यह एक ऐतिहासिक और गौरवमय क्षण है। यह क्षण गणतंत्र दिवस से भी जुड़ा हुआ है क्योंकि संविधान की मूल प्रति में मौलिक अधिकारों से जुड़े अध्याय में अयोध्या लौट रहे राम, सीता और लक्ष्मण का ख़ूबसूरत चित्र है। अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा पूर्ण श्रद्धा से सम्पन्न हो गई। 500 वर्षों का इंतज़ार ख़त्म हुआ। देशभर में इसे लेकर जो उत्साह और ख़ुशी है उससे पता चलता है कि लोग किस तरह इस क्षण का इंतज़ार कर रहे थे। विशेष श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है जिनके नेतृत्व में यह गौरवपूर्ण क्षण के हम साक्षी हैं। जो मंदिर बना है उसकी भव्यता हमारी कलाकारी की उत्कृष्ट मिसाल है। यह अंतर नहीं पड़ता कि अभी मंदिर पूरा नहीं हुआ, रामलला की स्थापना इसे प्राण देती है। अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था कि "यह अनोखा धर्म है जहां एक पत्थर को भी तिलक लगा कर पूजा जा सकता है"। और यहां तो रामलला भव्य मंदिर में विराजमान हैं। ख़ुशी यह भी है कि मर्यादा पुरुषोत्तम का मंदिर बनाते समय पूरी मर्यादा का ध्यान रखा गया। कहीं कोई टकराव नहीं, कोई कड़वाहट नहीं, कहीं विजय का उद्घोष नहीं, कोई बदले की भावना नहीं। इस ऐतिहासिक अवसर पर अपने प्रभावशाली भाषण, जो शायद उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण भाषण है, में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की भावना व्यक्त की है, "रामलला के इस मंदिर का निर्माण भारत समाज की शान्ति, धैर्य, आपसी सद्भावना और समन्वय का प्रतीक है। हम देख रहे हैं कि निर्माण किसी आग को नहीं बल्कि ऊर्जा को जन्म दे रहा है…राम सिर्फ़ हमारे नहीं राम सबके हैं"। पूरा ध्यान रखा गया कि भावनाएं भड़क न जाएं। कोई विजयी जयकारा नहीं। कोई उत्तेजना नहीं दी गई। इसीलिए यह अवसर सारे देश में शांतमय ढंग से सम्पन्न हो गया।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी कहा है कि "हमें कलह को विदाई देनी है…हमें समन्वय से चलना है"। उन्होंने कड़वाहट को मिटा कर, विवाद और संघर्ष को समाप्त कर भारतवर्ष के नव निर्माण का आह्वान किया है। उनकी बात सही है। आशा है यह संदेश नीचे तक पहुंचेगा। यह बदला लेने या हिसाब बराबर करने का मौक़ा नहीं, सबको साथ लेकर चलने का है। मर्यादा पुरुषोत्तम तो विधि, अनुशासन,पराक्रम, सुव्यवस्था, विनयशीलता, सत्यता, आज्ञाकारिता, बलिदान, और सामंजस्य के प्रतीक थे। वह एकता के प्रतिरूप थे विभाजन के नहीं। यही हमारा सदियों से चरित्र रहा है। किसी भी देश ने इतने महापुरुष और दार्शनिक पैदा नहीं किए जितने भारतवर्ष ने किए हैं। दुनिया के बड़े-बड़े धर्म जिन्होंने मानवता को रास्ता दिखाया है, इस धरती में जन्मे हैं। यह संतोष का बात है कि विपक्षी नेताओं को भी निमंत्रण भेजा गया। वह नहीं आए यह उनकी कमजोरी है। वह विरोधाभास,अनिश्चय और अस्थिरता के मरीज़ हैं। इसी प्रकार मुस्लिम पक्ष ने हठधर्मिता दिखाई है। उन्हें समझना चाहिए था कि यह कोई आम स्थल नहीं है जिसे अदालतों में घसीटा जा सकता है। अगर उन्होंने उदारता दिखाई होती तो देश का इतिहास और राजनीति दोनों अलग होती। आशा है अनुभव से सीखते हुए वह काशी और मथुरा के बारे ज़िद छोड़ देंगे। जो इतिहास की धारा का विरोध करते हैं उन्हें वह बहा ले जाती है।
