देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अमरीका दौरे के दौरान खालिस्तानी समर्थकों ने जमकर नारेबाजी करते हुए प्रधानमंत्री का विरोध किया हालांकि न्यूयार्क की पुलिस ने खालिस्तानीयों पर सख्ती से कार्यवाही करते हुए एक खालिस्तानी प्रदर्शनकारी को गिरफ्तार भी कर लिया। इतना ही नहीं, पुलिस ने पीएम मोदी के कार्यक्रम स्थल के आस-पास से भड़काऊ प्रचार सामग्री को भी हटा दिया। सवाल यह बनता है कि आखिरकार खालिस्तानी समर्थक भारतीय प्रधानमंत्री के विरोध में क्यों हैं जबकि आजादी के बाद से नरेन्द्र मोदी शायद ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जो सिखों की समस्याओं को समझते हुए उनके निवारण की पुरजोर कोशिश करते हैं। इसी का परिणाम है कि 75 वर्षों की अरदास के बाद करतारपुर साहिब का कोरिडोर सिख संगत के दर्शनांे के लिए खोला गया।
1984 सिख कत्लेआम को अंजाम देने वाले सज्जन कुमार जैसे दोषी सलाखों के पीछे भेजे गए। साहिजबादों की शहादत का इतिहास जो आज तक सिख कौम स्वयं देशवासियों को बताने में कहीं ना कहीं असफल रही उसे देश के बच्चे बच्चे तक पहुंचाया गया। गुरु साहिबान के पर्व सरकारी स्तर पर मनाए गये। इसके लिए समूची सिख कौम को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी टीम का आभार प्रकट करना चाहिए और शायद भारत में रहने वाले ज्यादातर सिख करते भी हैं। मगर विदेशों की धरती पर बैठकर खालिस्तान की मांग करने वाले चंद लोगों की वजह से समूची सिख कौम को शर्मसार होना पड़ता है। यह लोग भारतीय प्रधानमंत्री का ही नहीं बल्कि तिरंगे का भी अपमान करने से नहीं चूकते जबकि इतिहास गवाह है कि देश की आन बान शान तिरंगे के लिए भारतीय सिखांे ने ना जानें कितनी शहादतें दी हैं। आज भी देश की सरहदों पर तिरंगे की रक्षा हेतु सिख सैनिक तैनात रहते हैं। भाजपा से जुड़े सिख नेता रविन्दर सिंह रेहन्सी का कहना है कि मुस्लिम यां अन्य समुदाय के लोग भी हैं जो सरकार की नीतियों से नाखुश होते हैं मगर आज तक किसी ने भी तिरंगे का अपमान करने की जुर्ररत नहीं की। उनका साफ कहना है कि इन जैसे लोगों के कारण ही समूची सिख कौम को शर्मिन्दगी महसूस करनी पड़ती है।
खालसा कालेज में सिख छात्र की दस्तार उतारने पर बवाल
दिल्ली के गुरु तेग बहादुर खालसा कालेज में छात्रसंघ चुनाव के दौरान एक अमृतधारी सिख की दस्तार कुछ गैर सिख युवकों द्वारा उतारे जाने के बाद से मामला इतना तूल पकड़ गया कि देश ही नहीं विदेशों से भी इस पर प्रतिक्रियाएं आने लगी। सिख ब्रदर्सहुड इन्टरनैशनल के सैक्रेटरी जनरल गुणजीत सिंह बख्शी ने तो यहां तक कह दिया कि यह समूचे सिखों को ललकार है कि गैर सिख सिखों के कालेज में आकर सिख की दस्तार पर हाथ डाले और वहां मौजूद अन्य सिख यहां तक कि कालेज प्रशासन भी देखता रह जाए और घटना को अंजाम देने वाले वहां से निकल जायें। वैसे देखा जाए तो इससे पहले भी हर साल छात्र संघ के चुनावों के दौरान लड़ाई झगड़े अक्सर हुआ करते थे जिसे देखते हुए ही दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के प्रधान हरमीत सिंह कालका और महासचिव जगदीप सिंह काहलो के द्वारा निर्णय लिया गया था कि खालसा कालेजोें में छात्रसंघ के चुनाव करवाने के बजाए सर्वसम्मति से छात्रों का चयन कर जिम्मेवारी सौंप दी जाए। मगर विपक्षी पार्टियों को यह रास नहीं आया और उन्होंने कोर्ट का सहारा लेते हुए खालसा कालेजों की चुनावों में भागीदारी को लाजमी बनवाया जिसके बाद ऐसी घटना सामने आई कि झगड़े के दौरान एक युवक की दस्तार उतार दी गई। चाहिए तो