संपादकीय

अमेरिकी चुनाव और भारत

विश्व के सबसे शक्तिशाली और सबसे प्राचीन लोकतन्त्र का वाहक माने जाने वाले देश अमेरिका में आज 5 नवम्बर को अगले चार साल के लिए राष्ट्रपति का चुनाव हो रहा है।

Aditya Chopra

विश्व के सबसे शक्तिशाली और सबसे प्राचीन लोकतन्त्र का वाहक माने जाने वाले देश अमेरिका में आज 5 नवम्बर को अगले चार साल के लिए राष्ट्रपति का चुनाव हो रहा है। इन चुनावों में असली मुकाबला भारतीय मूल की श्रीमती कमला हैरिस व पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच होने जा रहा है। श्री ट्रम्प जहां 2016 से 2020 तक अपने देश के राष्ट्रपति रहे वहीं श्रीमती हैरिस वर्तमान में उप-राष्ट्रपति हैं। अमेरिका में दो ही प्रमुख राजनैतिक पार्टियां हैं- रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी। श्री ट्रम्प रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार हैं तो कमला हैरिस डेमोक्रेटिक पार्टी की। रिपब्लिकन पार्टी का चुनाव चिह्न हाथी है तो डेमोक्रेटिक पार्टी का जैबरा।

अमेरिका की चुनाव प्रणाली भारत से बहुत भिन्न है। संयुक्त राज्य अमेरिका में कुल पचास राज्य हैं और प्रत्येक राज्य का अपना स्वतन्त्र चुनाव आयोग है। इस देश के संघीय ढांचे में राष्ट्रपति चुनाव बहुत विकेन्द्रीकृत तरीके से होते हैं। हालांकि इसका अपना संघीय चुनाव आयोग भी है मगर उसके अधिकार भारत के चुनाव आयोग की तरह राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रपति चुनाव कराने के नहीं हैं और वह केवल चुनावों का वित्तीय संभाग ही देखता है। प्रत्येक राज्य अपने चुनावी नियम-कायदों के अनुसार ही चुनाव कराता है। इन राज्यों के पास राष्ट्रपति चुनने के लिए पहले से निश्चित इलैक्टर (चयनक) की संख्या होती है। प्रत्येक राज्य पार्टी गत आधार पर इन इलैक्टरों को चुनता है और अन्त में सभी राज्यों में जिस पार्टी के इलैक्टर ज्यादा चुने जाते हैं उसी पार्टी के प्रत्याशी को विजयी घोषित कर दिया जाता है।

अमेरिका में कुल पचास राज्य हैं मगर राजधानी वाशिंगटन डीसी से भी अलग से इलैक्टर चुने जाते हैं। राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे भी इसी के अनुरूप घोषित किये जाते हैं क्योंकि कोई राज्य अपने चुनाव नियमों के अनुसार जल्दी परिणाम घोषित कर देता है और कोई देर से परन्तु चुनाव होने के सवा महीने बाद 15 दिसम्बर तक सभी राज्यों को चुनाव परिणाम घोषित करने होते हैं जिससे अगले राष्ट्रपति की घोषणा में और देरी न हो। अमेरिका चुंकि विश्व शक्ति है अतः उसके राष्ट्रपति द्वारा अपनाई गई नीतियां दुनिया के हर महाद्वीप व उपमहाद्वीप के देशों को प्रभावित करती हैं। जहां तक भारत का सम्बन्ध है तो 1990 के बाद से ही भारत में आर्थिक उदारीकरण शुरू होने के बाद से अमेरिका हमारे करीब आता गया है जबकि इससे पहले के स्वतन्त्र भारत के दौर में इसके साथ भारत के सम्बन्ध खट्टे-मीठे ही रहे। इससे पहले तक अमेरिका का झुकाव भारतीय उप-महाद्वीप में पाकिस्तान की तरफ रहता था। जिसके उदाहरण हमारे सामने हैं।

