संपादकीय

मोदी समुद्र किनारे क्या बैठे, माेइज्जू की सरकार आई खतरे में

Shera Rajput

कूटनीति के इतिहास में संभवत: ऐसा कभी नहीं हुआ कि कोई प्रधानमंत्री अपने देश के समुद्र किनारे कुर्सी लगा कर आराम की मुद्रा में बैठा, महज एक डुबकी लगाई और तरंग इतनी तीव्रता से फैली कि समुद्र में करीब 800 किलोमीटर दूर एक देश के राष्ट्रपति की कुर्सी खतरे में पड़ गई। मुहावरे की भाषा में कहें तो कुर्सी ने कुर्सी पर निशाना साधा। जनवरी के पहले सप्ताह में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब लक्षद्वीप पहुंचे तो किसी को भी कूटनीति के समुद्र में ऐसी तरंग उठने का अंदाजा नहीं था। तरंग का प्रभाव देखिए कि महज एक महीने की अवधि में मालदीव के राष्ट्रपति माेइज्जू पर महाभियोग लाने की तैयारियां प्रारंभ हो चुकी हैं, उनकी कुर्सी खतरे में है।
भारत और मालदीव के बीच इस कटु प्रसंग के बीच मुझे मालदीव की अपनी वो यात्रा याद आ रही है जब वहां के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल गयूम से मेरी मुलाकात हुई थी, साउथ एशिया एडिटर्स फोरम के अध्यक्ष के नाते मैंने फोरम की एक बैठक मालदीव में रखी थी। हम कुछ पत्रकारों ने अब्दुल गयूम के कार्यालय से संपर्क किया कि हम मिलना चाहते हैं और हमें बुलावा भी आ गया। गयूम और उनकी पत्नी नसरीना इब्राहिम ने हमारे स्वागत में पलक-पांवड़े बिछा दिए थे, हमने साथ में उनके घर पर भोजन किया। बातचीत के दौरान गयूम दंपति ने बड़े पुलकित अंदाज में कहा था कि भारत और मालदीव के संबंध चुंबक की तरह हैं। दोनों देश एक-दूसरे से अलग राह चलने के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकते। भारत मालदीव का सबसे गहरा दोस्त है।
मौजूदा संदर्भों में मैं सोच रहा हूं कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति माेइज्जू अलग राह पर चल निकले? गयूम के बाद मोहम्मद नशीद से लेकर इब्राहिम सोलिह तक की भारत के साथ गहरी जुगलबंदी रही है। मालदीव में परंपरा रही है कि निर्वाचित होने के बाद हर राष्ट्रपति पहले भारत जाएगा। इसका कारण दोनों देशों के बीच प्यार जैसी स्थिति रही है, वैसे भी मालदीव हर जरूरत के लिए भौगोलिक रूप से भारत पर निर्भर रहा है लेकिन माेइज्जू ने परंपरा को तोड़ा। वे पहले तुर्की गए, फिर यूएई और उसके बाद भारत के सबसे बड़े दुश्मन चीन जा पहुंचे। चीन की गोद में वे पहले से खेलते रहे हैं, यहां तक कि अपने चुनाव में उन्होंने 'इंडिया आउट' लिखी हुई टी-शर्ट भी पहनी थी।
चुनाव के दौरान उन्होंने कहा था कि जीते तो भारतीय सैनिकों को मालदीव से बाहर करेंगे, भारत ने समुद्री निगरानी, खोज और मालदीव के लोगों के लिए मेडिकल इमरजेंसी के लिए दो हैलिकॉप्टर और एक विमान दिया था, इसकी देखरेख और संचालन के लिए भारत के कुछ सैनिक वहां हैं, माेइज्जू ने मार्च तक उन्हें हटाने की चेतावनी दे दी है।
इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के बेहद खूबसूरत द्वीप लक्षद्वीप जा पहुंचे। उन्होंने वहां स्नॉर्कलिंग की और थोड़ी देर समुद्र के किनारे बैठे और लोगों से आग्रह किया कि वे अपने देश के खूबसूरत समुद्र तटों का लुत्फ उठाएं। इसके बाद माेइज्जू की मंत्री मरियम शिउना ने नरेंद्र मोदी पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। मालशा शरीफ और महजूम माजिद ने भी भारत के खिलाफ बातें कीं, विवाद बढ़ा और सोशल मीडिया पर बायकॉट मालदीव ट्रेंड करने लगा। एक भारतीय पर्यटन कंपनी ने तो मालदीव के लिए निर्धारित सारी बुकिंग ही कैंसिल कर दी। दिसंबर 2023 तक मालदीव के पर्यटन में भारत शीर्ष पर था। जाहिर सी बात है कि मालदीव का पर्यटन उद्योग घबरा गया, पर्यटन उद्योग के दबाव में माेइज्जू को अपने तीनों मंत्रियों को निलंबित करना पड़ा लेकिन उन्होंने मंत्रियों को बर्खास्त नहीं किया।
माेइज्जू के भारत विरोधी रवैये के दुष्परिणाम को लेकर मालदीव में बेचैनी की स्थिति है क्योंकि तमाम दैनिक जरूरतों से लेकर दवाइयों और कलपुर्जों तक के लिए मालदीव भारत पर आश्रित है। वहां का विपक्ष इस बात को अच्छी तरह से समझ रहा है कि माेइज्जू की अकड़ मालदीव को तबाह कर सकती है। अपनी मालदीव यात्रा में मैंने महसूस किया था कि मालदीव के सामान्य लोग भारत से बहुत प्यार करते हैं। भारत को अपना बड़ा भाई मानते हैं जो हर संकट में काम आता है, भारत ने वहां सत्ता पलट की कोशिशों को नाकाम किया था। सुनामी के समय भारी मदद की थी, कोविड के समय वैक्सीन की बड़ी खुराक तो दी ही थी, कोविड की रोकथाम और उपचार में भी बड़ा योगदान दिया था, हर साल भारत बड़ी आर्थिक मदद भी करता है।
विपक्ष इस बात को समझता है। इसीलिए मालदीव के विपक्षी दल जम्हूरी पार्टी के नेता कासिम इब्राहिम ने स्पष्ट रूप से कहा है कि माेइज्जू को अपनी हरकतों के लिए भारत और उसके प्रधानमंत्री से माफी मांगनी चाहिए। चीन को लेकर वहां का विपक्ष आक्रामक हो चुका है। विपक्ष के तेवर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वहां की संसद में हाथापाई भी हो गई। विपक्ष माेइज्जू के खिलाफ अब महाभियोग की तैयारी कर रहा है, माेइज्जू के सामने अब दो ही रास्ते हैं या तो भारत से संबंध सुधारें या फिर कुर्सी गंवाएं। इतना तो तय है कि मालदीव चीन की गोद में नहीं जा सकता क्योंकि भारत की तुलना में वह कई गुना दूर है। उम्मीद करें कि माेइज्जू को ये बात समझ में आ जाएगी। मालदीव और भारत के दिल के रिश्ते बने रहेंगे, यही दोनों के हक में है।