संपादकीय

जम्मू-कश्मीर में मतदान

Aditya Chopra

जम्मू-कश्मीर विधानसभा के लिए हो रहे चुनावों का आज दूसरा चरण पूरा हो गया जिसमें राज्य की 90 सीटों में से 26 पर वोट पड़े। तीसरा और आखिरी चरण 1 अक्तूबर को होगा जबकि प्रथम चरण 18 सितम्बर को पहले ही हो चुका है। इन चुनावों में राज्य की जनता जिस उत्साह से बढ़-चढ़कर भाग ले रही है वह निश्चित रूप से यह बताता है कि आम कश्मीरी नागरिक का भारत के संविधान में पूरा भरोसा है और वह भारत की लोकतान्त्रिक प्रणाली का अभिन्न हिस्सा है। हालांकि जम्मू-कश्मीर फिलहाल पूर्ण राज्य न होकर केन्द्र प्रशासित अर्ध राज्य है मगर इसके बावजूद आम मतदाताओं में अपने जनप्रतिनिधियों को चुनने की तीव्र इच्छा है। इससे पहले राज्य में चुनाव 2014 में हुए थे और उनमें भी राज्य की जनता ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था मगर दूसरे चरण के मतदान को देखने के लिए जम्मू-कश्मीर में पहली बार विदेश से 16 देशों के प्रतिनिधि भी कश्मीर पहुंचे हैं। यह विदेशी प्रतिनिधिमंडल भारत सरकार के निमन्त्रण पर आया है। जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रीय दल नेशनल काॅन्फ्रेंस व पीडीपी के नेता इसकी आलोचना कर रहे हैं और कह रहे हैं कि जब भारत सरकार का यह आधिकारिक रवैया रहता है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अन्दरूनी मामला है तो इसकी चुनावी प्रक्रिया को देखने के लिए विदेशों से प्रतिनिधियों को क्यों बुलाया गया है? दूसरी तरफ भाजपा के क्षेत्रीय नेतृत्व का कहना है कि राज्य में पूरी तरह शान्ति पूर्ण माहौल में चुनाव हो रहे हैं जो कि भारत में एक पारदर्शी प्रक्रिया है अतः विदेशी भी यदि इस लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के गवाह बनते हैं तो यह भारत के हित में ही है। मगर नेशनल काॅन्फ्रेंस के नेता व पूर्व मुख्यमन्त्री श्री उमर अब्दुल्ला का कहना है कि एक तरफ तो भारत की सरकार विदेशी राजनयिकों को बुला रही है और दूसरी तरफ विदेशी पत्रकारों को चुनाव प्रक्रिया को देखने की इजाजत नहीं दे रही है।
चुनावों का विवरण देने के लिए जितने भी विदेशी पत्रकारों ने इजाजत मांगी थी उन्हें साफ मना कर दिया गया। आखिरकार विदेशी प्रतिनिधिमंडल को कश्मीर के चुनाव दिखाने से क्या हासिल होगा। क्योंकि जब कोई विदेशी संस्था या सरकार कश्मीर के बारे में कोई रिपोर्ट आदि पेश करती है तो भारत सरकार उसे यह कह कर बरतरफ कर देती है कि यह देश के अंदरूनी मामलों में दखल है। विदेशी प्रतिनिधिमंडल में अमेरिका, यूरोपीय संघ, रूस, आॅस्ट्रेलिया समेत 16 देशों के नुमाइन्दे शामिल हैं। इनके साथ भारत के विदेश मन्त्रालय के भी चार अधिकारी हैं। इससे भारत सरकार की यह मंशा समझी जा सकती है कि वह विश्व के सामने कश्मीर की वर्तमान लोकतान्त्रिक व शान्ति प्रिय स्थिति का मुजाहिरा करना चाहती है। क्योंकि कश्मीर के बारे में पाकिस्तान जिस प्रकार का अनाप-शनाप प्रचार करता है उसका पर्दाफाश होने में मदद मिलेगी। राज्य में आज जिन 26 सीटों पर वोट पड़े उनमें कश्मीर घाटी की 15 सीटें हैं और जम्मू क्षेत्र की 11 सीटें हैं। इन 26 सीटों में से नौ सीटें जनजाति समुदाय के लिए आरक्षित हैं। जम्मू-कश्मीर में सीटों का आरक्षण पहली बार किया गया है जो कि अनुच्छेद 370 के समाप्त होने के बाद ही संभव हो सका है। इनमें से आठ सीटें जम्मू क्षेत्र में पड़ती हैं जबकि कश्मीर में केवल एक सीट कंगन की ही आती है।
जम्मू-कश्मीर में पहाड़ी , गूजर व बकरवाल आदि जनजातियों की जनसंख्या अच्छी-खासी मानी जाती है। इन सभी 26 सीटों पर कुल 239 प्रत्याशी खड़े हुए हैं जिनमें प्रमुख रूप से कांग्रेस, भाजपा, नेशनल काॅन्फ्रेंस व पीडीपी के उम्मीदवारों के नाम लिये जा सकते हैं। अभी तक हुए मतदान से जो अनुमान लगाया जा रहा है उसमें असली मुकाबला कांग्रेस-नेशनल काॅन्फ्रेंस गठजोड़ व भाजपा के बीच ही माना जा रहा है मगर इसमें फर्क यह है कि कश्मीर घाटी की सीटों पर टक्कर नेशनल काॅन्फ्रेस व अन्य छोटे क्षेत्रीय दलों के बीच है जबकि जम्मू क्षेत्र में असली संघर्ष कांग्रेस व भाजपा के बीच है। इस बार राज्य की कभी प्रमुख माने जाने वाली पीडीपी पार्टी मैदान में बहुत कमजोर मानी जा रही है। दूसरी प्रमुख बात यह है कि घाटी की सीटों पर भाजपा ने नामचारे के लिए ही अपने प्रत्याशी उतारे हैं मगर भारी संख्या में निर्दलीय व पंजीकृत छोटी पार्टियों के प्रत्याशी खड़े हुए हैं। इससे राजनैतिक समीकरण क्या बन कर उभरेंगे, इस बारे में भ्रम का वातावरण बना हुआ है।
पिछले 2014 के चुनावों में पीडीपी ने काफी अच्छी सफलता प्राप्त की थी और चुनावों के बाद भाजपा के साथ मिलकर गठबन्धन सरकार भी बनाई थी। पिछले चुनावों में भाजपा को भी अपने जीवनकाल में सर्वाधिक 25 सीटें प्राप्त हुई थीं। मगर इस बार परिस्थितियां बदली हुई कही जा रही हैं। विगत लोकसभा के 2019 के चुनावो में भी पीडीपी का प्रदर्शन बहुत फीका रहा था। मगर ये अर्धराज्य की विधानसभा के लिए चुनाव हो रहे हैं। इन चुनावों को राज्य में केन्द्र के शासन के बारे में राय शुमारी भी कुछ राजनैतिक पंडित बता रहे हैं क्योंकि 5 अगस्त, 2019 के बाद से राज्य में उपराज्यपाल की मार्फत केन्द्र सरकार का शासन ही चल रहा है।