1965 और 1971 के पाकिस्तान के साथ हुए युद्धों में अमेरिका ने पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया था। 1971 के बंगलादेश युद्ध में इसने बंगाल की खाड़ी में अपना सातवां एटमी जंगी जहाजी बेड़ा भी तैनात कर दिया था परन्तु उस समय सोवियत संघ ने हमारा खुल कर साथ दिया था और स्पष्ट कर दिया था कि यदि अमेरिकी जहाजी बेड़े से जरा भी हरकत हुई तो उसका माकूल जवाब दिया जायेगा। मगर 1990 के बाद से जो आर्थिक बदलाव आया उससे अमेरिका की निगाहों में अन्तर आने लगा जिसकी परिणिती 2008 में भारत-अमेरिकी परमाणु करार के रूप में हुई। इसके बाद से ही अमेरिका भारत के बहुत निकट आने लगा और इसके साथ रक्षा के क्षेत्र तक में भी सहयोग बढ़ने लगा। मगर इस दौरान चीन के दूसरी विश्व शक्ति के रूप में उभरने से अमेरिका ने भारत को अपना ‘मिजाजी मित्र’ कहना शुरू किया और फलसफा पेश किया कि दोनों देशों में लोकतन्त्र होने की वजह से भारत उसका नैसर्गिक दोस्त है।

मगर हकीकत यह है कि आज भारत को जितनी टैक्नोलॉजी व निवेश के क्षेत्र में अमेरिका की जरूरत है उससे कहीं ज्यादा अमेरिका को भारत की आवश्यकता है। इसकी वजह यह है कि चीन भारत का निकटतम पड़ोसी है और चीन से अमेरिका की आर्थिक व सामरिक लाग-डांट जारी है। भारत दोनों देशों के बीच शक्ति सन्तुलक की भूमिका में आसानी से आता है। इसीलिए भारत की मनमोहन सरकार के दौर से ही यह कोशिश रही है कि चीन व अमेरिका किसी भी रूप से किसी भी क्षेत्र में अपनी हदें पार न करें। यह कार्य एक ओर वह हिन्द महासागर व प्रशान्त क्षेत्र में क्वार्ड के जरिये भारत-अमेरिका-आस्ट्रेलिया-जापान के चतुष्कोण को बना कर कर रहा है तो दूसरी ओर सैनिक क्षेत्र में अमेरिका व रूस दोनों से ही अच्छे सम्बन्ध बनाकर रख रहा है।

अब अमेरिका में यदि ट्रम्प जीतते हैं तो निश्चित रूप से रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी होने की वजह से उनकी सरकार की नीतियां भारत की तरफ झुकाव वाली होंगी जबकि कमला हैरिस के डेमोक्रेटिक पार्टी की प्रत्याशी होने की वजह से उनकी सरकार की नीतियां भारतीय उपमहाद्वीप में बहुत सन्तुलित होंगी मगर भारत के साथ गहरी दोस्ती उनका भी आधार रहेगी। हम भारतीय रिपब्लिकन पार्टी व डेमोक्रेटिक पार्टी को भारत की भाजपा व कांग्रेस पार्टी के रूप में देखें तो कुछ भी गलत नहीं होगा परन्तु हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि अमेरिका सबसे पहले अपने हितों को ऊपर रखता है अतः श्रीमती कमला हैरिस के भारतीय मूल के होने से अन्तर्राष्ट्रीय आपसी सम्बन्धों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वह अपनी पार्टी की उदारवादी समझी जाने वाली नीतियों को ही चलाएंगी।

हमें यह मालूम होना चाहिए कि 2008 में भारत-अमेरिकी परमाणु करार का डेमोक्रेटिक पार्टी ने ही सबसे ज्यादा विरोध किया था जबकि रिपब्लिकन पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रपति जार्ज बुश इसके कट्टर समर्थक थे। मगर 2008 के चुनावों में अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के श्री बराक ओबामा चुनाव जीत गये थे। वह दो बार अमेरिका के राष्ट्रपति रहे और एक बार रिपब्लिकन पार्टी के डोनाल्ड ट्रम्प भी राष्ट्रपति रहे और उनके बाद डेमोक्रेटिक पार्टी के बाईडन भी राष्ट्रपति हैं मगर समझौते की शर्तों के अनुसार भारत अभी तक परमाणु ईंधन सप्लायर्स देशों ( एनएसजी) का सदस्य नहीं बन पाया है।