यह था कि सभी को मिलकर दोषियों के खिलाफ कार्यवाही के लिए आवाज उठाते मगर इस घटना की आड़ में कुछ नेताओं ने अपनी राजनीति चमकाने की मंशा से मामले को पूरी तरह से तूल दिया गया, छात्रों को उकसाते हुए धरने प्रदर्शन करवाते हुए सोशल मीिडया पर जमकर वीिडयो वायरल किए, अखबारों की सुर्खियां बटोरते हुए दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी को जमकर कोसा। यह भी जगजाहिर है कि आज जो लोग भाजपा समर्थित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को कोस रहे हैं कुछ समय पहले तक जब उनकी पार्टी का भाजपा से गठजोड़ था तो उनकी मदद से ही एस ओ आई खालसा कालेजों में विजय परचम लहराया करते थे। कई दिन पहले से ही पंजाब से शिरोमणी अकाली दल के नुमाइंदे आकर चुनाव की बागडो संभाल लिया करते और बदले में दूसरे कालेजों में खुलकर एबीवीपी का समर्थन करती थी।
इस घटना के लिए जहां परमजीत सिंह सरना, मनजीत सिंह जीके विरोध दर्ज करवा रहे हैं तो वहीं दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी ने भी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मदद से दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करवाने के लिए पहल की है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग चेयरमैन इकबाल सिंह लालपुरा ने भी दिल्ली के पुलिस कमिश्नर से 1 अक्टूबर तक मामले की पूरी रिपोर्ट तैयार कर पेश करने को कहा है। कालेज के चेयरमैन तरलोचन सिंह, खजानची इन्द्रप्रीत सिंह कोछड़ और प्रिंसीपल गुरमोहिन्दर सिंह ने भी इस तरह की घटनाए भविष्य मंे ना हो इस पर सभी से मिलकर रणनीति तैयार करने की बात कही है। वहीं सिख बुद्धिजीवियों की मानें तो उनका साफ तौर पर कहना है इस घटना के बाद कोर्ट को समझाते हुए तुरन्त प्रभाव से खालसा कालेजों में चुनावों पर प्रतिबंध लगवाना चाहिए जिससे कि गुरु साहिबान के नाम से चलने वाले खालसा कालेजों में इस तरह की गुंडागर्दी बंद हो सके। यहां एक बात और गौर करने वाली है कि आज भले ही परमजीत सिंह सरना और मनजीत सिंह जीके अकाली दल का हिस्सा होने के चलते छात्रसंघ चुनावों की प्रोढ़ता करते हों मगर 11 वर्षों तक शिरोमणी अकाली दल दिल्ली की कमान संभालते हुए परमजीत सिंह सरना की पार्टी ने कभी भी छात्रसंघ चुनावों में अपने उम्मीदवार खड़े नहीं किए थे।
आतिशी कैबिनेट में भी सिख मंत्री नहीं
दिल्ली मंे आज तक भाजपा यां कांग्रेस जितनी भी सरकारें बनी सभी में एक सिख मंत्री को जगह अवश्य दी जाती रही है क्योंकि दिल्ली की 70 में से 40 के करीब सीट ऐसी हैं जहां पर जीत हार का फैसला सिख यां पंजाबी वोटरों के द्वारा ही किया जाता है मगर अरविंद केजरीवाल की 3 बार सरकार बनीं, एक बार तो 3 सिख विधायक जीतकर आए, अभी भी दो सिख विधायक मौजूद हैं मगर किसी एक को भी मंत्रिमण्डल में शामिल नहीं किया गया। हाल ही मे अरविंद केजरीवाल के इस्तीफा देने के बाद आतिशी के मुख्यमंत्री बनने पर उम्मीद की जा रही थी कि हो सकता है किसी सिख या पंजाबी को अवश्य मंत्रिमण्डल मंे शामिल किया जायेगा मगर ऐसा हुआ नहीं जिसके बाद से सिखों में ही नहीं बल्कि पंजाबी समुदाय मंे भी कहीं ना कहीं रोष देखने को मिल रहा है।
वैसे भी अरविंद केजरीवाल की सरकार पर पंजाबी भाषा के साथ सौतेला व्यवहार किये जाने के आरोप लगते रहे है। पंजाबी भाषा को सातवें पायदान पर लेजाना हो यां फिर पंजाबी टीचर्स की अनदेखी हो इस सबके चलते आप सरकार बैकफुट पर ही रही है जिसका खामियाजा आने वाले चुनावों में आम आदमी पार्टी को भुगतना पड़ सकता है।
– सुदीप सिंह