संपादकीय

रेपिस्ट को मिले फांसी

Kiran Chopra

नारी पूजनीय है, वह वंदनीय है। यह सब बातें किताबों में लिखी हैं लेकिन तस्वीर का दूसरा पक्ष बहुत खौफनाक है जो नारी की अस्मिता को पांव तले रौंदने की दर्दनाक कहानी बयान कर रहा है। आक्रोश की पराकाष्टा देखिये कि आजादी की पूर्व संध्या पर उसी अस्पताल में रात को नारी शक्ति ने धावा बोल दिया, जहां मेडिकल डॉक्टर से रेप के बाद हत्या कर दी गई।
कोलकाता में प्रशिक्षु लेडी डॉक्टर से बलात्कार और हत्या को लेकर देशभर में आक्रोश दिखाई दे रहा है। देश में बलात्कार की घटनाएं कोई नई नहीं हैं लेकिन कोलकाता बलात्कार और हत्या केस को दिल्ली के निर्भय कांड की तरह जघन्य माना जा रहा है। निर्भय बलात्कार और हत्या के बाद से शुरू हुई सामाजिक क्रांति ने तत्कालीन सत्ता की चूलें हिलाकर रख दी थीं और आक्रोषित छात्र-छात्राओं का हुजूम राष्ट्रपति भवन के द्वार पर पहुंच गया था। सामाजिक क्रांति के परिणाम स्वरूप महिलाओं के प्रति अपराधों के लिए सख्त कानून बनाए गए थे लेकिन कड़े कानून भी यौन पिपासुओं की कु​त्सित मानसिकता को नहीं बदल पाए। कोलकाता केस ने भी देशभर में डाॅक्टरों में खौफ पैदा कर दिया है और खासतौर पर महिला डाॅक्टर अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। विडम्बना यह है कि कोलकाता पुलिस ने पहले तो महिला डाॅक्टर की हत्या के मामले को आत्महत्या में बदलने की कोशिश की और जांच इत्यादि में देरी कर दी। एक सैकेंड सोचकर देखें कि उस डॉक्टर के साथ कैसा घिनौना, दर्दनाक, शर्मनाक कांड हुआ। मेरा तो मानना है गुनाहगारों को पकड़ कर उसी समय भरे बाजार चौराहे पर फांसी दे देनी चाहिए। ऐसी मानसिकता वाले लोगों के अन्दर डर, खौफ पैदा करना होगा।
आरजी कर मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल का इस्तीफा काफी नहीं है। गुनाहगार वहां कैसे पहुंचा, यह रेप क्यों किया। हत्या करने की इसकी परतें उखड़नी चाहिए। शुरू में तो केस दबाने की बात भी हुई बताई जा रही है। जब मामले ने तूल पकड़ा तब जाकर कोलकाता पुलिस ने कार्रवाई शुरू की। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा भी पुलिस को हड़काये जाने पर ही उसने कार्रवाई शुुरू की। इसी ​बीच कोलकाता हाईकोर्ट ने मामले की जांच सीबीआई के हवाले की। डाॅक्टरों को भगवान माना जाता है क्योंकि वे बीमार लोगों को नया जीवन देते हैं लेकिन अगर समाज के रक्षक ही भक्षकों का शिकार होने लगे तो फिर कौन सुरक्षित होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लालकिले से देश को सम्बोधित करते हुए इसी केस के संदर्भ में कहा कि ऐसे जघन्यतम अपराध करने वालों को फांसी की सजा होनी चाहिए और ऐसा डर पैदा होना चाहिए ताकि दूसरे अपराधी भी अपराध करने से पहले सोचे। प्रधानमंत्री ने राज्य सरकारों को भी इस दिशा में सक्रिय होकर काम करने को कहा। इस मामले को लेकर कई सवाल भी उठ रहे हैं। महिला डाॅक्टर हत्या, बलात्कार मामले में क्या आरोपियों को बचाने की कोशिश