना जा रहा था लेकिन अचानक कहानी में ट्विस्ट आ गया। नया ट्विस्ट यह है कि नवाज शरीफ ने खुद प्रधानमंत्री न बनकर अपने भाई शहबाज शरीफ को दोबारा प्रधानमंत्री पद के लिए मनोनीत कर दिया है। खंडित जनादेश के बाद हर कोई जानता है कि पाकिस्तान में प्रधानमंत्री सेना की कठपुतली मात्र होते हैं।
इतिहास अपने आपको फिर से दोहरा रहा है। जब भी वहां का प्रधानमंत्री कोई स्वतंत्र निर्णय लेने लगता है तो उसे हटा ​दिया जाता है। यही कहानी बार-बार दोहराई जा रही है। पहले सेना ने इमरान खान को कठपुतली बनाया। उनसे पहले नवाज शरीफ सेना की कठपुतली बने रहे। जैसे ही इमरान खान ने सेना और आईएसआई से पंगा लिया उन्हें जेल की सलाखों के पीछे बंद कर दिया गया। भ्रष्टाचार के मामलों में उन्हें सजा सुनाए जाने के बाद उनकी पार्टी का चुनाव ​चिन्ह बल्ला भी छीन लिया गया। मजबूरन उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के उम्मीदवारों को निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा। तमाम मुश्किलों के बावजूद पाकिस्तान के लोगों ने उनकी पार्टी के निर्दलीय उम्मीदवारों को भारी संख्या में जिताया। स्पष्ट है कि जनादेश नवाज शरीफ और ​बिलावल भुट्टो की पार्टियों के खिलाफ है। पाकिस्तान में सत्ता से लेकर न्यायपा​लिका तक सेना का नियंत्रण है। इसलिए प्रधानमंत्री वही बनेगा जिसे सेना चाहेगी।
अब सवाल यह है कि नवाज शरीफ ने शहबाज शरीफ को ही प्रधानमंत्री पद के​ लिए मनोनीत क्यों किया। तीन बार प्रधानमंत्री रहे नवाज शरीफ ने अनिश्चित राजनीतिक परिदृश्य के बीच अपने भाई काे प्रधानमंत्री पद का कांटो भरा ताज सौंप कर एक तीर से कई निशाने किए हैं। नवाज शरीफ पर्दे के पीछे रहकर सरकार चलाएंगे और दूसरा अपनी बेटी मरियम नवाज को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाएंगे। नवाज के फैसले के पीछे कई अन्य कारण भी हैं।
दरअसल जब नवाज शरीफ सत्ता से बेदखल हुए तो उसके बाद वे कई मौकों पर खुलेआम पाकिस्तानी आर्मी की आलोचना करते देखे गए। वहीं शहबाज शरीफ ने सुलह का रास्ता अपनाया। जब भी कोई पाकिस्तानी आर्मी की अलोचना करता है तो वे हमेशा आर्मी के साथ खड़े नजर आते हैं। ऐसे में शहबाज आर्मी की गुड बुक में शामिल हैं। दूसरी बात, नवाज शरीफ के ऊपर भ्रष्टाचार के मामले रहे हैं। वहीं शहबाज की इमेज एक कर्मठ और मेहनती राजनेता की रही है। उन्हें आज भी पाकिस्तान में मुख्यतः पंजाब में इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए किए गए कामों के लिए याद किया जाता है। हालांकि जब इमरान सरकार में आए तो शहबाज को एक भ्रष्टाचार मामले में कुछ दिनों तक जेल में रहना पड़ा लेकिन यह आरोप सिद्ध नहीं हो सका। शहबाज शरीफ ने इसे राजनीति से प्रेरित बताया था।
सबसे बड़ा कारण यह भी है कि ​​बिलावल भुट्टो की पार्टी ने अभी सरकार को बाहर से समर्थन देने की घोषणा की है। आसिफ अली जरदारी अपने बेटे बिलावल भुट्टो को प्रधानमंत्री बनाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं और बिलावल अपने पिता को राष्ट्रपति बनाने के लिए सौदेबाजी कर सकते हैं। ऐसी स्थिति में सरकार का क्या हश्र होगा यह कुछ कहा नहीं जा सकता। शहबाज शरीफ के प्रधानमंत्री पद पर रहते हो सकता है कि बिलावल भुट्टो कुछ सौदेबाजी करके सरकार में शामिल हो जाएं तभी सरकार स्थिर होकर चल सकती है।
शहबाज शरीफ की डगर आसान नहीं है। एक तो उन्हें पाकिस्तान को आर्थिक कंगाली से बाहर निकालना होगा तभी पाकिस्तान का भविष्य सुरक्षित रह सकता है। सबसे बड़ा सिरदर्द अफगानिस्तान से होने वाली आतंकवादी कार्रवाइयां हैं। अफगानिस्तान प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान को समर्थन देता है। इनके हमले में कई पाकिस्तान के जवान मारे जा चुके हैं। शहबाज शरीफ को अफगानिस्तान से रिश्ते कायम करने के लिए तालिबान से भी रिश्ते सुधारने होंगे। पाकिस्तान की आवाम सेना पर सवाल उठाने से डरती है। क्योंकि वहां के लोग हमेशा से यही देखते रहे हैं। पाकिस्तान का दुर्भाग्य यह रहा ​कि वहां के हुकुमरान और सेना के जरनैल अपना-अपना व्यापार करते हैं। प्रोपर्टी के धंधे से लेकर आयात-निर्यात के व्यापार में सब शामिल हैं। हुकुमरानों ने विदेशों में भारी-भरकम संपदा बना रखी है और सेना के पास गोल्फ क्लब से लेकर शॉपिंग माल तक हैं। जिसको जितना मौका मिला उसने उतना ही भ्रष्टाचार किया। पाकिस्तान की नई सरकार कितने दिन चलेगी कुछ कहा नहीं जा सकता। शहबाज शरीफ भारत से संबंध सुधारने के लिए कोई पहल करेंगे। इसकी भी कोई ज्यादा उम्मीद नहीं है। पाकिस्तान आतंकवाद की खेती करना बंद नहीं कर सकता। ऐसा तभी हो सकता है जब सेना पर सरकार का नियंत्रण हो। पाकिस्तान में लगातार राजनीतिक अस्थिरता शुुभ संकेत नहीं हैं। अच्छे संबंधों के लिए भारत के पड़ोस में मजबूत लोकतांत्रिक सरकार का होना बहुत जरूरी है लेकिन ऐसा दिखाई नहीं दे रहा।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com