इस ऐतिहासिक क्षण में हमें यह नहीं भूलना कि हम एक संवैधानिक लोकतंत्र है जहां संविधान और क़ानून के अनुसार चलना है। हम धार्मिकता में बह नहीं सकते। हमें प्रतिस्पर्धी धार्मिकता से भी दूर रहना है। पाकिस्तान और दूसरे इस्लामी देशों की मिसाल हमारे सामने है। जिन्होंने मिलिटेंट इस्लाम अपनाया है वह सब तबाह हो गए हैं। यूएई जैसे देश तरक्की कर रहे तो इसलिए कि वह उदार इस्लाम को अपनाए हुए हैं। अब तो साऊदी अरब भी बदल रहा है। इस्लाम के पवित्र स्थल मदीना में बिना सिर ढके केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का स्वागत बताता है कि वह देश कितना बदल गया है। हमें भी इस शुभ अवसर पर अपना संतुलन नहीं खोना। हमें धार्मिकता और आधुनिकतावाद के बीच संतुलन बना कर रखना है क्योंकि भारत मध्य मार्ग पर ही चल सकता है। स्वामी विवेकानंद ने भी शिकागो में कहा था कि, "मैं ऐसे धर्म का अनुयायी होने का गर्व महसूस करता हूं जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम संस्कृति दोनों की शिक्षा दी है"। यह हमारे धर्म का असली मर्म है। धार्मिकता और रस्मों में उलझ कर इस संदेश को ओझल नहीं करना। विकास की पहली शर्त आंतरिक शान्ति और साम्प्रदायिक सद्भावना है। एक राष्ट्र खुद से नहीं लड़ सकता। न ही आर्टीफिशल इंटेलिजेंस के जमाने में देश में अवैज्ञानिक स्वभाव को ही फैलने देना चाहिए।
यह संतोष का बात है कि दुनिया में चारों तरफ़ अफ़रातफ़री के माहौल में भारत स्थिरता का द्वीप नज़र आने लगा है। यूरोप में फ़रवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था। यह युद्ध अभी भी चल रहा है और कोई भी सम्भावित विजेता नज़र नहीं आता। अभी दुनिया इस स्थिति से निपट ही रही थी कि हमास ने इज़राइल पर हमला कर दिया। इज़राइल का जवाब ग़ाज़ा की तबाही थी। इस युद्ध का नतीजा दुनिया आजतक भुगत रही है। हूती बाग़ियों ने लाल सागर से गुजर रहे जहाज़ों पर हमले कर दुनिया के व्यापार को ख़तरे में डाल दिया है। ईरान सीरिया और उत्तरी इराक़ पर बम बरसा रहा है। अमेरिका हूतियों पर बमबारी कर रहा है। चीन ताइवान को लगातार धमकियां देता रहता है और इर्द-गिर्द सैनिक अभ्यास करता रहता है। नया तमाशा ईरान और पाकिस्तान द्वारा एक दूसरे पर मिसाइल दागने का है। दोनों एक दूसरे को 'ब्रदरली नेशन' कहते हैं, पर यह विचित्र भाईचारा है कि मिसाइल दाग कर प्यार का प्रदर्शन हो रहा है। पिछले कुछ महीनों में इजराइल, हमास, अमेरिका, इंग्लैंड, ईरान, रूस, युक्रेन, लेबनॉन, सीरिया, पाकिस्तान, इराक़, उत्तरी कोरिया ने या तो किसी पर मिसाइल दागी है या खुद उन पर मिसाइल या ड्रोन का हमला हो चुका है।
तेज़ी से अनिश्चित बन रहे वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य में भारत एक परिपक्व प्रगतिशील आर्थिक ताक़त बन कर सामने आया है जो वैश्विक संतुलन क़ायम रखने में प्रमुख भूमिका निभा सकता है। चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने पिछले महीने एक रिपोर्ट में भारत की "तेज आर्थिक और सामाजिक प्रगति" और प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में "बड़ी महाशक्ति की रणनीति" की प्रशंसा की है। इसके कुछ ही दिन बाद अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी बलिंकन ने "भारत की असाधारण सफलता की कहानी" की चर्चा करते हुए कहा है कि मोदी सरकार की नीतियों ने "बड़ी ज़िन्दगियों पर सकारात्मक प्रभाव डाला है"। यह दिलचस्प है कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा के दोनों छोर, अमेरिका और चीन हमारी प्रशंसा कर रहे हैं। कोई अकारण किसी की प्रशंसा नहीं करता।
