संपादकीय

इस्तीफों की राजनीति का जोर

Aditya Chopra

आजकल कर्नाटक की राजनीति ने पूरे देश में गजब ढहाया हुआ है। एक तरफ कांग्रेसी सरकार के मुख्यमन्त्री श्री सिद्धारमैया के विरुद्ध कर्नाटक उच्च न्यायालय की एकल न्यायाधीश की पीठ ने मैसूरू शहरी विकास प्राधिकरण से अविकसित भूमि के बदले विकसित भूमि के भूखंड आवंटित कराने के लिए मुकदमा चलाये जाने की इजाजत दे दी है तो दूसरी तरफ बेंगलुरु की एक अदालत ने केन्द्रीय वित्तमन्त्री श्रीमती सीतारमण के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अवैध घोषित किये गये चुनावी बाण्ड स्कीम के तहत निजी कम्पनियों से कथित जबरन वसूली किये जाने को लेकर पुलिस रिपोर्ट दर्ज करने के आदेश जारी कर दिये हैं और उनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज भी कर ली गई है। दोनों ही पार्टियां इन मामलों को राजनीति से प्रेरित बता रही हैं और एक-दूसरे से सम्बन्धित मन्त्रियों का इस्तीफा लेने की मांग उठा रही हैं। दरअसल मुख्यमन्त्री श्री सिद्धारमैया के विरुद्ध आरोप है कि उनकी पत्नी ने मैसूरू विकास प्राधिकरण से अपने नाम 14 भूखंड आवंटित कराये जबकि विशेष स्कीम के तहत अविकसित कृषि भूमि प्रधिकरण को दी। मुख्यमन्त्री कह रहे हैं कि यह मामला सीधे उनसे सम्बन्ध नहीं रखता है और भाजपा ने राज्यपाल की मार्फत उनके विरुद्ध राजनैतिक षड्यन्त्र किया है जबकि भाजपा का भी कहना है कि श्रीमती सीतारमण को षड्यन्त्र करके फंसाया जा रहा है। मगर दोनों ही मामलों में अदालतों के निर्देश पर कार्रवाई आगे बढ़ रही है। जहां तक केन्द्रीय वित्तमन्त्री का सम्बन्ध है तो उनके खिलाफ बेंगलुरु की एक निचली अदालत में एक गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्था 'जनाधिकार संघर्ष परिषद' के सह- अध्यक्ष आदर्श आर.अय्यर ने शिकायत दर्ज कराई कि उन्होंने प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों के साथ मिलकर कुछ निजी कम्पनियों पर चुनावी बाण्ड खरीदकर उसे उनकी पार्टी भाजपा को देने के लिए दबाव डाला। श्रीमती सीतारमण के विरुद्ध जबरन वसूली करने और आपराधिक षड्यन्त्र रचने की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। एफआईआर में प्रवर्तन निदेशालय के भी बैनाम अधिकारियों को मुल्जिम बनाया गया और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को भी जिनमें राज्य भाजपा के अध्यक्ष बी.वाई. विजयेन्द्र का नाम भी शामिल है। श्री विजयेन्द्र भाजपा के नेता व पूर्व मुख्यमन्त्री श्री बी.एस.