संपादकीय

युद्ध के बीच यूक्रेन क्यों गए नरेंद्र मोदी

Rahul Kumar Rawat

करीब डेढ़ महीने पहले जिस दिन भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस पहुंचे थे उसी दिन रूस ने यूक्रेन में बच्चों के एक अस्पताल पर हमला किया था। कई बच्चों की मौत हुई थी, अमेरिका से लेकर यूरोप तक ने तब मोदी की रूस यात्रा पर निराशा जाहिर की थी। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने तो यहां तक कह दिया था कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता को मास्को में दुनिया के सबसे खूनी अपराधी को गले लगाते देखना शांति प्रयासों के लिए बहुत बड़ा झटका है। डेढ़ महीने बाद मोदी ने यूक्रेन की राजधानी कीव में शुक्रवार को जेलेंस्की को भी गले लगाया और युद्ध में मारे गए बच्चों को श्रद्धांजलि दी। मोदी की यूक्रेन यात्रा ऐसे समय हुई है जब यूक्रेन ने रूस के कुर्स्क इलाके पर बड़ा हमला करके कब्जा कर लिया है। ऐसे समय में दुनिया भर में यह सवाल तैर रहा है कि भीषण युद्ध के बीच मोदी ने यूक्रेन का दौरा क्यों किया? क्या मोदी दोनों देशों को शांति की राह पर लाने के लिए सक्रिय हो गए हैं? इस सवाल का ठीक-ठाक जवाब तलाशना अभी तो मुश्किल ही लग रहा है लेकिन उम्मीद से इनकार भी नहीं किया जा सकता है।

यूक्रेन पहुंचने से ठीक पहले पोलैंड में उन्होंने बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा कि किसी भी संघर्ष को लड़ाई के मैदान में नहीं सुलझाया जा सकता, यह बात वे पुतिन से भी पहले कह चुके हैं। फरवरी 2022 में रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया था। भारत ने इस मसले पर अपना रवैया बड़ा स्पष्ट रखा, रूस पुराना और भरोसेमंद दोस्त है इसलिए यूक्रेन पर रूसी हमले की भारत ने कभी निंदा नहीं की और न ही संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ लाए गए प्रस्तावों का समर्थन किया लेकिन यूक्रेन की मानवीय मदद में भारत पीछे नहीं रहा। 135 टन से ज्यादा सामान यूक्रेन भेजा जा चुका है, इनमें दवाएं, कंबल, टेंट, मेडिकल उपकरण से लेकर जनरेटर तक शामिल हैं. भारत ने हर मंच पर यह बात भी दोहराई कि जंग समस्या का समाधान नहीं है। इस बीच चीन और ब्राजील ने अपनी ओर से शांति प्रस्ताव रखे थे। उससे भी पहले मार्च 2022 में तुर्की ने रूस और यूक्रेन के बीच बैठकें भी कराई थीं लेकिन कोई हल नहीं निकला।

विशेषज्ञ यह मानते हैं कि चीन पर किसी का विश्वास नहीं है और ब्राजील की वैसी हैसियत नहीं है। विश्लेषक यह भी मानते हैं कि भारत पर रूस का तो पूरा भरोसा होगा ही, यूक्रेन के भी भरोसा न करने का कोई कारण नहीं है। माना यह जा रहा है कि शांति को लेकर भारत और यूक्रेन गंभीर बातचीत कर रहे हैं। यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा इसी साल मार्च में भारत दौरे पर आए थे। उन्होंने कहा था कि युद्ध खत्म होने के बाद यूक्रेन दुनिया की सबसे बड़ी कंस्ट्रक्शन साइट बन सकता है और भारतीय कंपनियों को भी आमंत्रित किया जा सकता है, उन्होंने यह भी याद दिला दिया था कि युद्ध से ठीक पहले 19 हजार विद्यार्थी यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे। यह सब इस बात का संदेश है कि यूक्रेन भी शांति चाहता है और इसमें भारत की भूमिका को वह स्वीकार करता है।

कुर्स्क पर यूक्रेन की जीत के बाद पुतिन ने भले ही यह कहा हो कि अब शांति समझौते की कोई गुंजाइश नहीं है लेकिन रूस को भी पता है कि युद्ध उस पर गहरा असर डाल रहा है, लंबे अरसे तक उसके लिए टिके रह पाना आसान नहीं है। पुतिन पर युद्ध खत्म करने का आंतरिक दबाव तो है ही। ऐसे में शांति समझौते में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। भारत हमेशा से शांति का पुजारी रहा है और भगवान बुद्ध, भगवान महावीर और महात्मा गांधी की राह पर चलने वाला देश है। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच व्यापक है, वे शांति के लिए अपनी भूमिका भी निभाएंगे लेकिन जो देश दुनिया के चौधरी बने बैठे हैं, क्या वे शांति चाहते हैं? वे शांति चाहने लगेंगे तो उनके हथियार कहां बिकेंगे?
खौफनाक रिपोर्ट ! मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में यौन शोषण को लेकर केरल हाईकोर्ट की सेवानिवृत्त जज न्यायमूर्ति के. हेमा की जो रिपोर्ट सामने आई है वह अत्यंत खौफनाक है।  कमेटी ने कहा है कि फिल्मों में महिलाओं को काम के बदले यौन शोषण का शिकार होना पड़ता है।

कास्टिंग काउच गहरी पैठ जमाए हुए है, अस्मत का सौदा करने वाला माफिया बेहद ताकतवर है। पैसे से भी और राजनीतिक रूप से भी। हालांकि यह ऐसी सच्चाई है जिससे लोग वाकिफ थे, हेमा कमेटी ने बस सच पर मुहर लगा दी है। यह रिपोर्ट सरकार को करीब 5 साल पहले सौंप दी गई थी लेकिन लोगों के सामने अब आई है। मेरा सवाल है कि रिपोर्ट को जारी करने में इतनी देरी क्यों? क्या किसी को बचाने की कोशिश की जा रही थी? या सरकारी महकमे में बैठे लोग इस रिपोर्ट को ही हजम कर जाना चाह रहे थे? इस शंका का आधार यह है कि कमेटी ने तो 290 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी थी लेकिन उसके 40 से ज्यादा पन्ने सरकार ने हटा दिए। कहा जा रहा है कि इन गायब पन्नों में महिलाओं ने अपने साथ शोषण और उत्पीड़न करने वाले पुरुषों के नाम बताए थे, कितनी बेशर्मी की बात है कि अपराधियों के नाम सरकार छिपा रही है? ये तो एक रिपोर्ट आई है, बाकी तमिल, तेलुगू, भोजपुरी और यहां तक कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का क्या हाल है? सच की पड़ताल इन जगहों की भी तो होनी चाहिए..!