संपादकीय

राहुल गांधी क्यों पहुंचे रायबरेली…?

Rahul Kumar Rawat

वायनाड के अलावा राहुल गांधी और कहां से चुनाव लड़ेंगे इसकी जितनी चर्चा हो रही थी, उतनी चर्चा किसी और नेता के निर्वाचन क्षेत्र को लेकर इस चुनाव में नहीं हुई। चर्चा अमेठी की भी चल रही थी जहां से 15 साल तक सांसद रहने के बाद 2019 के चुनाव में राहुल गांधी को हार का सामना करना पड़ा था। अमेठी से गांधी परिवार का पुराना नाता रहा है। अमेठी ने 1980 में संजय गांधी, फिर तीन बार राजीव गांधी, एक बार सोनिया गांधी और तीन बार राहुल गांधी को लोकसभा पहुंचाया। मगर राहुल गांधी इस बार अमेठी से क्यों खड़े नहीं हुए, यह कहना जरा मुश्किल है, हो सकता है कि सिपहसालारों ने उन्हें कहा हो कि कहीं हार न हो जाए। मुझे लगता है कि अमेठी से उन्हें चुनाव लड़ना चाहिए था, ऐसा कहते हैं कि वे वहां से जीत भी जाते।अमेठी से कांग्रेस ने गांधी परिवार के खासमखास किशोरी लाल शर्मा को मैदान में उतारा है। लोगों को उम्मीद थी कि प्रियंका गांधी अमेठी से चुनाव लड़ेंगी लेकिन प्रियंका ने कहा है कि वे किशोरी लाल शर्मा के लिए धुआंधार प्रचार करेंगी। मुझे लगता है कि प्रियंका खुद मैदान में होतीं तो उनकी जीत की संभावना प्रबल हो सकती थी। वो चुनाव नहीं लड़ रही हैं और राहुल गांधी ने परिवार की एक और परंपरागत सीट रायबरेली से चुनाव लड़ने का निर्णय लिया तो यह निश्चय ही रायबरेली के प्रति उनकी उम्मीद को दर्शाता है।

गांधी-नेहरू परिवार की जड़ें रायबरेली में ज्यादा पुरानी और गहरी हैं। देश के पहले और दूसरे लोकसभा चुनाव में फिरोज गांधी रायबरेली से ही संसद में पहुंचे थे। इंदिरा गांधी तीन बार वहां से चुनाव जीतीं। सोनिया गांधी 2004 से लगातार चार बार रायबरेली का प्रतिनिधित्व करती रही हैं। रायबरेली में राहुल गांधी ने बड़ी धूमधाम के साथ नामांकन भरा। जाहिर सी बात है कि उन पर सबकी नजर रहती है, भाजपा के एक नेता ने व्यंग्यात्मक लहजे में मुझसे कहा कि राहुल गांधी तो कह रहे थे कि ईडी ने कांग्रेस का बैंक खाता सील कर दिया है और हमारे पास ट्रेन का टिकट खरीदने के पैसे नहीं हैं तो वे खुद एक विमान में कैसे आए जिसमें पक्के कांग्रेसी अशोक गहलोत और के.सी. वेणुगोपाल भी उनके साथ थे? दूसरे विमान में सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, रॉबर्ट वाड्रा और तीसरे विमान में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे आए? फिर उस भाजपाई ने मुझे यह भी याद दिला दिया कि किशोरी लाल शर्मा का नामांकन भरवाने तो इनमें से कोई अमेठी नहीं पहुंचा था। भाजपा को तो बस मौका चाहिए और कोई मौका चूके भी क्यों? भाजपा ने तो यह दावा भी कर दिया कि राहुल गांधी डर कर वायनाड से भागे हैं। केरल के चीफ मिनिस्टर पी. विजयन ने कहा कि ऐसा उम्मीदवार दे दिया है कि राहुल का जीतना मुश्किल है। हालांकि ऐसी खबरें आ रही हैं कि राहुल गांधी के वायनाड से चुन कर आने की पूरी संभावना है तो अब बड़ा सवाल है कि यदि राहुल गांधी दोनों स्थानों से चुनाव जीत जाते हैं तो वे कौन सी सीट अपने पास रखेंगे? मुझे लगता है कि वे परिवार की परंपरागत सीट रायबरेली को तरजीह देंगे। उन्हें पता है कि जब तक उत्तर प्रदेश पर कब्जा नहीं होता तब तक देश पर राज करने की बात सोचना भी बेमानी है।

