पिछले वर्ष 7 अक्तूबर को हमास द्वारा महिलाओं और बच्चों सहित 1200 से अधिक इजराइली नागरिकों की नृशंस हत्या तथा 200 से अधिक इजराइलियों के अपहरण से शुरू हुआ युद्ध समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है। गाजा में हमास के आतंकियों पर और लेबनान में हमास के सहयोगी हिजबुल्लाह पर किए गए इजराइल के प्रतिशोधात्मक हमले से अब कहीं अधिक बड़ी आग भड़कने का खतरा पैदा हो गया है। ईरान को 1 अक्तूबर को इजराइल के विरुद्ध 180 बैलिस्टिक मिसाइलों के हमले के लिए दंडित किया जाएगा। कहने की जरूरत नहीं है कि जब हमास ने 7 अक्तूबर 2023 को इजराइली रक्षा बलों (आईडीएफ) को आश्चर्यचकित कर दिया था और एक संगीत समारोह में आनंद ले रहे निर्दोष पुरुषों और महिलाओं की बेरहमी से हत्या कर दी थी, तब से वह और उसका साथी आतंकवादी संगठन हिजबुल्लाह इजराइल की निरंतर गोलाबारी का शिकार बन रहे हैं।
अपनी शानदार खुफिया जानकारी के दम पर आईडीएफ ने अपने दुश्मनों पर बहुत बड़ी मार की है। लेबनान स्थित शिया आतंकवादी समूह हिजबुल्लाह के करिश्माई नेता हसन नसरल्लाह की हत्या से बड़ी कोई मार नहीं है, जिसने पिछले साल गाजा पर हमले के बाद से ही इजराइल को रॉकेट हमलों से परेशान कर रखा है। युद्ध में स्वयं उतरने के प्रति अनिच्छुक और लेबनान में हिजबुल्लाह और यमन में हूती विद्रोहियों जैसे अपने समर्थकों को हथियार प्रदान करके ही संतुष्ट रह रहे ईरान को आखिरकार अपने लोगों का मनोबल बढ़ाने के लिए हमला करने के लिए बाध्य होना पड़ा लेकिन इस हमले के बाद भी ईरान की कमजोरी नजर आई, क्योंकि सर्वोच्च नेता अली खामेनेई इजराइल को यह भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहे थे कि इजराइल द्वारा हमास और हिजबुल्लाह नेताओं की हत्या के जवाब में उसके पास 180 मिसाइलें ही थीं।
ईरान इस्लामी राष्ट्रों के बीच एक बहिष्कृत देश है, जिसने लंबे समय से अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में अपनी जगह बनाई है, यमन में सऊदी अरब समर्थित गठबंधन के खिलाफ हूतियों का समर्थन किया है, सीरिया में बशीर अल असद शासन का समर्थन किया है और व्यापक इस्लामी दुनिया में आमतौर पर अमेरिका समर्थित पश्चिम एशियाई शक्तियों को परेशान किया है। हाल ही में चीन और रूस इसके एकमात्र सहयोगी के रूप में उभरे हैं लेकिन सशस्त्र संघर्ष में दोनों देशों में से कोई भी देश इसमें शामिल नहीं होना चाहेगा ।
दरअसल, अगर दुनिया के मुस्लिमों में एकता होती तो अमेरिका के पूर्ण समर्थन के बावजूद भी इजराइल इतने लंबे समय तक जंग नहीं लड़ पाता। विश्व में इस्लाम का नेतृत्व करने के बावजूद भी ईरान और सऊदी अरब के बीच शिया-सुन्नी विभाजन अंतर्निहित है जो मुस्लिम उम्माह को अलग करता है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि लेबनान में भी नसरल्लाह की मौत पर लोगों के एक बड़े वर्ग ने राहत महसूस की थी, जिनकी देश के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन पर हिंसक पकड़ ने एक तबके के लोगों को हमेशा के लिए डरपोक बना दिया था, क्योंकि लोग हिजबुल्लाह के सशस्त्र तूफानी सैनिकों के प्रकोप से भयभीत थे।
इस बीच, अब जब इजराइल का पलड़ा भारी हो गया है तो इसकी पूरी संभावना है कि वह अपने उत्तरी भाग में रहने वाले 60,000 से अधिक नागरिकों की सुरक्षा के लिए लेबनान के साथ अपनी सीमा पर एक बफर जोन स्थापित करेगा। वहीं अपनी ओर से इजराइल ज़मीन पर लड़ाई को न्यूनतम संभव रखते हुए अपनी हवाई श्रेष्ठता के साथ आगे बढ़ना चाहेगा। आने वाले दिनों में घटनाएं कैसे सामने आएंगी अभी यह तो स्पष्ट नहीं है। पर, इजराइल ने इस पहल को जब्त कर लिया है और लेबनान से आतंकवादी हमलों के खिलाफ अपनी उत्तरी आबादी को बचाने के लिए वह जो कर सकता है उसके द्वारा वह सब कुछ करने की पूरी संभावना है।
वहीं इस बीच, पश्चिम एशिया में युद्ध की आशंका के कारण कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि कम होती दिख रही है, खासकर ईरान द्वारा युद्ध को और आगे बढ़ाने की अनिच्छा को देखते हुए। पर, यदि इजराइल ईरान के तेल बुनियादी ढांचे को नष्ट कर देता है तो वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में भारी वृद्धि हो सकती है क्योंकि ईरान प्रतिदिन लगभग दो मिलियन बैरल या यूं कहे कि वैश्विक आपूर्ति का दो प्रतिशत हिस्सा देता है।
– वीरेंद्र कपूर