संपादकीय

भारत-अमेरिका संबंधों में रणनीतिक बदलाव का संकेत

जैसे-जैसे वैश्विक भू-राजनीति बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है, डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस में लौटने की संभावना ने भारत-अमेरिका संबंधों के भविष्य को लेकर तीव्र अटकलों को जन्म दिया है।

K.S. Tomar

जैसे-जैसे वैश्विक भू-राजनीति बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है, डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस में लौटने की संभावना ने भारत-अमेरिका संबंधों के भविष्य को लेकर तीव्र अटकलों को जन्म दिया है। उनके द्वारा माइकल वॉल्ट्ज, एक मुखर चीन और कनाडा विरोधी राजनेता, को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और हिंदू अमेरिकी तुलसी गबार्ड को राष्ट्रीय खुफिया निदेशक नियुक्त करना एशिया और उससे आगे तक व्यापक प्रभाव डाल रहा है। भारत और अमेरिका अपने रणनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को फिर से परिभाषित करने के कगार पर हैं। ट्रंप का ‘अमेरिका फर्स्ट’ मंत्र, जो वैश्विक मंच पर विवादास्पद रहा है, भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका और आत्मनिर्भरता की आकांक्षाओं के साथ मेल खा सकता है। चीन और हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर साझा चिंताएं दोनों देशों के लिए प्राथमिकता रहेंगी, क्योंकि ये देश महत्वपूर्ण व्यापार मार्गों की सुरक्षा और साझा प्रतिद्वंद्वियों का मुकाबला करने की कोशिश करेंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ट्रंप के बीच पहले कार्यकाल में बना शुरुआती संवाद नई दिल्ली में उम्मीदों का आधार है। जैसा कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में कहा, भारत ट्रंप के अमेरिका के साथ अपने संबंधों को लेकर आश्वस्त है, जबकि अन्य देश वाशिंगटन के साथ अपने संबंधों को फिर से आकार दे रहे हैं।

माइकल वॉल्ट्ज : भारत के लिए रणनीतिक सहयोगी

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में माइकल वॉल्ट्ज की नियुक्ति भारत के लिए शुभ संकेत है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन की आक्रामक गतिविधियों के कड़े आलोचक, वॉल्ट्ज अमेरिकी रक्षा तंत्र को मजबूत करने और क्षेत्र में गठबंधनों को सुदृढ़ करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। अपनी 2023 की भारत यात्रा के दौरान उन्होंने मोदी के नेतृत्व की प्रशंसा की और चीन व अफगानिस्तान में आतंकवाद का मुकाबला करने में भारत की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया।

वॉल्ट्ज ने भारत-अमेरिका साझेदारी को 21वीं सदी का परिभाषित रिश्ता कहा है। एक हालिया शिखर सम्मेलन में उन्होंने कहा कि यह गठबंधन तय करेगा कि यह सदी ‘प्रकाश की होगी या अंधकार की।’ उनकी यह सोच रक्षा, अंतरिक्ष और आतंकवाद-रोधी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की व्यापक प्रतिबद्धता को दर्शाती है, विशेष रूप से नियंत्रण रेखा (एलओसी) जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो पर उनकी खुली आलोचना भारत के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है। बाइडेन प्रशासन के विपरीत जो ट्रूडो का समर्थन करता था, वॉल्ट्ज का दृष्टिकोण भारतीय चिंताओं के साथ मेल खाता है। यह बदलाव ट्रंप के नेतृत्व में भारत-अमेरिका संबंधों को और करीब ला सकता है।

तुलसी गबार्ड : भारत की नई रणनीतिक समर्थक

तुलसी गबार्ड को राष्ट्रीय खुफिया निदेशक नियुक्त किया जाना ट्रंप प्रशासन में एक और भारत समर्थक आवाज लाता है। भारत की सांस्कृतिक धरोहर के प्रति उनके सम्मान और पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ उनके सख्त रुख के लिए गबार्ड जानी जाती हैं। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्वतंत्रता और खुलेपन को लेकर उनकी वकालत क्वाड जैसी पहलों को ऊर्जा प्रदान कर सकती है जो समुद्री सुरक्षा और चीन की निगरानी रणनीति पर अंकुश लगाने पर केंद्रित हैं। गबार्ड का संतुलित दृष्टिकोण साइबर सुरक्षा और अर्धचालक (सेमीकंडक्टर्स) और 5जी जैसी उभरती तकनीकों में भारत-अमेरिका सहयोग को मजबूत कर सकता है।

भारतीय प्रवासी का बदलता राजनीतिक झुकाव भी भारत-अमेरिका संबंधों को आकार दे सकता है। ऐतिहासिक रूप से डेमोक्रेट्स के साथ जुड़े रहे भारतीय अमेरिकी अब ट्रंप की व्यापार समर्थक नीतियों और भारत-अमेरिका संबंधों पर उनके ध्यान को महत्व दे रहे हैं। कार्नेगी एंडोवमेंट द्वारा किए गए एक हालिया सर्वेक्षण में पाया गया कि जबकि 61प्रतिशत भारतीय अमेरिकी अभी भी कमला हैरिस का समर्थन करते हैं, 32प्रतिशत अब ट्रंप का समर्थन करते हैं जो 2020 की तुलना में एक महत्वपूर्ण वृद्धि है।

अपनी $200 बिलियन वार्षिक आर्थिक योगदान के साथ भारतीय अमेरिकी नवाचार को बढ़ावा देने और द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ट्रंप की वापसी न केवल भारत-अमेरिका संबंधों को परिभाषित करेगी, बल्कि वैश्विक व्यवस्था को भी नया आकार दे सकती है। गठबंधनों के प्रति उनका लेन-देन दृष्टिकोण और बहुपक्षीय की बजाय द्विपक्षीय समझौतों को प्राथमिकता पारंपरिक संबंधों को तनाव में डाल सकती है। मध्य पूर्व में सऊदी अरब जैसे देशों को अमेरिकी समर्थन के बदले नए प्रतिफल की अपेक्षाओं का सामना करना पड़ सकता है।

भारत के लिए ट्रंप का कार्यकाल अवसर और चुनौती दोनों लेकर आएगा। चीन और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर उनके प्रशासन का भारत के साथ मेल-जोल उत्साहजनक है लेकिन मोदी सरकार को ट्रंप की विदेश नीति की अनिश्चितता से सावधान रहना होगा। व्यापार, रक्षा, और प्रौद्योगिकी जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर मेल-जोल सुनिश्चित करने के लिए कुशल कूटनीति की आवश्यकता होगी।

अंतिम मूल्यांकन में ट्रंप की राष्ट्रपति पद की वापसी अमेरिकी विदेश नीति का एक पुनर्संयोजन होगी, जिसमें उनके राष्ट्रवाद और व्यावहारिकता का मिश्रण दिखेगा। हालांकि, यह दृष्टिकोण सहयोगियों के साथ टकराव पैदा कर सकता है, वैश्विक अर्थव्यवस्था को बदल सकता है और मौजूदा कूटनीतिक मानदंडों को चुनौती दे सकता है। ट्रंप की वापसी अमेरिकी नेतृत्व और प्रभाव की सीमाओं को फिर से परिभाषित करने का वादा करती है, विशेष रूप से एक बहुध्रुवीय दुनिया में।

(लेखक शिमला स्थित सामरिक मामलों के स्तंभकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)