संपादकीय

गंभीर चिंता की वजह हैं साइबर अपराध की बढ़ती घटनाएं

भारत में डिजिटल अरेस्ट का मुद्दा इतना गंभीर है कि 27 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में भी इसका ज़िक्र किया था।

Rohit Maheshwari

भारत में डिजिटल अरेस्ट का मुद्दा इतना गंभीर है कि 27 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में भी इसका ज़िक्र किया था। पीएम मोदी ने इसे लेकर लोगों से सावधान रहने को कहा था। उन्होंने कहा था, ‘डिजिटल अरेस्ट के पीड़ित हर वर्ग और हर उम्र के लोग हैं। डर के कारण वे अपनी मेहनत से कमाए गए लाखों रुपये खो देते हैं।’ प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ में इस फर्जीवाड़े को पूरी तरह साझा किया है।

डिजिटल अरेस्ट ऑनलाइन धोखाधड़ी का एक नया तरीका है जिसमें कुछ लोग खुद को पुलिस या सरकारी कर्मचारी बताकर लोगों को डराने की कोशिश करते हैं। ये ठग वीडियो कॉल के जरिए हर समय व्यक्ति की हरकतों पर नजर रखते हैं कि आप क्या कर रहे हैं, कहां जा रहे हैं और किससे बात कर रहे हैं। एक तरह से वीडियो कॉल की मदद से ये ठग व्यक्ति को घर में ही नजरबंद कर देते हैं। ये ठग पुलिस गिरफ्तारी का डर दिखाते हैं और इस गिरफ्तारी से बचने के लिए लोग इनकी बात मान लेते हैं। इसके बाद ये ठग धीरे-धीरे जांच का डर दिखाकर लोगों से पैसे ट्रांसफर करने को कहते हैं। असल में कभी डिजिटल अरेस्ट तो कभी निवेश और जॉब के नाम पर ठगी। आए दिन हजारों लोग जालसाजों की बातों में आकर अपनी मेहनत की कमाई गंवा रहे हैं।

दरअसल यह जालसाजी और लूटने की आधुनिकतम प्रौद्योगिकी है। ये अपराधी पढ़े-लिखे इंजीनियर नहीं, बल्कि बेहद औसत किस्म के होते हैं, लेकिन वे ‘साइबर अपराध’ के पक्के खिलाड़ी हैं। हरेक जालसाजी में एक पुलिस वाला होता है, जिसकी वर्दी नकली होती है। उसके अलावा, सीबीआई, ईडी, कस्टम, नारकोटिक्स, कभी-कभार रिजर्व बैंक आदि का प्रतिनिधि भी बताते हैं। नकली सर्वोच्च अदालत भी दिखा दी जाती है और फर्जी वारंट भी पेश कर दिया जाता है। वर्तमान में भारत की बड़ी आबादी सोशल नेटवर्किंग साइट्स का उपयोग करती है। भारत में सोशल नेटवर्किंग साइट्स के उपयोग के प्रति लोगों में जानकारी का अभाव है। इसके साथ ही अधिकतर सोशल नेटवर्किंग साइट्स के सर्वर विदेश में हैं, जिससे भारत में साइबर अपराध घटित होने की स्थिति में इनकी जड़ तक पहुंच पाना कठिन होता है।

साइबर अपराधी वाट्सएप पर ग्रुप बना रहे हैं। उस ग्रुप में गिरोह के कुछ लोग पहले से शामिल होते है। ग्रुप में लोगों को जोड़ने के बाद उन्हें पार्ट टाइम जॉब, फोन से काम रुपये कमाएं, अर्न एट होम जैसे ऑफर देते हैं। उसके बाद गिरोह के ही लोग उसमें अपनी कमाई के बारे में फर्जी बाते बताते हैं। उनके द्वारा बैंक खाता का कुछ स्क्रीन शॉट भी डाला जाता है। जिसे देख कर लोग साइबर अपराधी के झांसे में आकर अपना रुपये गवा रहे हैं। पीड़ित ने बताया कि दो-तीन बार ग्रुप से हटने के बाद भी कई बार दूसरे नाम से ग्रुप में जोड़ दिया जाता है। साइबर गिरोह में शामिल महिलाएं मैसेंजर के माध्यम से फेसबुक पर लिंक भेज कर अश्लील चैट करना शुरू करती हैं। फिर वीडियो कॉल पर अश्लील चैट करना शुरू कर उसका स्क्रीन रिकॉर्डिंग कर लोगों को फंसाती हैं। उसके बाद ठग पीड़ित से रुपये की मांग करती है। ऐसे में लोग अपनी इज्जत बचाने को लेकर ठगी का शिकार हो जाते हैं।

नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल पर 1 जनवरी से 30 अप्रैल, 2024 के बीच 7.4 लाख शिकायतें दर्ज कराई जा चुकी हैं। ‘इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर’ के मुताबिक, जालसाजियों की कई किस्में हैं-डिजिटल अरेस्ट, ट्रेडिंग स्कैम, निवेश घोटाला, रोमांस, डेटिंग स्कैम आदि। इसी साल जनवरी से अप्रैल के बीच भारतीयों ने डिजिटल फ्रॉड में 120.3 करोड़ रुपए गंवाए हैं, जबकि ट्रेडिंग घपले में 1420.48 करोड़, निवेश घोटाले में 222.58 करोड़ और रोमांस, डेटिंग स्कैम में 13.23 करोड़ रुपए खोए हैं। रपटों के मुताबिक, कई जालसाज, अपराधी म्यांमार, लाओस, कंबोडिया आदि देशों में हो सकते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक की सालाना रपट में उल्लेख है कि 2023-24 में कार्ड और इंटरनेट संबंधी फ्रॉड केस हुए हैं। सवाल यह है कि सरकार इन अपराधों से आम आदमी को कैसे मुक्ति दिला सकती है? राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक रिपोर्ट में, पिछले वित्तीय वर्ष के आंकड़ों की तुलना में दिसंबर, 2023 को समाप्त वित्तीय वर्ष के दौरान भारत में साइबर अपराध के तहत दर्ज मामले 11.8 प्रतिशत तक बढ़ गए। इन घटनाओं में फ़िशिंग हमले, रैंसमवेयर संक्रमण, डेटा उल्लंघन और वित्तीय धोखाधड़ी शामिल हैं। इसने डिजिटल भुगतान के अलावा ऑनलाइन बैंकिंग और ई-कॉमर्स के व्यापक उपयोग को बढ़ावा दिया है, जो हैकर्स या साइबर अपराधियों के लिए एकदम सही स्थिति प्रदान करता है, जिसका लाभ महामारी के बाद की अवधि में उठाया जा सकता है।

प्रधानमंत्री ने एक मूल मंत्र का सुझाव भी दिया है कि जब भी कोई ऐसी कॉल आए और आपको ‘डिजिटल अरेस्ट’ करने की कोशिश की जाए, तो आपको यह करना चाहिए-‘रुको, सोचो और फिर एक्शन लो।’ किसी भी प्रधानमंत्री ने पहली बार देश को स्पष्ट किया है कि सीबीआई, ईडी, कस्टम, पुलिस आदि सरकारी एजेंसियां फोन पर गिरफ्तारी की धमकियां नहीं देती हैं और न ही यह उनकी कार्यप्रणाली है। यदि कोई अपराध हुआ है, तो उसकी जांच करने और दंड देने की कार्यप्रणालियां तय हैं। दरअसल देश का आम आदमी इन सरकारी एजेंसियों की प्रक्रिया नहीं जानता और उनसे खौफ खाता है, लिहाजा उनकी आड़ में जालसाज लूट रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने देश को आश्वस्त भी किया है कि सरकार साइबर अपराध, जालसाजी के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने जा रही है। एजेंसियों ने अपने काम आरंभ भी कर दिए हैं। बहरहाल प्रधानमंत्री के इस सरोकार का अपना ही महत्व है, क्योंकि यह जालसाजी और डिजिटल अरेस्ट किसी महामारी की तरह फैल रही है।

साइबर सुरक्षा एजेंसी के मुताबिक जब भी ऐसा कोई फोन या ईमेल आए तो ध्यान दें कि सरकारी एजेंसियां कभी भी ऐसे प्लेटफार्म का उपयोग नहीं करती हैं। सबसे पहले संबंधित एजेंसी से सीधे संपर्क करके उनकी पहचान सत्यापित करें। घबराएं नहीं, क्योंकि जालसाज लोगों के डर का ही फायदा उठाते हैं। खुद को शांत रखें और व्यक्तिगत जानकारी साझा करने से बचें। दबाव में पैसे भेजने से बचें, क्योंकि कानूनी एजेंसियां तुरंत पैसे भेजने के लिए कभी भी दबाव नहीं डालती हैं। भारत में साइबर अपराध बढ़ रहे हैं, लेकिन उसकी विशेषज्ञ पुलिस हमारे पास नहीं है। जो सामान्य पुलिस है, उसे ही बदल-बदल कर साइबर का काम सौंप लिया जाता है। उन्हें जालसाजों की तरह महारत हासिल नहीं है और न ही वे बदलती प्रौद्योगिकी के जानकार हैं। तो साइबर फ्रॉड, डिजिटल अरेस्ट सरीखे अपराधों से हमारी व्यवस्था कैसे निपट पाएगी? साइबर अपराधी लगातार अपनी प्रौद्योगिकी और कार्यशैली बदलते रहते हैं, लिहाजा उन्हें दबोचना वाकई एक गंभीर चुनौती है।

भारत में इन अपराधों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए साइबर सुरक्षा बुनियादी ढांचे को मजबूत करना, जागरूकता बढ़ाना, प्रभावी साइबर सुरक्षा उपायों को लागू करना और सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना आवश्यक है। इन रणनीतियों को लागू करके तथा एक सक्रिय और सहयोगात्मक दृष्टिकोण को अपनाकर, भारत ऑनलाइन अपराधों को काफी हद तक कम कर सकता है और अपने नागरिकों एवं व्यवसायों के लिए एक सुरक्षित डिजिटल वातावरण बना सकता है।