संपादकीय

सबसे छोटा बजट सत्र

Aditya Chopra

वर्तमान 17वीं लोकसभा के बजट सत्र का आरम्भ हो चुका है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसका श्री गणेश दोनों सदनों के संयुक्त सत्र को सम्बोधित करके किया जिसमें उन्होंने एनडीए की मोदी सरकार की उपलब्धियां गिनाईं और एक प्रकार से पिछले दस सालों का सरकार का रिपोर्ट कार्ड भी रखा। इस रिपोर्ट कार्ड को निश्चित रूप से सरकार का उजला पक्ष कहा जा सकता है। मौजूदा लोकसभा का यह अन्तिम सत्र भी होगा, जो केवल दस दिन का होगा और इसकी आठ बैठकें होंगी अतः सत्ता व विपक्ष दोनों ही तरफ से यह कोशिश रहनी चाहिए कि इन आठ दिनों में संसद में रचनात्मक काम हों आैर सकारात्मक बहस भी हो तथा विपक्ष के वाजिब सवालों का जवाब भी सन्तोषजनक रूप से सरकारी पक्ष दे। पिछले सत्र में जो हंगामा और अफरा- तफरी का माहौल रहा उसका पुनः वर्णन करना सामयिक नहीं है।
भारत दुनिया का सबसे बड़ा संसदीय लोकतन्त्र कहा जाता है और यदि इसकी संसद की ऐसी हालत है तो कल्पना की जा सकती है कि नवजात लोकतान्त्रिक देशों की संसद में क्या होता होगा अथवा क्या हो सकता है? लोकतन्त्र की संसदीय व्यवस्था हमें अंग्रेज उपहार में देकर नहीं गये हैं बल्कि इसे प्राप्त करने के लिए हमारी पुरानी पीढि़यों ने अपना सर्वस्व होम किया है और तब जाकर भारत के हर अमीर-गरीब व्यक्ति को एक समान रूप से एक वोट का अधिकार मिला है जिसके बूते पर हम आज का लोकतन्त्र चला रहे हैं। इसी प्रणाली के तहत आज किसी गरीब की झोपड़ी में जन्मा बेटा-बेटी देश का प्रधानमन्त्री तक बनने का सपना पाल सकता है और जनमत के बूते पर उसे वास्तविकता में भी बदल सकता है। वर्तमान प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी इसका जीता-जागता सबूत कहे जा सकते हैं। अभी दो दिन पहले जिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 76वीं पुण्यतिथि मना कर हम भारत को शान्ति, अहिंसा व सत्य के मार्ग से आगे ले जाने की कसमें खा रहे हैं। उन्होंने ही 1934 में घोषणा कर दी थी कि स्वतन्त्र होने पर भारत वयस्क मताधिकार के आधार पर संसदीय लोकतान्त्रिक प्रणाली अपनायेगा। अतः सोचिये हमारे पुरखे कितनी दूरदर्शी थे जिन्होंने आज से 90 वर्ष पहले ही अनुमान लगा लिया था कि भारत के विकास के लिए उसकी नई पीढि़यों के हाथ में लोकतान्त्रिक व्यवस्था देनी जरूरी शर्त होगी।
आज हम गर्व से कह सकते हैं कि पिछले 76 सालों में हमने जो भी तरक्की की है वह इसी प्रणाली के तहत हर हिन्दोस्तानी को मजबूत करते हुए की है और सत्ता में आम आदमी की भागीदारी नियत करके ही की है। अतः हमारी संसद केवल बहस या हंगामा अथवा वाद-विवाद के लिए नहीं है बल्कि जनता के हित में फैसले करने के लिए बनी है। बेशक इन फैसलों में विपक्ष में बैठे सदस्यों की शिरकत भी होनी चाहिए और उनके विचारों को बराबर का सम्मान भी मिलना चाहिए क्योंकि विपक्षी सांसदों का चुनाव भी आम जनता अपने वोट से ही करती है। इस काम के लिए दोनों सदनों के अध्यक्षों को हमारे संविधान निर्मताओं ने जिम्मेदार बनाया और तय किया कि सदनों के भीतर उनकी निगाह में हर सांसद के एक समान अधिकार होंगे। इन अध्यक्षों को स्वयात्तशासी भी बनाने की व्यवस्था हमारे पुरखे करके गये जिससे उन पर किसी भी सरकार का कोई दबाव न रहे। सदन के भीतर होने वाले काम में सरकार केवल एक पर्यवेक्षक की भूमिका में रहती है और हर काम अध्यक्ष के निर्देश या आदेश के अनुसार ही होता है। अतः पिछले सत्र में हमें जो नजारे देखने को मिले थे वे इस छोटे से सत्र में किसी भी सूरत में नजर न आयें तो यह लोकतन्त्र की बहुत बड़ी सेवा होगी।
भारत एक तेजी से प्रगति करता हुआ देश है अतः इसकी यदि उपलब्धियां हैं तो समस्याएं भी अनेक हैं। विपक्ष यदि सभी मुद्दों पर समालोचना के नजरिये से सवाल उठाता है तो उनका समुचित जवाब सत्ता पक्ष द्वारा देना संसदीय प्रणाली का ही शिष्टाचार है। इस मुद्दे पर किसी प्रकार का शोर-शराबा उचित नहीं है। इस सत्र में लोकसभा में वित्तमन्त्री अन्तरिम बजट पेश करेंगी जो कि अगले चार महीने के खर्चे से ही सम्बन्धित होगा। फिर भी उन्हें अतिरिक्त राहत देने से कोई नहीं रोक सकता है बशर्ते वे वित्तीय दायित्व के दायरे में हों। जाहिर है कि इस सत्र में एेसे फैसले प्रायः नहीं होते हैं जिनका असर पांच साल बाद आने वाली सरकार के कार्यकलापों से हो क्योंकि मई में लोकसभा चुनावों के बाद जो भी नई सरकार गठित होगी उसकी नीतियों के बारे में अभी कुछ कहना किसी के लिए भी असंभव होगा। मगर असल बात यह है कि दस दिन का केवल आठ बैठकों वाला यह सत्र हर दृष्टि से उत्पादकता मूलक व सकारात्मक हो इसके लिए सत्ता व विपक्ष दोनों को ही सद् प्रयास करने चाहिएं और सदनों के अध्यक्षों को विक्रमादित्य की भूमिका निभानी चाहिए। परन्तु यह चुनावों से पहले का आखिरी सत्र भी है अतः दोनों ओर से राजनीति भी जमकर हो सकती है। देखा केवल यह जाना चाहिए कि इस राजनीति में संसदीय मर्यादाएं किसी भी स्तर पर भंग न हों। भारत के संसदीय इतिहास का यह सबसे छोटा बजट सत्र भी होगा।