येदियुरप्पा के पुत्र हैं। बेंगलुरु की एक विशेष अदालत के आदेश पर पुलिस ने यह प्राथमिकी दर्ज की है। कुछ दिनों पहले तक जहां स्वयं विजयेन्द्र सहित भाजपा के विभिन्न नेता मुख्यमन्त्री सिद्धारमैया का इस्तीफा मांग रहे थे वहीं अब स्वयं मुख्यमन्त्री समेत कांग्रेस के विभिन्न नेता श्रीमती सीतारमण का इस्तीफा मांग रहे हैं। श्री सिद्धारमैया ने तो मांग की कि भाजपा जिस वजह से उनसे इस्तीफा मांग रही थी अब वही सिद्धान्त अपने ऊपर लागू करे और श्रीमती सीतारमण का इस्तीफा ले। सिद्धारमैया पहले ही कह चुके हैं कि वह उच्च न्यायालय द्वारा उनके खिलाफ मुकदमा चलाये जाने की इजाजत दिये जाने के बावजूद इस्तीफा नहीं देंगे क्योंकि अव्वल तो यह मामला पूरी तरह राजनीति से प्रेरित है क्योंकि उनके मामले में राज्यपाल के कार्यालय का राजनैतिक दुरुपयोग हुआ है और दूसरे वह इस प्रकरण को ऊंची अदालत में चुनौती देंगे। दरअसल मुख्यमन्त्री के विरुद्ध तीन लोगों ने राज्यपाल थावर चन्द गहलोत से निजी शिकायत की थी और आरोप लगाये थे कि मैसूरू विकास प्राधिकरण से भूखंड आवंटित कराने के मामले में भारी घपला हुआ है। मगर यह भी कम हैरत की बात नहीं है कि जब श्री सिद्धारमैया की पत्नी के नाम भूखंड आवंटित हुए थे तो राज्य में भाजपा की सरकार थी। अविकसित भूमि के बदले विकसित भूखंड स्कीम को स्वयं सिद्धारमैया की सरकार ने कुर्सी संभालने के बाद रद्द किया। जब मुख्यमन्त्री पर इस प्रकार के आरोप लगे तो उन्होंने मामले की जांच कराने के लिए एक विशेष जांच दल भी नियुक्त कर दिया। मगर बाद में राज्यपाल महोदय ने निजी शिकायतों का संज्ञान लेते हुए उनके खिलाफ मुकदमा चलाये जाने की इजाजत दे दी। जिसे श्री सिद्धारमैया ने उच्च न्यायालय में इस दलील के साथ चुनौती दी कि राज्यपाल निजी शिकायतों के आधार पर सीधा मुकदमा चलाने की इजाजत नहीं दे सकते हैं मगर वहां से उनके खिलाफ फैसला आ गया। दूसरी तरफ वित्तमन्त्री सीतारमण के खिलाफ भी विशेष अदालत में चुनावी बाण्ड के जरिये जबरन वसूली करने का मुकदमा दर्ज करा दिया गया। चुनावी बाण्ड स्कीम को सर्वोच्च न्यायालय पहले ही गैर संवैधानिक करार दे चुका है मगर उसने इस स्कीम के तहत राजनैतिक दलों को मिले चन्दे की धनराशि की बाबत कोई आदेश नहीं दिया था। वित्तमन्त्री के विरुद्ध की गई शिकायत में कहा गया है कि दो निजी कम्पनियों स्टलाइट व वेदान्ता पर पहले प्रवर्तन निदेशालय ने कई बार छापे मारे और फिर उन पर चुनावी बाण्ड खरीदने के लिए दबाव बनाया गया। इन कम्पनियों ने अप्रैल 2019 से लेकर नवम्बर 2023 तक 230 करोड़ के बाण्ड खरीदे और भाजपा को दिये। प्रवर्तन निदेशालय वित्त मन्त्रालय के अधिकार क्षेत्र में ही आता है। अतः बहुत स्पष्ट है कि भाजपा और कांग्रेस में अब भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही ठन गई है। एक तरफ जहां भाजपा कांग्रेस को भ्रष्ट बता रही है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने सीधे वित्तमन्त्री को ही घेर लिया है। बेशक यह काम अदालतों के आदेशों के बाद ही हो रहा है मगर इसमें राजनीति का अंश न हो एेसा नहीं माना जा सकता। रोचक तथ्य यह है कि एक और जहां श्री सिद्धारमैया की छवि एक पाक-साफ व ईमानदार जन नेता की है वहीं दूसरी ओर सीतारमण की छवि भी एक स्पष्टवादी सच्ची नेता की है।