संपादकीय

ट्रम्प राष्ट्रपति पद के अयोग्य

Aditya Chopra

दुनिया के सबसे बड़े, उदार, पारदर्शी और जवाबदेह लोकतन्त्र अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को यदि उनके ही राज्य कोलोराडो का सुप्रीम कोर्ट उन्हें अपने देश का पुनः राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के अयोग्य करार दे दे तो इसका सीधा मतलब यही निकलता है कि यह व्यक्ति लोकतन्त्र की मर्यादा के साथ देश का शासन चलाने योग्य नहीं है। कोलोराडो के सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए हो रहे प्राइमरी मतदान में हिस्सा लेने से ट्रम्प को रोक दिया है। ट्रम्प रिपब्लिकन पार्टी के सदस्य हैं और पिछली बार 2020 का चुनाव भी वह इसी पार्टी के टिकट पर लड़े थे और डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन से पराजित हो गये थे। इन चुनावों में अपनी पराजय को ट्रम्प ने प्रारम्भिक तौर पर अस्वीकार करते हुए अपने समर्थकों को अमेरिकी संसद के परिसर क्षेत्र 'कैपिटल हिल' इलाके में तोड़फोड़ और विद्रोह करने के लिए उकसाया तक था क्योंकि इन समर्थकों ने बैलेट पेपरों की गिनती से निकले चुनाव परिणामों को मानने से इन्कार कर दिया था। जिस दिन यह घटना हुई थी वह 21 जनवरी, 2021 का दिन था और अमेरिका के इतिहास में इस दिन को देश के प्रजातन्त्र का 'काला दिन' कहा जाता है। इस दिन लोकतन्त्र की सारी मर्यादाएं और सीमाएं तोड़ दी गई थीं जिससे केवल अमेरिका के लोग ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लोग सकते में आ गये थे और सोचने लगे थे कि क्या कभी अमेरिका जैसे सभ्य और कानून को मानने वाले देश में एेसा भी हो सकता है?
कोलोराडो के सुप्रीम कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से अपना फैसला देते हुए ट्रम्प को इस कृत्य को सत्ता के खिलाफ असन्तोष और बगावत पैदा करने वाला मानते हुए उन्हें देश के संविधान के अनुच्छेद तीन के 14वें संशोधन में दिये गये उपबन्धों के अनुरूप खतावार माना है और पुनः राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के नाकाबिल घोषित कर दिया है। इस कानून में यह प्रावधान है कि बगावत भड़काने के जुर्म में दोषी पाये जाने पर कोई भी पूर्व राष्ट्रपति पुनः चुनाव नहीं लड़ सकता और न ही किसी सरकारी पद पर बैठ सकता है। हालांकि ट्रम्प अपने देश अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकते हैं और वहां से राहत की उम्मीद कर सकते हैं क्योंकि मुल्क की इस सर्वोच्च अदालत में उनकी पार्टी के न्यायाधीशों का बहुमत है।
अमेरिका में न्यायालयों की व्यवस्था भारत से अलग है। वहां न्यायाधीशों की नियुक्ति इसकी संसद के उच्च सदन कांग्रेस में दल गत आधार पर आये सदस्यों की संख्या पर निर्भर करती है। इस सदन में विपक्षी पार्टी रिपब्लिकन का बहुमत है अतः उसकी पसन्द के जज अधिक हैं। इस देश में दूसरा प्रत्यक्ष सदन 'हाउस आफ रिप्रजंटेटिव' होता है। अमेरिका के संघीय ढांचे की एक और विशेषता है कि वहां प्रत्येक राज्य का अपना चुनाव आयोग और इसके अपने नियम होते हैं और अपना सुप्रीम कोर्ट भी होता है। कुल 50 राज्यों वाले इस देश में राज्यों की राष्ट्रीय ढांचे के 'छाते' के भीतर स्वतन्त्र सत्ता होती है जिसमें पृथक-पृथक राज्यों के अपने झंडे भी होते हैं। मगर राष्ट्रीय आधार पर भी एक सुप्रीम कोर्ट होता है जिसमें विभिन्न राज्यों के सुप्रीम कोर्टों द्वारा दिये गये फैसलों के खिलाफ अपील दायर की जा सकती है। अमेरिका में संविधान भी सबसे पुराना है। इसके संविधान के अनुच्छेद तीन में 14वां संशोधन 1866 से लेकर 1868 के बीच किया गया था जिसमें अमेरिकी समाज में पहले गुलामों की तरह रह रहे अश्वेत या काले लोगों को नागरिक स्वतन्त्रता के अधिकार दिये गये थे। यह संशोधन 1861 से 1865 तक अमेरिका में चले गृह युद्ध के बाद किया गया था। इसके बाद से अब तक संभवतः यह पहला अवसर होगा कि इस कानून की तसदीक सुप्रीम कोर्ट में होगी। अनुच्छेद तीन के 14वें संशोधन के अनुसार सत्ता के खिलाफ बगावत भड़काने में सहायक पाये जाने पर कोई भी व्यक्ति निगम पार्षद के पद से लेकर सिनेटर या राष्ट्रपति पद तक के अयोग्य होगा चाहे वह कोई पूर्व राष्ट्रपति ही क्यों न हो। एेसा व्यक्ति किसी भी सरकारी पद पर भी नहीं बैठ सकता। हालांकि अमेरिका में कोई अपराधी भी राष्ट्रपति पद का चुनाव जेल से ही लड़ सकता है मगर वह राष्ट्रद्रोह जैसी कार्रवाई में संलिप्त नहीं होना चाहिए।
ट्रम्प का 2016 से लेकर 2020 तक का कार्यकाल बहुत ही विवादास्पद माना जाता है। कई घरेलू व विदेशी मामलों में उनके द्वारा किये गये फैसले जनता के बीच आलोचना की वजह बने रहे। इनमें अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजें हटाने का फैसला भी उन्हीं के कार्यकाल में लिया गया था और अमेरिका आने वाले आव्रजकों के लिए सख्त नियम भी उनके कार्यकाल में बनाये गये थे। इसके साथ ही ट्रम्प पर यह आरोप भी लगता था कि वह कब अपनी जुबान से पलट जायें कोई नहीं जानता। एक प्रकार से वह अमेरिका के सबसे अविश्वसनीय राष्ट्रपतियों की कतार में खड़े कर दिये गये थे। कोलोराडो के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार वह 2024 नवम्बर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के प्राइमरी में भी अपनी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर नहीं खड़े हो सकते। यहां के नियम के असार पहले पार्टी के सदस्य अपने प्रत्याशी का चुनाव करते हैं। इन्हें ही प्राइमरी कहा जाता है।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com