अब जबकि हम एक और गणतंत्र दिवस मना रहे हैं, हम अपनी उपलब्धियों पर नाज कर सकते हैं। हम पड़ोसी पाकिस्तान पर नज़र दौड़ाए तो स्पष्ट हो जाएगा कि आज़ादी के बाद हमें सही नेतृत्व मिला जिसने हमें सही रास्ते पर रखा। आज़ादी के बाद जो भी सरकारें आईं सब ने विकास में योगदान दिया। कई बार इस संविधान पर हमले हुए,पर यह बचता रहा क्योंकि जनता की इसमें आस्था है। यह एक उदार दस्तावेज है जो हमें मध्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। संविधान स्वीकार करता है कि भारत एक विविधतापूर्ण देश है और सब को साथ लेकर चलने की ज़रूरत है। जब देश आज़ाद हो रहा था तब चर्चिल ने कहा था कि यह 'तिनकों के बने लोग हैं जिनका कुछ ही वर्षों में नामोनिशान नज़र नहीं आएगा'। हमने चर्चिल को किस शानदार ढंग से गलत साबित किया। आज जबकि एक हिन्दू जो अपनी धार्मिकता नहीं छिपाता, ब्रिटेन का प्रधानमंत्री है, वह देश भारत के साथ विशेष आर्थिक समझौता करने के लिए हाथ-पैर मार रहा है।
यह जो सफ़र रहा है इसका श्रेय मैं विशेष तौर पर दो सरकारों को देना चाहता हूं, पहली नेहरू सरकार और वर्तमान मोदी सरकार। इंदिरा गांधी ने भी बंगलादेश बनवाया, पर उन्होंने एमरजैंसी लगा संविधान का गला भी घोट दिया था। मनमोहन सिंह सरकार ने आर्थिक प्रगति की और अमेरिका के साथ सम्बंधों को 'इतिहास की हिचकिचाहट' से हटा कर सही रास्ते पर डाल दिया। पर मनमोहन सिंह अपने घर के मालिक नहीं थे। नेहरू की आलोचना आजकल फ़ैशन बन गया है, पर उन्होंने ही आधुनिक भारत की नींव रखी और देश को सही दिशा में चलाया। आज़ादी के समय हमारा सौभाग्य था कि हमारे पास नेहरू के अतिरिक्त पटेल, राजेन्द्र प्रसाद, अब्दुल कलाम आज़ाद, सी. राजागोपालाचारी जैसे नेता थे।
अम्बेडकर के साथ मतभेदों के बावजूद संविधान बनाने की ज़िम्मेदारी उन्हें सौंपी गई क्योंकि प्राथमिकता देश निर्माण को दी गई व्यक्तिगत मतभेदों को नहीं। नेहरू के बाद सबसे अहम सरकार नरेन्द्र मोदी की वर्तमान सरकार है जिसके दस साल के कार्यकाल ने देश को बदल डाला है। अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है, इंफ्रास्ट्रक्चर में वह काम हुआ है कि देश पहचाना नहीं जाता। डिजिटल अर्थव्यवस्था बनने में हम कई पश्चिमी देशों को मात दे गए हैं। लोगों को सीधा खाते में पैसा मिलता है जिससे मिडलमैन का भ्रष्टाचार ख़त्म हो गया है। दुनिया में हमारा क़द ऊंचा हो रहा है। सर्जिकल स्ट्राइक करवा पाकिस्तान को भी संदेश भेज दिया गया है कि हमारी बर्दाश्त की भी सीमा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत मज़बूत नेतृत्व दिया है और अभी तो काम जारी है। चुनौतियां हैं और रहेंगी, पर इस गौरवमय क्षण में अपनी उपलब्धियों का जश्न मनाना तो बनता है। हम आत्मविश्वास के साथ भविष्य का सामना कर सकते हैं।
– चंद्रमोहन