युद्धों से कुछ हासिल नहीं होता। हारती है तो सिर्फ मानवता। साहिर लुधियानवी की युद्ध पर लिखी नज्म याद आ रही है।
''खून अपना हो या पराया हो, नसल-ए-आदम का खून है आखिर
जंग मशरिक में हो कि मगरिब में, अमन-ए-आलम का खून है आखिर
टैंक आगे बढ़े कि पीछे हटे, कोख धरती की बांझ होती है
फतह का जश्न हो कि हार का सोग, जिन्दगी मैय्यतों पर रोती है
जंग तो खुद ही एक मसला है, जंग क्या मसलों का हल देगी
आग और खून आज बख्शेगी, भूख और अहतियाज कल देगी
इसलिए एे शरीफ इंसानों जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आंगन में शमां जलती रहे तो बेहतर है।''
मजहब और जमीन के लिए इजराइल और हमास में जंग जारी है। चारों तरफ विध्वंस ही विध्वंस है। युद्ध के नियमों का घोर उल्लंघन हो रहा है। गाजा शहर में चारों तरफ लाशें बिखरी पड़ी हैं। युद्ध में लगभग 5000 बच्चों के मारे जाने से चारों तरफ चीत्कार है। अस्पताल कब्रिस्तान में तब्दील हो चुके हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही युद्ध अपराधों को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं। हमास के आतंकियों ने इजराइल में वहशीपन की सारी हदें पार की और महिलाओं, बच्चों और बूढ़ों के साथ उन्होंने हैवानियत की। इसके बाद इजराइल ने हमास को खत्म करने के लिए युद्ध छेड़ दिया। सवाल यह भी है कि हमास के आतंकियों पर युद्ध के नियम लागू नहीं होते तो फिर इजराइल को जिम्मदार कैसे ठहराया जा सकता है। युद्ध अपराधों का मसला तो अभी उठ रहा है लेकिन अब प्राथमिकता यही है कि युद्ध कैसे रुके।
इसी बीच संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है जिसने गाजा में चल रहे युद्ध में तुरन्त एक मानवीय रोक और गलियारा बनाए जाने की अपील की गई है। युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का इस तरह का यह पहला प्रस्ताव है। 15 सदस्यीय परिषद में इस प्रस्ताव को 12-0 से पास किया गया है। तीन सदस्य अमेरिका, ब्रिटेन और रूस वोटिंग से अनुपस्थित रहे हैं। इस प्रस्ताव को माल्टा ने पेश किया जो परिषद के 15 सदस्यों को काफी हद तक साथ लाने में सफल रहा। इस तरह सुरक्षा परिषद् ने नागरिकों की सुरक्षा और सशस्त्र संघर्षों में बच्चों की दुर्दशा पर आवाज बुलंद की। अमेरिका और ब्रिटेन ने अनुपस्थित रहकर इजराइल को एक तरह से झटका दिया है। इजराइल के गाजा में ताबड़तोड़ एक्शन से अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन भी खुद को असहज महसूस कर रहे हैं। उन्होंने इजराइल को चेताया भी था कि वह गाजा में फिलस्तीनी नागरिकों और बच्चों की सुरक्षा के लिए अपने दायित्व को समझे।
इस प्रस्ताव के ड्राफ्ट की भाषा पर कई सवाल भी उठ रहे हैं। प्रस्ताव में मानवीय विराम के लिए मांग की बजाय आह्वान तक सीमित कर दिया। इसने हमास द्वारा बंधक बनाए गए सभी बंधकों की तत्काल और बिना शर्त रिहाई की मांग को भी कमजोर कर दिया। प्रस्ताव में संघर्ष विराम और हमास की ओर से 7 अक्तूबर को इजराइल पर किए गए हमलों का भी कोई जिक्र नहीं है। रूस के संयुक्त राष्ट्र राजदूत वासिली नेबेंजिया ने मतदान से ठीक पहले प्रस्ताव में संशोधन करने का असफल प्रयास किया। रूस ने शत्रुता की समाप्ति के लिए तत्काल, टिकाऊ और निरंतर मानवीय संघर्ष विराम का आह्वान किया। इस संशोधन पर मतदान में पांच देश पक्ष में थे, अमेरिका ने विरोध किया और नौ देश अनुपस्थित रहे। ऐसे में इसे अपनाया नहीं गया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को ग्लोबल साऊथ सम्मेलन को वर्चुअली सम्बोधित करते हुए इजराइल-हमास युद्ध में नागरिकों की मौतों की निंदा की है। इससे पहले भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में उस प्रस्ताव का समर्थन किया था जिसमें कब्जे वाले फिलस्तीनी क्षेत्र में इजराइली बस्तियां बसाने की निंदा की गई थी। हालांकि पिछले महीने जब संयुक्त राष्ट्र महासभा में गाजा में इजराइल के हमले को लेकर युद्ध विराम का प्रस्ताव लाया गया तो भारत वोटिंग से बाहर रहा था। तब भारत के रुख को इजराइल के प्रति मोदी सरकार की नरमी के तौर पर देखा गया था। भारत आतंकवाद के पूरी तरह से खिलाफ है। इसलिए उसने हमास के हमले की निंदा की थी। भारत शांति का दूत कहलाता है और वह मानवता की रक्षा के लिए हमेशा खड़ा है।
भारत ने हमेशा इजराइल-फिलस्तीन संकट का समाधान द्विराष्ट्र के सिद्धांत में देखा है। इजराइल के विरोध में वोट देकर भारत ने एक बार फिर अपनी स्वतंत्र विदेश नीति का परिचय दिया है और ग्लोबल साऊथ की आवाज बनने की ठोस कोशिश की है। नई दिल्ली का सैद्धांतिक रुख सामने आया है, क्योंकि उस इजराइल के साथ मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर रहने वाले एक संप्रभु फिलस्तीन राज्य की स्थापना की दिशा में बातचीत शुरू करने की वकालत की है। बेहतर होगा कि इजराइल युद्ध विराम कर गाजा के लोगों को मदद करने, उन्हें खाद्य पदार्थ और दवाइयां मुहैय्या कराने में सहयोग करे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com