संपादकीय

मिलकर जन समस्याएं हल करें पक्ष-विपक्ष

Rahul Kumar Rawat

कांग्रेस का यह दावा कि वह जब चाहे मोदी सरकार को गिरा सकती है, निस्संदेह एक खोखला घमंड है। 240 सदस्यीय भाजपा के नेतृत्व वाली चुनाव पूर्व गठबंधन सरकार को गिराना बिना नामित नेता वाले 99 सदस्यीय कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन के लिए आसान नहीं है। उन्होंने अपने शैडो प्रधानमंत्री का चुनाव भी इस डर से नहीं किया कि इससे कमजोर गठबंधन टूट सकता है। नतीजों के बाद भी वह डर खत्म नहीं हुआ है। ममता बनर्जी जैसे कुछ नेता राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने से सहमत नहीं हैं। दूसरी ओर, भाजपा नेता इस बात से सचेत थे कि कांग्रेस नेतृत्व उसके चुनाव पूर्व गठबंधन सहयोगियों नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को दूर करने के लिए क्या कर सकता है। 4 जून को पूरे परिणाम की आधिकारिक तौर पर घोषणा से पहले ही जब यह स्पष्ट हो गया था कि भाजपा खुद अपने बल पर आधी सीटों से पीछे रह जाएगी, भाजपा की तरफ से जद (यू) और टीडीपी नेताओं को फोन किया गया। दोनों को बताया कि भाजपा विपक्ष में बैठना चाहेगी और सरकार गठन के लिए पहला कदम उठाने के लिए आईएनडीआई गठबंधन का इंतजार करेगी। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा ने चुनाव पूर्व दोनों सहयोगियों से कहा कि यदि वे विपक्षी गठबंधन का समर्थन करना चाहते हैं तो वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं।

नीतीश और नायडू दोनों ने इस सुझाव पर कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि किसी भी परिस्थिति में विपक्षी गठबंधन को समर्थन देने का सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने जोर देकर कहा कि भाजपा सरकार बनाएं और वह उनके बिना शर्त समर्थन पर भरोसा कर सकते हैं। यह एक चतुर रणनीति थी, जिसमें भाजपा के बाद एनडीए के दो सबसे बड़े समूहों के नेताओं से समर्थन की दृढ़ प्रतिबद्धता प्राप्त की गई थी। न तो कुमार और न ही नायडू इस तथ्य से अनभिज्ञ थे कि जद (यू) और टीडीपी के बिना भी भाजपा के पास 264 सदस्य थे, जिनमें शिंदे सेना, पासवान और जयंत चौधरी और कुछ अन्य शामिल थे। इसके अलावा, कुमार और नायडू दोनों की प्राथमिकताएं उनके राज्यों से संबंधित थीं न कि केंद्र से। बिहार में कांग्रेस नीतीश विरोधी राजद के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन का हिस्सा थी। टीडीपी ने आंध्र और तेलंगाना दोनों में कांग्रेस के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।

वहीं, संघ परिवार के अंदर और बाहर दोनों जगह लोकसभा चुनाव में भाजपा के खराब प्रदर्शन का मुख्य कारण पिछले दस वर्षों में एक व्यक्ति के शासन को बताया जा रहा है लेकिन आरएसएस संघचालक की समझदारी भरी सलाह से भी मोदी को ही फायदा होगा। दरअसल हाल ही में नागपुर में संपन्न हुए एक कार्यक्रम में मोहन भागवत ने जो कहा था, उनके वह शब्द किसके लिए थे यह बिना किसी को संदेह सबको मालूम है। जैसा की आरएसएस के वरिष्ठ नेता इंदरेश ने भी वहीं कहा जो संघचालक ने कुछ दिन पहले कहा था और उन्होंने भी पूर्ण बहुमत हासिल करने में विफलता के लिए अहंकार को जिम्मेदार ठहराया। हालांकि पहले के मुकाबले हुए कुछ बदलाव को भी नोटिस करना यहां जरूरी है। जैसे कि अब तक बाहर रहने वाले प्रधानमंत्री के लिए कार्यालय को खोलना, ऑनलाइन व्यक्तित्व में मोदी का परिवार की जगह बीजेपी का परिवार लेना, सामूहिक निर्णय लेने में पहले से अधिक जोर देना आदि।

इस बीच भाजपा को साधारण बहुमत से वंचित करने के लिए कांग्रेस पार्टी में उत्साह भी है लेकिन उनके लिए लगातार तीसरी बार तीन अंकों तक पहुंचने में विफलता के लिए भी गंभीर चिंतन का क्षण होना चाहिए। साथ ही कांग्रेस नेताओं का अति उत्साह देखकर लगता है कि उन्होंने अपने दम पर बहुमत हासिल कर लिया है। बावजूद इसके भी वह मोदी को लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने से नहीं रोक सके हैं। लेकिन इस तरह का अतार्किक उत्साह उस स्कूली छात्र के समान है जो परीक्षा में नौवीं बार असफल होने के बाद भी खुशी से उछल रहा था क्योंकि उसका एक सहपाठी प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान से कुछ अंकों से चूक गया था। अगर गांधी परिवार को व्यापक स्वीकार्यता हासिल करनी है तो उन्हें संसद के अंदर और बाहर दोनों जगह संयम बरतने की जरूरत है। क्योंकि राजनीति में टकराव और आक्रामकता के लिए कोई जगह नहीं होती है। उम्मीद है कि वे नई संसद को चलने देंगे और पिछली संसद की तरह शोर-शराबा व बाधा डालने वाले व्यवहार को नहीं दोहराएंगे।