की गई है? क्या अपराध को अंजाम देने वाला एक मात्र आरोपी था? या उसके साथ कुछ और लोग भी थे। अब क्योंकि जांच सीबीआई के हवाले है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि महिला डाॅक्टर को इंसाफ मिलेगा। अब सवाल यह है कि महिलाओं के प्रति अपराधों को रोका कैसे जाए। स्थिति यह है कि आज के दौर में शहरों से लेकर गांवों तक की गलियों में युवतियों को हवस का शिकार बनाने के लिए दरिन्दे खड़े हैं। कौन दरिन्दा किसी को किस समय दबोच ले कुछ कहा नहीं जा सकता।
सवाल यह पैदा होता है कि अगर डॉक्टर भी अस्पतालों में सुरक्षित नहीं हैं तो फिर सुरक्षित कौन होगा? कोरोना के दिनों में यह भारतीय डॉक्टर और प्रशिक्षु डाॅक्टर ही थे जिन्होंने पूरे देश को संभाल लिया। लोगों के घरों में जा-जाकर दवाईं पहुंचाई और अस्पतालों में उन्हें कोरोना के इलाज के साथ-साथ बचाव के मंत्र भी दिए, तभी तो इन डॉक्टरों और डॉक्टरों से जुड़े संस्थानों पर फूल बरसाए गए थे लेकिन दु:ख इस बात का है कि जब-जब रेप से जुड़े ऐसे कांड होते हैं तो मामला कुछ दिन गर्म रहता है और बाद में सब कुछ भुला दिया जाता है। अस्पतालों में हड़ताल हुई क्योंकि डॉक्टर्स ऐसा कांड न हो, उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो तथा जिस महिला डॉक्टर से रेप के बाद हत्या की गई हो उसके गुनाहगार को तुरंत फांसी दिए जाने की मांग कर रहे हैं जो कि गलत नहीं है। मेरा यह मानना है कि हड़ताल को लेकर समर्थन या विरोध की बात नहीं है लेकिन राष्ट्र की मांग है कि गुनाहगार को फांसी के लिए व्यवस्था तेज होनी चाहिए। फास्ट ट्रैक आधार पर न सिर्फ केस चलें बल्कि उसकी भी समय सीमा महीनाभर तय हो जाए और इस अवधि में गुनाहगार की सजा सुनिश्चित कर दी जाये तो यह अपने आप में एक बड़ा उदाहरण होगा। देश में यौन शोषण से जुड़े अपराधों की पेंडिंग व्यवस्था को छोड़कर तुरंत न्याय की व्यवस्था होनी चाहिए। हमें ऐसे केसों में तारीख पर तारीख की नहीं इंसान दर इंसाफ की व्यवस्था चाहिए।
राजनीति से ऊपर उठकर हर पार्टी को इस दिशा में जो संभव हो सके वह करना चाहिए। सरकार के साथ सहयोग भी करना चाहिए लेकिन गुनाहगार बचकर नहीं निकलना चाहिए। नारी सशक्तिकरण केवल किताबी शब्द नहीं बल्कि समाज में नारी और बेटियों की मजबूती चाहिए। यही भारत की पहचान है। नारी दुर्गा है, भक्ति है, शक्ति है और काली भी है। गुनाहगारों को यह सबक सिखाना होगा और सरकार को गुनाहगार के दिल में एक खौफ बैठाना होगा ताकि भविष्य में कोई ऐसी हरकत न कर पाए। यही रोष या आक्रोश अगर इंसाफ के लिए बुलंद हो रहा है तो इसका गंभीर चिंतन और इस मामले पर उपाय भी अविलंब होना चाहिए। वारदात के बाद तुरंत न्याय किसी भी बड़े गुनाह के खात्मे के लिए काफी है। इसे आप मेरी सलाह मानिए या न्याय के लिए मेरी मांग समझिए लेकिन इसकी जरूरत पूरे देश में तुरंत लागू करने की है। उम्मीद है कि सरकार इस कांड की गंभीरता को समझकर जल्द गिरफ्तार हो चुके गुनाहगार को कड़ी सजा भी तुरंत दिलाएगी।