संपादकीय

शेख हसीना को भारत में शरण

Aditya Chopra

बंगलादेश ऐसा राष्ट्र है जिसके अस्तित्व का आंशिक श्रेय भारत को भी दिया जा सकता है क्योंकि 1971 में इसका वजूद कायम करने के लिए भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तानी सेनाओं से युद्ध लड़ा था। यह दीवार पर लिखी हुई इबारत है कि तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने बंगलादेश के अस्तित्व के लिए सम्पूर्ण भारत की प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी थी और अमेरिका जैसी महाशक्ति से बिना डरे सैनिक व कूटनीतिक दोनों मोर्चों पर यह युद्ध जीता था। हम सभी जानते हैं कि बंगलादेश के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले महान जन नायक शेख मुजीबुर्रहमान का जब दिल्ली में नागरिक सम्मान किया गया था तो उन्होंने 'आमार सोनार बांग्ला' का उद्घोष करते हुए संदेश दे दिया था कि 1947 में जिस हिन्दू-मुस्लिम द्विराष्ट्रवाद के सिद्धान्त पर मुहम्मद अली जिन्ना ने भारत के दो टुकड़े किये थे उसी सिद्धान्त को उनके देश के लोगों ने कब्र में गाड़ कर पूर्वी पाकिस्तान को बंगलादेश बना दिया है। बंगलादेश का निर्माण पिछली सदी के इतिहास की एेसी अपूर्व घटना थी जिसने दो सौ साल तक भारत पर राज करने वाले अंग्रेजों की मजहबी हिन्दू-मुस्लिम विद्वेश की साजिश को भी तार-तार कर दिया था।
1857 के प्रथम स्वतन्त्रता युद्ध के बाद अंग्रेजों ने हिन्दू- मुसलमानों के बीच फूट डालने के लिए बहुत ताबड़तोड़ मेहनत और साजिशें रची थीं। शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में पूर्वी पाकिस्तान के लोगों ने एक बारगी न केवल इतिहास को उलट दिया था बल्कि भारतीय उप महाद्वीप की बांग्ला संस्कृति की ताकत का अन्दाजा भी दुनिया को कराया था। आज उन्हीं की पुत्री शेख हसीना वाजेद को मजबूरी में भारत में शरण तब लेनी पड़ रही है जबकि विगत 5 अगस्त तक वह अपने देश की चुनी हुई प्रधानमन्त्री थीं। बंगलादेश  में जिस तरह उनका तख्ता पलट किया गया और उन्हें देश छोड़ने के लिए मजबूर किया गया उसी से पता लगता है कि बंगलादेश में कुछ विदेशी बाहरी शक्तियां सक्रिय हैं जो अपने मनमाफिक शासन व्यवस्था चाहती हैं। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि भारत शुरू से ही बंगलादेश के शेख परिवार के लिए दूसरा घर है। खासकर शेख हसीना के लिए तो यह उनका दूसरा घर ही रहा है। भारत में आकर वह स्वयं को चारों तरफ से सुरक्षित अनुभव करती हैं। पहले भी 1975 से 1981 तक वह भारत में ही तब रहीं जब उनके माता- पिता समेत उनके परिवार के सात लोगों का कत्ल सैनिक अफसरों ने कर दिया था। मगर बंगलादेश के लोग शेख मुजीबुर्रहमान को न केवल राष्ट्रपिता का दर्जा देते हैं बल्कि उन्हें अपने देश का महा जननायक भी समझते हैं लेकिन शेख हसीना के बंगलादेश से दिल्ली आने के बाद कुछ कट्टरपंथियों ने उनकी मूर्ति को भी ध्वस्त कर दिया। यह कार्य निश्चित रूप से वे लोग ही कर सकते हैं जिन्हें अपने देश की महान विरासत से प्यार न हो। बंगलादेश की प्रधानमन्त्री के रूप में शेख हसीना ने पूरे 20 वर्ष तक शासन किया है और इस दौरान उन्होंने अपने देश में सक्रिय पाकिस्तान परस्त ताकतों को कभी उभरने नहीं दिया और इस्लामी जेहादियों को प्रभावी नहीं होने दिया। पाकिस्तानी गुप्तचर एजेंसी आईएसआई की शह पर बंगलादेश की धरती से क्रियाशील इंडियन मुजाहीदीन जैसी संस्था के उन्होंने पर कतरने में जरा भी संकोच नहीं किया। बंगलादेश  की धरती से जो भी भारत विरोधी कार्य जमाते इस्लामी जैसी संस्था की ओर से किये जाते थे उसे उन्होंने कभी बर्दाश्त नहीं किया और भारत के साथ सर्वदा मधुर सम्बन्ध रखे और भारत से लगी चार हजार कि.मी. से अधिक की सीमा पर सर्वदा शान्ति व सद्भाव बनाये रखा। अब कहा जा रहा है कि शेख हसीना ने ब्रिटेन से राजनीतिक शरण मांगी थी जिसे ब्रिटेन के नियम स्वीकार नहीं कर रहे हैं। इसके लिए पहले से वैध वीजा के साथ ब्रिटेन में होना जरूरी है।
ब्रिटेन अपने देश में पहले से आये हुए व्यक्तियों को ही राजनीतिक शरण देता है। बंगलादेश के सम्बन्ध में अमेरिका के रुख को सभी भारतवासी अच्छी तरह जानते हैं कि कैसे उसके सैनिक व कूटनीतिक विरोध के बावजूद 1971 में बंगलादेश का निर्माण हुआ था। अतः बेशक अमेरिका स्वयं को दुनिया को सबसे पुराना लोकतन्त्र कहता हो मगर वह शेख हसीना को शरण नहीं देगा। अन्य यूरोपीय देशों के नियम भी ब्रिटेन से मिलते-जुलते हैं। अतः भारत ही एेसा देश बचता है जो शेख हसीना को ससम्मान शरण पहले की भांति दे सकता है परन्तु भारत को बंगलादेश  से भी अपने सम्बन्ध अच्छे रखने हैं। बेशक अभी यह नहीं कहा जा सकता है कि बंगलादेश में किस प्रकार की शासन व्यवस्था होगी क्योंकि राजनैतिक परिस्थितियां बहुत अस्थिर हैं परन्तु जो खबरें मिल रही हैं उनके अनुसार एक अन्तरिम सरकार का गठन किया गया है जिसका नेतृत्व नौबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस कर रहे हैं परन्तु पीछे से सेना ही इस प्रशासन की बागडोर पकड़े रहेगी और कहा नहीं जा सकता कि चुनाव कब तक होंगे जबकि बंगलादेश की मौजूदा संसद को राष्ट्रपति से भंग करा दिया गया है। बंगलादेश में पहले भी आधा दर्जन बार सेना का शासन रहा है जिसे समाप्त कर लोकतन्त्र स्थापित करने में शेख हसीना की महत्वपूर्ण भूमिका रही है परन्तु वक्त ने एेसी करवट ली कि लोकतन्त्र के नाम पर ही उनके विरुद्ध छात्र आन्दोलन चलवा कर उनका ही तख्ता पलट करवा दिया गया जिससे उन्हें देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। अतः स्वाभविक रूप से उन्हें भारत ही सबसे सुरक्षित शरण स्थल लगा और वह दिल्ली आ गईं। प्रकट रूप से यह भारत की सरकार की मर्जी से ही हुआ है। बंगलादेश के मुद्दे पर पूरा विपक्ष सरकार के साथ है और चाहता है कि इस मामले में पूरा भारत एक स्वर से बोले। इसका स्वागत किया जाना चाहिए।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com