कर्नाटक के मुख्यमन्त्री श्री सिद्धारमैया का कहना है कि उनके खिलाफ जो भूमि घोटाले के कथित आरोप लगाये जा रहे हैं वे उनके राजनैतिक जीवन को समाप्त करने का षड्यन्त्र है। यह षड्यन्त्र भाजपा समर्थित वे शक्तियां कर रही हैं जो राज्य के पिछड़े वर्गों व अनुसूचित वर्ग के लोगों का भला नहीं चाहती और समाज को पुराने जातिवादी रूढ़ीगत तरीकों पर रखना चाहती हैं। इसमें कोई दो मत नहीं हो सकते कि श्री सिद्धारमैया का पिछला 40 साल का राजनैतिक जीवन पूरी तरह पाक-साफ रहा है और एक जमाने में उन्हें दक्षिण भारत का 'चरण सिंह' तक भी कहा जाता था। इसकी वजह यह थी कि उनकी राजनीति चौधरी चरण सिंह के समान ही ग्रामीण समाज को जोड़ने की राजनीति थी और इसमें भी पिछड़े वर्गों के वे 'नायक' समझे जाते थे। श्री सिद्धारमैया स्वयं अति पिछड़े समाज से आते हैं मगर प्रशासन पर उनकी पकड़ बहुत मजबूत तभी से मानी जाती है जब वह पहली बार 1984 के लगभग कर्नाटक सरकार में पशुपालन मन्त्री बने थे। यह भी कोई संयोग नहीं है कि 1983 में उन्होंने अपना पहला विधानसभा चुनाव चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय लोकदल के टिकट पर लड़ा था और शानदार विजय प्राप्त की थी। इसके बाद वह जनता पार्टी में गये और राज्य की सरकार में मन्त्री बने बाद में वह जनता दल में शामिल हुए और श्री देवेगौड़ा की सरकार में उपमुख्यमन्त्री रहे।
बाद में देवेगौड़ा द्वारा अलग जनता दल (एस) बना लिये जाने पर वह उसमें शामिल हो गये और जब 2005 में कर्नाटक में कांग्रेस व जनता दल (एस) की मिलीजुली सरकार श्री धर्म सिंह के नेतृत्व में बनी तो वह उसमें उपमुख्यमन्त्री रहे मगर इसके बाद उनसे देवेगौड़ा के साथ मधुर सम्बन्ध नहीं रहे और बाद में उन्होंने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ले ली। इस प्रकार सिद्धारमैया की राजनीति ग्रामीण आधारित राजनीति ही रही और वह पिछड़े समाज में लगातार लोकप्रिय बने रहे। यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि पिछड़े सामज का जो कोई भी नेता लोकप्रियता के शिखर पर किसी भी राज्य में पहुंचता है तो उसे विभिन्न विवादों में फंसा दिया जाता है। श्री सिद्धारमैया का कहना है कि उन्होंने कर्नाटक में जातिगत सर्वेक्षण कराया था जिसकी वजह से भाजपा उनसे बदला लेना चाहती है और उन्हें भूमि कांड में फंसना चाहती है लेकिन राजनीति में तथ्यों को देखकर ही फैसला किया जाना चाहिए और उसके बाद किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जाना चाहिए। मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण के जिन 14 भूखंडों को 2021 में श्री सिद्धारमैया की पत्नी को आवंटित किया गया था, वे 3.16 एकड़ भूमि प्राधिकरण को देने के बाद आवंटित किये गये थे। 2021 में राज्य में भाजपा की सरकार थी। अतः भूखंड भाजपा सरकार ने आवंटित किये। मगर 2023 में राज्य में कांग्रेस की श्री सिद्धारमैया के नेतृत्व में सरकार बनी तो इसने इस स्कीम को रद्द कर दिया। सवाल खड़ा हो सकता है कि स्कीम किस वजह से रद्द की गई? क्या इसका खुलासा सिद्धारमैया सरकार को नहीं करना चाहिए।
इस स्कीम के चलते कर्नाटक के कितने ग्रामीणों को लाभ हुआ इसका जायजा भी लिया जाना चाहिए और यह भी पता लगाया जाना चाहिए कि इस स्कीम का लाभ कितने धन्ना सेठों और प्रभावशाली लोगों ने उठाया। बेशक श्री सिद्धारमैया एक ईमानदार राजनीतिज्ञ माने जाते हैं परन्तु उन्हें भी यह सफाई देनी होगी कि 2004 में जो 3.16 एकड़ भूमि उनके साले ने अनुसूचित जाति के व्यक्तियों से खरीदी थी उसकी कैफियत क्या है? बाद में यह जमीन उनके साले ने 2010 में अपनी बहन (सिद्धारमैया की पत्नी ) को भेंट में दे दी। श्री सिद्धारमैया पिछड़े वर्गों व ग्रामीणों के शुभचिन्तक व नेता हो सकते हैं मगर उन्हें अपने परिवार के सदस्यों को भी तो इसी रोशनी में देखना होगा। बेशक उन्होंने जातिगत सर्वेक्षण करा कर पिछड़े वर्गों के साथ हजारों साल से किये जा रहे अन्याय को सतह पर लाने की कोशिश की है और उनका वाजिब हिस्सा उन्हें दिये जाने की भूमिका तैयार की है परन्तु इस क्रम में उन्हें भी तो अपने परिवार के सदस्यों तक को संशय से ऊपर रखना पड़ेगा। राज्य में 2023 में पुनः सरकार गठित करने के बाद श्री सिद्धारमैया ने पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू की हैं। उनकी यह ईमानदार कोशिश हो सकती है कि पिछड़ों को समाज में बराबर का सम्मान मिले व उनके साथ न्याय हो क्योंकि हजारों साल से इन वर्गों के लोगों को समाज के कथित उच्च वर्ण के लोगों द्वारा दबा कर रखा गया है और उनका सामाजिक बहिष्कार तक किया गया है।
उन्हें कुपढ़ बनाये रखने की कुरीतियां कन्नड़ समाज में डाली गई हैं। यदि सिद्धारमैया इस धारा को पलट देना चाहते हैं तो वर्तमान राजनीति में उनका स्वागत होना चाहिए। क्योंकि प्रत्येक सच्चा राजनीतिज्ञ एक समाज सुधारक भी होता है। समाज में ऊंच-नीच का भेदभाव समाप्त करना उसका कर्त्तव्य होता है औऱ सामाजिक कुरीतियों पर कुठाराघात करना उसका धर्म होता है। इसका सीधा सम्बन्ध वैज्ञानिक सोच से जाकर जुड़ता है और वैज्ञानिक सोच के बिना कोई भी समाज तरक्की नहीं कर सकता। अतः श्री सिद्धारमैया के खिलाफ राज्य के राज्यपाल थांवर चन्द गहलौत ने तीन निजी शिकायतों के आधार पर जांच करने के जो आदेश दिये हैं उन पर कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अगली सुनवाई तक एक प्रकार से रोक लगा दी है। इसकी वजह भी यही है कि पूरे मामले में संवैधानिक पेंच पड़ा हुआ है कि क्या राज्यपाल प्राइवेट शिकायत के आधार पर अपने ही मुख्यमन्त्री के विरुद्ध जांच के आदेश दे सकते हैं? राज्यपाल तो मुख्यमन्त्री की सलाह से बंधे हुए होते हैं लेकिन जनता तो चाहती है कि केवल राजनैतिक वितंडावाद नहीं बल्कि सच बाहर आना चाहिए।