संपादकीय

चिट्ठी आई है, आई है….

Kiran Chopra

बहुत साल पहले में लंदन में अपनी बहन वीना शर्मा के फंक्शन में थी, वहां पंकज उधास जी ने जब यह गजल गाई कि चिट्ठी आई है, आई है चिट्ठी…. तो वहां कोई भी ऐसा भारतीय या मेहमान नहीं था जो रोया न हो, जिसकी आंखें नम न हुई हों। कई ताे फूट-फूट कर रोये थे, क्यों​िक व जमाना भी वो था जब अपने सगे-सम्बन्धियों के साथ चिट्ठियों द्वारा ही संदेश जाते थे या काले फोन से टिक-टिक करके मिलाकर बात करते थे। मेरी शादी हुए कुछ ही समय हुआ था। मुझे उस समय इस गजल में छुपी भावना, अहसास, अपनों से मिलने-बिछुड़ने की इतनी समझ नहीं थी परन्तु अब जब गजल गाने वाले पंकज उधास नहीं रहे, उनके जाने के साथ-साथ उनकी अहमियत और साथ-साथ चिट्ठियों की अह​िमयत भी पूरी तरह समझ लग गई है।
हम जितने मर्जी आगे निकल जाएं एडवांस टैक्नोलॉजी अपना लें परन्तु जो हमारी पुरानी संस्कृति है वो चिट्ठियों, किताबों और अखबारों से यानी प्रिंट से हमेशा जुड़ी रहेगी। जो भावनाओं से सरबसर भी है और रहेगी। आज भी मेरे पास हमारी शादी पर लोगों के मुबारक की चिट्ठियां, टेलीग्राम हैं। यही नहीं अश्विनी जी के हाथों लिखी चिट्ठियां भी मौजूद हैं, जिन्हें मैं अक्सर पढ़ती हूं, आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं लेते। क्योंकि जो उन चिट्ठियों में प्यार, सम्मान, भावना भरी है वो आज व्हाट्सएप या डिजिटल या ​िकसी सोशल मीडिया फेसबुक, ट्विटर पर नहीं हो सकती। कहीं ज्यादा लाइक का सवाल है, कहीं टी.आर.पी. का सवाल है। यह ​चिट्ठियां तो दिल से लिखी जाती थीं। पूरे भाव, चाहे दुख-सुख के हों, इसमें उतारे जाते थे परन्तु आज वो कहीं खो गई हैं जिसमें लिखने के सलीके छुपे होते थे। कुशलता की कामना से शुरू होते थे, बड़ों के चरण स्पर्श पर खत्म होते थे आैर यह वे चिट्ठियां होती थीं जिसमें कभी जिन्दगी में किसी नन्हें की खबर होती थी, कहीं मां की तबियत का दर्द आैर घर में पैसे भेजने की प्रार्थना होती थी। कभी एक फौजी अपनी पत्नी, मां को चिट्ठी लिखता था वो नई ब्याही पत्नियां या इंतजार करती मां, बहनें उस चिट्ठी को सीने से लगाती थीं। हर समय डाकिये का इंतजार रहता था।
मेरी बहन जब इंग्लैंड ब्याही गई मां की आंखें हमेशा गेट पर टिकी रहती थीं कि डाकिया चिट्ठी लाएगा। कई बार रात को उठ-उठ कर उन्हें बहन की चिट्ठी पढ़ते देखा। जब चिट्ठी आती तो एक जना पढ़ता और सारा परिवार सुनता। अब तो मोबाइल पर मैसेज आते हैं और डिलीट हो जाते हैं। मुझे रोम-रोम में राम की पुस्तक के बाद भी कई चिट्ठियां प्राप्त हुईं परन्तु सब टाइप की हुई थीं। एक चिट्ठी मोहन भागवत जी के आफिस से हाथ से लिखी आई तो मन विभोर हो उठा। पुराना समय याद आ गया। अब तो चिट्ठी का गाना गाने वाला भी नहीं रहा परन्तु उसके गाए गीत-गजल हमेशा चिट्ठी की याद कराएंगे। 72 साल की आयु में दुनिया को अलविदा कह गए पंकज उधास जी के बाद जो शून्य गजल गायिकी की दुनिया में पैदा हुआ है उसे भर पाना बहुत मुश्किल है लेकिन लाखों-करोड़ों गजल प्रशंसक हैं जो पंकज उधास को कभी भूल नहीं पाएंगे। सबसे ज्यादा वो प्रसिद्ध गजल गायक तो थे ही वह ओल्ड एज के लिए बहुत कुछ करते थे जो विषय मेरे दिल के बहुत करीब है। मैं उनकी बहुत बड़ी फैन रही हूं। क्योंकि उन्होंने गजल गायिकी को अपने ही तरह अपने ही अंदाज से लोकप्रिय बनाया। वो एक साधारण इंसान थे जिन्होंने गजल को अमर किया। आज की तारीख में पंकज उधास के बिना गजल उदास है। गजल जीवित रहनी चाहिए, चिट्ठी भी जीवित रहनी चाहिए क्योंकि चिट्ठियां एक डाकूमेंट, एक आशीर्वाद, एक दुआ और संदेशों के रूप में सम्भाली जा सकती हैं। मैसेज तो डिलीट हो जाते हैं। हमारे बहुत से लीडर हुए हैं जिनकी चिट्ठियां मशहूर हैं।
चिट्ठी तो चिट्ठी है
हमेशा जीवित रहनी चाहिए
यह चिट्ठी तो है जो पंकज उधास को मरकर भी जीवित रखेगी। परदेस में भी हर भारतीय को उनकी चिट्ठी पर सलाम आएगा।