मौजूदा भारतीय राजनीति में राहुल गांधी की शख्सियत कुछ ऐसी है कि वे भले ही अध्यक्ष न हों लेकिन कांग्रेस का उनके बगैर काम नहीं चलता तो दूसरी ओर विपक्षी दल भाजपा का भी उनके बगैर काम नहीं चलता। प्रधानमंत्री से लेकर हर बड़े नेता का भाषण राहुल गांधी का नाम लिए बगैर पूरा नहीं होता, उन्हें पप्पू ठहराने की भी भरपूर कोशिश हुई। मेरा मानना है कि यदि कोई व्यक्ति आपकी नजर में अयोग्य है तो आप क्यों बार-बार उसका नाम लेते हैं? उसे इग्नोर क्यों नहीं करते? लेकिन राहुल गांधी को इग्नोर करना संभव नहीं है। आजादी की लड़ाई और उसके बाद देश के निर्माण में गांधी परिवार के योगदान को और उनके परिवार ने जो शहादत दी है, उसे कैसे भुलाया जा सकता है। लालकृष्ण अडवाणी ने एक बार मुझसे कहा था कि कांग्रेस के साथ हमारा राजनीतिक विरोध है लेकिन वे हमारे शत्रु नहीं हैं, हम उन्हें इग्नोर नहीं कर सकते। बहुत से लोग राहुल गांधी की वेशभूषा को लेकर भी टिप्पणी करते हैं। वे कहते हैं कि राजीव गांधी और सोनिया गांधी बहुत आधुनिक थे लेकिन राजनीति में आने के बाद राजीव गांधी ने कांग्रेस के खादी के लिबास को अपनाया और इसके साथ ही सोनिया गांधी ने साड़ी पहनना शुरू कर दिया। दोनों फिर कभी मॉडर्न लिबास में नहीं दिखे लेकिन राहुल गांधी अल्ट्रा मॉडर्न हैं। युवाओं की वेशभूषा में रहते हैं, उन्होंने परंपरा को बदल दिया है। हो सकता है उनके दिमाग में हो कि ऐसे ही रहना है लेकिन मेरा मानना है कि राजनीति में वेशभूषा काफी मायने रखती है।

एक बात लोग और भी करते हैं कि राहुल गांधी का स्वभाव ऐसा है कि उनके करीबी साथी ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, मिलिंद देवड़ा, केपी सिंह जैसे लोग साथ छोड़ गए। सवाल है कि वे राहुल के स्वभाव की वजह से गए या उन्हें अपना भविष्य असुरक्षित नजर आ रहा था? या राहुल गांधी के आसपास की जो व्यवस्था है, उससे उनका दम घुट रहा था? बहुत से लोग कांग्रेस छोड़ कर चले गए। सोनिया गांधी अस्वस्थ हैं, इसके बावजूद राहुल और प्रियंका लड़ रहे हैं लेकिन उनका मुकाबला उस भाजपा से है जिसे नरेंद्र मोदी ने कद्दावर बना दिया है। मोदी का नेतृत्व चमत्कारी है, अमित शाह और यूपी में योगी आदित्यनाथ जैसे राजनीति के जांबाज खिलाड़ी हैं। कांग्रेस तरकश से कोई तीर निकालने की सोचे तब तक उनका तीर निशाने पर पहुंच चुका होता है। संघर्ष में सफलता के लिए राहुल के पास हौसला तो है लेकिन जांबाजों की फौज नहीं है। मैंने बार-बार लिखा है कि जब तक कांग्रेस को नए सिरे से खड़ा नहीं करते तब तक फौज खड़ी नहीं हो सकती। कांग्रेस की ओर से जो लोग भी चुनकर आते हैं, वे अपनी क्षमताओं की बदौलत आते हैं, जरूरत कांग्रेस को क्षमतावान बनाने की है लेकिन यह चुनौती फिलहाल आसान बिल्कुल ही नहीं है।