अमेरिका में प्राइमरी चुनावों के बाद यह लगभग साफ हो गया है कि राष्ट्रपति चुनावों में डोनाल्ड ट्रम्प और जो बाइडेन के बीच जोरदार टक्कर होगी। रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार ट्रम्प का चुनाव चिन्ह हाथी होगा और डैमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन का चुनाव चिन्ह गधा होगा। अब यह बहस दिलचस्प हो गई है कि चुनावों में हाथी दहाड़ेगा या गधा दुलती मारेगा। प्राइमरी इलैक्शन में रिपब्लिकन पार्टी में ट्रम्प को चुनौती दे रही भारतीय मूल की निक्की हेली ने पराजय के बाद अपनी उम्मीदवारी वापिस ले ली है। अमेरिकी नागरिकों का कहना है कि इस बार भी प्रत्याशी वही हैं जो 2020 में आमने-सामने थे। बस साल बदल गया है। 2020 के चुनाव में बाइडेन ने कांटे की टक्कर में ट्रम्प को मात दी थी। तेज हुई राजनीतिक सरगर्मियों के बीच अमेरिका के लोग दोनों की उम्मीदवारी को लेकर बंटे नजर आते हैं। सर्वेक्षणों से पता चलता है कि बहुत से अमेरिकियों को इन दोनों का चुनाव मैदान में आमने-सामने होना पसंद नहीं आ रहा। ट्रम्प के राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने को लेकर बहुत सी आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं, लेकिन उन्हें काफी हद तक कानूनी राहत मिल चुकी है।
ट्रम्प के खिलाफ ढेर सारे कानूनी मामले हैं जिनमें से चार आपराधिक अभियोग भी शामिल हैं। ट्रम्प की बचाव टीम ने जिस तरह से रणनीति बनाई, उसके चलते अब ट्रम्प को मुकद्दमों में काफी मोहलत मिल गई है। ट्रम्प अपने सनकी स्वभाव के कारण पहले से ही काफी बदनाम हैं। ट्रम्प पर पिछले चुनावों में हार के नतीजों को पलटने की कोशिश, क्लासीफाइड डाॅक्यूमैंट अपने पास रखने और यूएस कैपिटल पर हमला करने के लिए अपने समर्थकों को उकसाने के केस चल रहे हैं लेकिन ट्रम्प ने संघीय आपराधिक मामलों से अभियोजन से छूट के पूर्व राष्ट्रपति के अधिकार को लेकर अपील की थी। जब तक ट्रम्प को अभियोजन से प्रतिरक्षा के अधिकार पर फैसला नहीं हो जाता तब तक सुप्रीम कोर्ट ने उनके खिलाफ निचली अदालत के फैसलों को स्थगित रखा है। ट्रम्प पर मुकदमा चलाने की लड़ाई ने अमेरिकी सियासत की दरारों को उजागर कर दिया है। मतदाता ट्रम्प की क्षमताओं और उनके द्वारा खड़ा किए जाने वाले सम्भावित जोखिमों के आधार पर बंटे हुए हैं। डैमोक्रेट और रिपब्लिकन राष्ट्रीय स्तर पर अपने इन लोकप्रिय नेताओं के मुकाबले कोई दूसरा विश्वसनीय विकल्प खोजने में नाकाम रहे हैं।
अमेरिकी मतदाताओं की नजर में उनके सामने कोई अन्य नेता नहीं है, जिसके झंडे तले पूरा देश एकजुट हो सके। इस बार के चुनाव में अर्थव्यवस्था, विदेश नीित, जलवायु परिवर्तन और लोकतंत्र प्रमुख मुद्दे हैं। ट्रम्प और बाइडेन दोनों ही अमेरिकी इतिहास में सबसे उम्रदराज राष्ट्रपति होंगे। ट्रम्प अपने तेजतर्रार रवैये के चलते बाइडेन पर भारी साबित होते दिखाई देते हैं। अब इस बात का आकलन शुरू हो गया है कि अगर ट्रम्प दुबारा चुनाव जीते तो पूरी दुनिया पर इसका क्या असर हो सकता है। ट्रम्प अपने पहले कार्यकाल में काफी आक्रामक नजर आए थे। वे लगातार कहते रहे हैं कि अमेरिका को नाटो का हिस्सा नहीं होना चाहिए। इसमें यूरोप के लिए बेकार ही अमेरिकी डॉलर खर्च होते हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर ट्रम्प खुद युद्ध बंद कराने के दावे करते रहे हैं। अपने शासनकाल में ट्रम्प चीन पर बहुत ही बरसे थे और यहां तक कि कोरोना वायरस को चाइनीज वायरस कहा था, लेकिन चीन के खिलाफ असल कार्रवाई जो बाइडेन ने की है। जहां चीन के खिलाफ ट्रम्प ने व्यापार को ज्यादा बैलेंस करने के लिए कार्रवाई की, बाइडेन की सख्त कार्रवाई राजनीतिक भी है। इसलिए जानकार मानते हैं कि चीन चाहेगा कि ट्रम्प वापस सत्ता में आएं ताकि व्यापार के जरिए मामला संभाला जाए।
ट्रम्प फिर से जीते तो रूस से जंग लड़ रहे यूक्रेन को झटका हो सकता है और ट्रम्प की सत्ता में वापसी इजराइल को और मजबूती प्रदान करेगी। रूस भी उनकी जीत से प्रसन्न ही होगा। अब सवाल यह है कि ट्रम्प के जीतने पर भारत पर क्या असर होगा। भले ही डोनाल्ड ट्रम्प और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कैमिस्ट्री अच्छी रही है लेकिन टैरिफ मामले पर और जलवायु परिवर्तन से निपटने को लेकर दोनों देशों में काफी मतभेद रहे हैं। ट्रम्प का पाकिस्तान विरोधी रवैया भारत के मन माफिक ही है। अवैध प्रवासियों के मामले में भी ट्रम्प का रवैया काफी सख्त रहा है। अब देखना यह है कि अमेरिकी मतदाता दोनों के बारे में क्या सोचता है। ट्रम्प बाइडेन को डिबेट की चुनौती दे रहे हैं। देखना है चुनावों का आखिरी दौर आते-आते मतदाताओं का रूझान किसकी तरफ ज्यादा रहता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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