संपादकीय

हिन्दू धर्म पर टिप्पणियां क्यों?

Shera Rajput

केवल भारत में ही वे सनातन धर्म की तुलना एचआईवी-एड्स और मलेरिया से, जिन्हें अति शीघ्र समाप्त किया जाना चाहिए, करके बच सकते हैं। क्यों? क्योंकि… हम हिंदू हैं। डीएमके प्रमुख और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन और लोकसभा के वरिष्ठ डीएमके सदस्य ए. राजा जरा भारत में प्रचलित अन्य धर्मों के खिलाफ एक भी शब्द कहकर दिखाएं और उसी तरह का परिणाम भुगतें, जिस तरह का परिणाम एक टेलीविजन पैनलिस्ट ने हाल ही में इस्लाम के संस्थापक के ऐतिहासिक संदर्भ को लेकर भुगता।
उस महिला पैनलिस्ट के मामले में, जिसने पूरे देश में पैगंबर के खिलाफ कथित निंदनीय टिप्पणियों के लिए अपने खिलाफ दायर कई मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट से सुरक्षा की मांग की थी और इन्हें दिल्ली की एक अदालत में एक साथ जोड़ने की मांग की थी, को सुप्रीम कोर्ट के एक माननीय न्यायाधीश के गुस्से की बौछार का सामना करना पड़ा था- जिनका मौजूदा मामले से कोई लेना-देना नहीं था।
दुर्भाग्य से, वही सर्वोच्च न्यायालय हिंदू धर्म के घोर अपमान को बेहद चातुर्यपूर्ण और सावधानी से डील करता नजर आ रहा है। अल्पसंख्यकों के धर्मों के खिलाफ एक शब्द भी बोलने वाले पर कार्रवाई करने का इसका उत्साह सार्वजनिक मंचों से सनातन धर्म को खुलेआम गाली देने वालों को लंबी छूट देने के बिल्कुल विपरीत है। द्रमुक नेता जिस उग्रता के साथ अब हिंदू धर्म की आलोचना कर रहे हैं, उसका संबंध इस तथ्य से हो सकता है कि तमिलनाडु भाजपा प्रमुख के अन्नामलाई के नेतृत्व में पार्टी को राज्य में व्यापक आधार मिला है। राष्ट्रीय स्तर पर मोदी की लोकप्रियता और अन्नाद्रमुक में आंतरिक कलह ने भाजपा को मतदाताओं के लिए तीसरा विकल्प बनने में मदद की है।
अगर भगवा पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु में कुछ सीटें जीत ले तो राजनीतिक हलकों को आश्चर्य नहीं होगा। यूपीए सरकार में 2-जी घोटाले के केंद्र में रहे मंत्री ए राजा द्वारा हिंदू धर्म पर किए गए हमले तमिलों के एक बड़े वर्ग को भी पसंद नहीं आए, हालांकि हो सकता है कि वे भाजपा के समर्थक न हों। यह तथ्य व्यापक रूप से व्याप्त है कि 2-जी घोटाले में न्याय की घोर अनदेखी की गई, जिससे लोगों का गुस्सा और बढ़ गया है। राजा जैसे रिश्वत लेने वालों को आज़ाद छोड़ दिया गया जबकि रिश्वत देने वालों को जेल में डाल दिया गया।
चुनावी बांड और जमीनी हकीकत
चुनावी बांड के खरीदारों और लाभार्थी राजनीतिक दलों के नामों का खुलासा करने के शीर्ष अदालत के आदेश का पालन नहीं करने पर भारतीय स्टेट बैंक के खिलाफ अवमानना ​​याचिका दायर की गई है। वहीं एसबीआई ने भी अदालत में याचिका दायर की है कि उसे जानकारी एकत्र करने और इसे जारी करने के लिए जून के मध्य तक का समय दिया जाना चाहिए। लेकिन हकीकत यह है, जैसा कि पूर्व वित्त सचिव एस.सी. गर्ग ने बताया कि एसबीआई के लिए भी चुनावी बॉन्ड के खरीदारों का उनके प्राप्तकर्ताओं से मिलान करना असंभव है, हालांकि यह ज्ञात है कि सत्तारूढ़ भाजपा को बड़ी मात्रा में ई-बॉन्ड प्राप्त हुए थे। बॉन्ड-खरीदारों के नामों का उन पार्टियों के साथ मिलान करना कठिन है, जिन्हें ये दिए गए थे, क्योंकि एसबीआई को प्राप्तकर्ता पार्टियों के बांड खरीदार द्वारा नाम प्रदान नहीं किए गए थे।
इस बीच, कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि चुनावी बॉन्ड के खरीददारों के नाम का खुलासा न करने के एसबीआई के कदम के पीछे भाजपा का हाथ है, अब इससे विश्वास हो सकता है अगर पार्टी खुद अपने दानदाताओं की सूची का खुलासा करने में अग्रणी हो। अनत: कांग्रेस पार्टी चुनावी बॉन्ड प्राप्त करने वाली दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी। अब उसे अपने स्वयं के बांड देने वालों को जानना चाहिए और उसे उस जानकारी को सार्वजनिक डोमेन में डालने में संकोच भी नहीं करना चाहिए।
दरअसल सच्चाई यह है कि कांग्रेस भी अपने सार्वजनिक रुख के बावजूद, चुनावी बॉन्ड के अपने दानदाताओं की सूची का खुलासा कभी नहीं करेगी। बेचे गए कुल 16,518 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड में से भाजपा को 55 प्रतिशत प्राप्त हुआ, लेकिन कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को 45 प्रतिशत प्राप्त हुआ, जिसमें कांग्रेस 1100 करोड़ रुपये से अधिक के साथ सूची में शीर्ष पर है।
भाजपा को मजबूर करने से पहले विपक्षी दलों के 'इंडिया' गठबंधन को स्वयं अपने दानदाताओं के नामों का खुलासा करना चाहिए। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला उस कहावत की याद दिलाता है कि नरक का रास्ता अच्छे इरादों से बनता है। चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक घोषित करके शीर्ष अदालत ने एक बार फिर काले धन के माध्यम से राजनीतिक फंडिंग को मजबूर कर दिया है। चुनावी बॉन्ड योजनाओं के तहत टाटा और इंफोसिस आदि जैसे प्रतिष्ठित व्यापारिक घरानों ने विशेष रूप से राजनीतिक दान के लिए ट्रस्ट बनाए थे। अब वे सभी काला धन पैदा करने और पार्टियों को फंड देने के लिए मजबूर होंगे। आदर्श रूप से चुनाव आयोग को प्रत्येक पार्टी को मिलने वाले वोटों के आधार पर सार्वजनिक निधि से पार्टियों को फंड प्रदान करने का एक तरीका तैयार करना चाहिए।

– वीरेंद्र कपूर