संपादकीय

यह मोदी और शाह का कमाल है !

Veerendra Kapoor

अब 3 दिसम्बर को मतगणना वाले दिन कुछ भी हो लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने 3 राज्यों में भाजपा को चुनावों में खड़ा जरूर कर दिया है। तीनों राज्य हिन्दी भाषी हैं। कल तक छत्तीसगढ़ को भी भाजपा के हाथ से निकलता हुआ दिखाया जा रहा था, परन्तु अब भाजपा ने वहां अपने आपको मुकाबले में खड़ा जरूर किया है। इसके लिए पार्टी को मोदी का आभार व्यक्त करना चाहिए। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जहां दो दिन पहले मतदान हुआ वहां पार्टी ने अपनी पूरी लड़ाई लड़ी है। हालांकि मिजोरम में किसी भी पार्टी का कोई भी बड़ा नेता नहीं गया परन्तु फिर भी प्रधानमंत्री ने वहां अपील करके ही भाजपा को एक अलग स्थान दिलाया है।
मध्य प्रदेश में यद्यपि मुख्यमंत्री शिवराज चौहान को ज्यादा तव्वजो नहीं दी गई परन्तु फिर भी मोदी और शाह की जोड़ी ने वहां पार्टी को मुकाबले में बनाए रखा। छत्तीसगढ़ में जिस पुराने मुख्यमंत्री रमन सिंह को लगभग वनवास में माना जा रहा था, को मुकाबले में उतार कर भाजपा ने लड़ाई को कांटेदार बना दिया है, तो कमाल मोदी और शाह की जोड़ी का है। यह भाजपा की असफलता ही मानी जाएगी कि रमन को हासिये पर रखा गया और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को आगे बढ़ने दिया गया लेकिन यह भी सच है कि भाजपा ने वहां मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की आपसी लड़ाई को देख लिया था। उसके मुताबिक ही रणनीति बनी लेकिन यह सच है कि वहां कांग्रेस का पलड़ा फिर भी भारी है परन्तु फिर भी मोदी और शाह की जोड़ी ने अपना काम तो कर ही दिखाया है।
ईडी ने महादेव एप घोटाले में जब मुख्यमंत्री बघेल के ​िखलाफ जांच किए जाने की बात कही तब कहीं जाकर उनके तेवर भी ढीले पड़ गए परन्तु फिर भी यह बात जरूर चर्चा का विषय रही है और विश्लेषक मंथन भी कर रहे हैं कि आखिरकार मध्य प्रदेश में शिवराज ​चौहान को सीएम का दावेदार क्यों नहीं घोषित किया गया। कमोबेश यही स्थिति छत्तीसगढ़ की भी रही जहां रमन सिंह को मुकाबले में तो उतारा गया लेकिन उन्हें भी सीएम प्रत्याशी का दावेदार नहीं बनाया गया।
कहा जाता है कि बीजेपी पार्टी को अभियान के शुरुआती दिनों में राज्य में सत्ता बरकरार रखने के लिए बहुत कम समय मिला था लेकिन कड़ी मश्क्कत के बाद उसने अपनी पकड़ वापस पा ली है। और यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी अगर वह सत्ता बरकरार रखने में कामयाब रही। यदि ऐसा होता है तो इसकी मुख्य रूप से दो वजह होंगी पहली चौहान की मुफ्तखोरी जो विपक्षी कांग्रेस द्वारा मतदाताओं को दी जाने वाली 'गारंटी' से कहीं अधिक मेल खाती है और दूसरी अफवाहों के साथ राज्य कांग्रेस पार्टी में आंतरिक कलह का होना। यहां तक ​​कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार कमलनाथ और पूर्व मुख्यमंत्री व वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के बीच भी अच्छे रिश्ते नहीं हैं।
वहीं राजस्थान में भाजपा ने अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवारों में भ्रम की कहानी को जारी रखते हुए मोदी-शाह की जोड़ी ने वसुंधरा राजे को किनारे करने में कामयाबी हासिल की है। पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य में पार्टी के सबसे लोकप्रिय नेता को चुनाव की घोषणा होने तक कम प्रोफ़ाइल बनाए रखने के लिए मजबूर किया गया था। भले ही उन्हें और उनके मुख्य समर्थकों को भाजपा ने टिकट दिए थे लेकिन पार्टी में अटकलें तेज थीं कि अगर पार्टी अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने में सफल रही तो वह मुख्यमंत्री पद के लिए स्वत: पसंद नहीं हो सकती हैं। यहां भी भाजपा ने कई केंद्रीय नेताओं को विधानसभा चुनाव में उतारा है जिससे अटकलें लगाई जा रही हैं कि पार्टी की जीत की स्थिति में उनमें से किसी एक को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। हालांकि, आलोचकों का तर्क है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व इतना कमजोर है, उसमें करिश्मे की कमी है कि वह राज्य के लोकप्रिय नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करने और फटकार को आमंत्रित करने का जोखिम नहीं उठा सकता।
ठीक उसी तरह जैसे कि गहलोत ने गांधी परिवार को फटकार लगाई थी कि उनके खास सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनें। इससे गहलोत ने न केवल गांधी परिवार को ललकारा बल्कि राजस्थान में कांग्रेस पार्टी पर अपनी पकड़ और मजबूत कर ली। अब भाजपा भी वही गलती करने जा रही है जो इंदिरा गांधी ने अपनी लोकप्रियता के चरम पर राज्य के मजबूत नेताओं को हाशिए पर रखकर की थी। सौभाग्य से जैसे ही विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार शुरू हुआ भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने संशोधन किया और राज्य के नेताओं को उचित महत्व दिया, चाहे वह छत्तीसगढ़ में रमन सिंह हों, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान हों या राजस्थान में वसुंधरा राजे हों। इससे तीनों राज्यों में भाजपा की संभावनाएं बढ़ी हैं, हालांकि हमें वास्तविक नतीजे के लिए तीन दिसंबर तक इंतजार करना होगा।

– वीरेन्द्र कपूर