संपादकीय

Telugu Desam: तेलगूदेशम और नई सरकार

Rahul Kumar Rawat

रविवार को श्री नरेन्द्र मोदी भारत के नये प्रधानमन्त्री पद की शपथ लेंगे। यह सरकार विशुद्ध रूप से गठबन्धन सरकार होगी जिसमें विभिन्न दलों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। जाहिर है यह गठबन्धन भाजपा नीत एनडीए होगा जिसे लोकसभा चुनाव में बहुमत मिला है। इसका प्रमुख घटक दल आन्ध्र प्रदेश की तेलगूदेशम पार्टी है जिसके नेता श्री चन्द्र बाबू नायडू हैं। श्री नायडू को पूर्व में भी विभिन्न विचारधारा वाले राजनैतिक दलों का गठबन्धन बनाने का लम्बा अनुभव रहा है। उनकी पार्टी का आंध्र प्रदेश में जन सेना व भाजपा के साथ गठबन्धन था। इस गठबन्धन को राज्य की कुल 25 लोकसभा सीटों में से 21 पर विजय मिली जिसमें तेलगूदेशम की 16 जन सेना की दो व भाजपा की तीन सीटें शामिल हैं। राष्ट्रीय स्तर पर तेलगूदेशम ही भाजपा की सबसे बड़ी सहयोगी पार्टी बन कर उभरी है। इसके बाद बिहार की नीतीश बाबू की जनता दल (यू) पार्टी है जिसके 12 सदस्य चुन कर आये हैं। यदि शेष पार्टियों को छोड़ भी दिया जाये तो इन दोनों पार्टियों ने अपने-अपने घोषणापत्रों पर चुनाव लड़ा है और जीता है। इनका चुनावी एजेंडा भाजपा के चुनावी एजेंडे से पूरी तरह अलग रहा है। अतः स्पष्ट है कि सरकार में शामिल होकर ये पार्टियां अपने एजेंडों को वरीयता देंगी और जनता से किये गये वादों को पूरा करने की कोशिश करेंगी।

नीतीश बाबू की पार्टी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना के पक्ष में हैं वहीं रामविलास पासवान के सुपुत्र चिराग पासवान ने भी फौज में भर्ती की अग्निवीर योजना की समीक्षा किये जाने की बात उठाई है। जनता दल (यू) भी चाहती है कि अग्निवीर स्कीम पर पुनर्विचार किया जाये। अग्निवीर स्कीम को लेकर लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी व विपक्षी इंडिया गठबन्धन के नेताओं ने भी चुनावी मैदान में मुहीम छेड़ी थी और इसे रद्द किये जाने का आश्वासन भी दिया था बशर्ते कि इंडिया गठबन्धन की सरकार बनती। मगर श्री मोदी की नई सरकार को तेलगूदेशम के उस चुनावी वादे से निपटना होगा जो उसने अपने राज्य में मुस्लिम आरक्षण को लेकर दिया है। भाजपा ने चुनावी दंगल में मुस्लिम आरक्षण का मामला पुरजोर तरीके से उठाया था और यहां तक कहा था कि राहुल गांधी की कांग्रेस और इंडिया गठबन्धन के दल पिछड़ों के आरक्षण में से मुस्लिमों को आरक्षण देना चाहते हैं। भाजपा शुरू से ही आरोप लगाती रही है कि कांग्रेस मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पर चलती है। इस बार यह आरोप इंडिया गठबन्धन के घटक दलों विशेष कर उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी पर भी चस्पा किया गया जिसे उत्तर प्रदेश में शानदार चुनावी सफलता मिली है। मगर तेलगूदेशम ने अपने घोषणा पत्र में वादा किया हुआ है कि मुस्लिमों को चार प्रतिशत आरक्षण देगी और हज यात्रियों को एक लाख रुपए का सरकारी अनुदान मुहैया करायेगी तथा मस्जिद के इमामों को भी मानदेय देगी।

इस सन्दर्भ में श्री चन्द्र बाबू नायडू का वह बयान महत्वपूर्ण है जो एनडीए गठबन्धन की बैठक में कल श्री मोदी को नेता चुने जाते समय दिया था। उन्होंने कहा कि वह राजनीति में किसी 'वाद' को नहीं मानते हैं बल्कि केवल 'मानवतावाद' को मानते हैं और राष्ट्र के विकास के लिए जरूरी है कि हर वर्ग व सम्प्रदाय के लोगों का विकास एक समान रूप से किया जाये। वहीं श्री नायडू के सुपुत्र व तेलगूदेशम पार्टी के महासचिव श्री वारा लोकेश ने एक टीवी चैनल को दिये गये साक्षात्कार में और स्पष्ट किया कि तेलगूदेशम पार्टी अपने सिद्धान्तों पर किसी प्रकार का समझौता नहीं करेगा और देश में बदले की भावना से की जाने वाली राजनीति के लिए कोई स्थान नहीं है। श्री लोकेश ने दो टूक तरीके से मुस्लिमों को भी विकास यात्रा में साथ रखे जाने की वकालत करते हुए कहा कि देश तभी विकास कर सकता है जबकि इसका कोई भी सम्प्रदाय विकास यात्रा में पीछे न रहे इसलिए बहुत जरूरी है कि जो लोग पीछे छूट गये हैं उन्हें आगे बराबरी पर लाने के लिए आवश्यक सरकारी कदम उठाये जायें।

श्री लोकेश के कथन से स्पष्ट है कि तेलगूदेशम पार्टी अपने एजेंडे से किसी कीमत पर पीछे नहीं हटेगी। इन विरोधाभासों को देखकर लगता है कि एनडीए की नई सरकार को एक न्यूनतम सांझा कार्यक्रम जल्दी ही तैयार करना पड़ेगा। मुस्लिम तुष्टीकरण के मुद्दे पर भाजपा को भी अपना रुख साफ करना पड़ेगा और एनडीए की गठबन्धन सरकार को सुचारू ढंग से चलाने के लिए अपने सहयोगियों के चुनावी वादों को भी उस कार्यक्रम में समाहित करना पड़ेगा। यह तो अब रहस्य नहीं रहा है कि तेलगूदेशम पार्टी के सर्वेसर्वा श्री नायडू नई लोकसभा में अध्यक्ष पद चाहते हैं। इस पद पर अपनी पार्टी के सांसद को बैठाकर वह भाजपा के सभी छोटे सहयोगी दलों के सांसदों की जमानत चाहते हैं जिससे उनमें से किसी की भी पार्टी को भविष्य में राष्ट्रवादी कांग्रेस या शिवसेना अथवा लोकजन शक्ति पार्टी की तरह तोड़ा न जा सके। देखना यह भी रोचक होगा कि नई सरकार में कितने सहयोगी दलों के प्रतिनिधियों को मन्त्री पद दिया जाता है और उन्हें कौन-कौन से मन्त्रालय दिये जाते हैं। विशेषकर वित्त मन्त्रालय किस पार्टी के हिस्से में जाता है। क्योंकि यही मन्त्रालय आने वाले समय में भारत की आर्थिक नीतियों का निर्धारण जिस तर्ज पर करेगा उसी पर राजनीति की दिशा भी तय होगी।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com