संपादकीय

आखिर क्यों हारे सुनक

Rahul Kumar Rawat

ब्रिटेन में हुए आम चुनावों में प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की कंजरवेटिव पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा है, जबकि लेबर पार्टी ने प्रचंड बहुमत हासिल किया है। एग्जिट पोल के नतीजों के अनुरूप ही चुनाव परिणाम दिखाई दे रहे हैं। इस बार लगभग सभी सर्वे में लेबर पार्टी की जीत का अनुमान व्यक्त ​किया गया था। कंजरवेटिव पार्टी पिछले 14 सालों से ​ब्रिटेन की सत्ता में बनी रही। हालांकि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में लगातार उथल-पुथल की स्थिति बनी रही और पार्टी ने पिछले 5 साल में एक के बाद एक 4 प्रधानमंत्री बदल डाले। चुनाव नतीजों से स्पष्ट है ​िक लेबर पार्टी के कीर स्टार्मर ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री होंगे। लेबर पार्टी को 30 वर्ष पहले 1997 में अब तक की सबसे बड़ी जीत ​मिली थी तब लेबर पार्टी के नेता टोनी ब्लेयर थे और पार्टी को 419 सीटें मिली थीं। लेबर पार्टी के नेता कीर स्टार्मर पेशे से वकील हैं और वह 2015 में सांसद बने थे। अब भारतीय मूल के ऋषि सुनक की अपनी ही पार्टी के नेता जबरदस्त आलोचना कर रहे हैं और कह रहे हैं कि कंजरवेटिव पार्टी के बहुत से लोग व्यक्तिगत एजैंडे को बढ़ावा दे रहे थे और पद की होड़ पर फोकस कर रहे थे। काम की बजाय उन्होंने दिखावे की सियासत की, ​िजसे ब्रिटेन की जनता ने ठुकरा दिया है।

ऋषि सुुनक जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने थे तो उनकी लोकप्रियता का ग्राफ काफी ऊंचा था। ऋषि सुनक ही अपनी पार्टी के नेतृत्व के​ खिलाफ आगे बढ़कर प्रधानमंत्री बने थे। ऋषि सुनक को अर्थशास्त्र का काफी जानकार माना जाता है। उन्होंने अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर काफी काम भी किया ले​किन वह ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में पूरी तरह से ​विफल रहे। डेढ़ वर्ष के शासन में उन्होंने बहुत हाथ-पांव मारे लेकिन नाकामी ही हाथ लगी। देश में अमीरों और गरीबों के बीच फासला बहुत बढ़ा। इसकी वजह से लोगोें के जीवन स्तर में गिरावट आई। 6.70 करोड़ आबादी वाले ब्रिटेन में प्रति व्यक्ति आय 38.5 लाख रुपए है। कोरोना महामारी के बाद ब्रिटेन के लोगों को जबरदस्त महंगाई का सामना करना पड़ा। ब्रिटेन के 70 साल के इतिहास में टैक्स की दरें सबसे ज्यादा रहीं। सरकार के पास जनता पर खर्च करने के ​लिए पैसा नहीं बचा। इसकी वजह से सार्वजनिक सेवाएं ठप्प होकर रह गईं। ऋषि सुनक की हार का कारण गैर कानूनी घुसपैठ भी रही। हैल्थ क्षेत्र, आवास, पर्यावरण, ​शिक्षा व्यवस्था को लेकर भी लोगों में नाराजगी दिखाई दी। ऋषि सुनक और उनकी पार्टी को इस बार हिन्दू मतदाताओं के आक्रोश का सामना भी करना पड़ा। प्रवासी भारतीय हिन्दू सुनक के खिलाफ नजर आए। ऋषि सुनक को भी इस बात का अंदाजा था तभी चुनावों से चार दिन पहले वह अचानक स्वामी नारायण मंदिर पहुंच गए थे।

ब्रिटेन पीएम ऋषि सुनक के खिलाफ हिंदुओं की नाराजगी का सबसे बड़ा कारण भारतीय पुजारी हैं। दरअसल ब्रिटेन की सरकार पिछले कुछ समय से भारतीय पुजारियों को वीजा जारी नहीं कर रही है। ब्रिटेन में इसका खासा प्रभाव देखने को मिल रहा है। अब तक वहां 50 से ज्यादा मंदिर बंद भी हो चुके हैं। अन्य मंदिरों में भी कई काम बंद करा दिए गए हैं। बर्मिंघम में लक्ष्मीनारायण मंदिर के सहायक पुजारी सुनील शर्मा ने एक साक्षात्कार में कहा था कि उन्हें ऐसी उम्मीद थी कि भारतवंशी होने के नाते सुनक सरकार वीजा जारी करने की प्रक्रिया तेज करेगी। पीएम हमारी समस्याओं को समझेंगे। ऐसा हो नहीं सका। ब्रिटेन में लगभग 20 लाख हिन्दू आबादी रहती है। इन्हें शादियों, गृह प्रवेश, बच्चों के नामकरण और अन्य धार्मिक संस्कारों को करने के​ लिए पुजारियों की जरूरत पड़ती है। गिनती के पुजारी रह जाने से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। सुनक ने 2022 में ब्रिटेन की सत्ता सम्भाली थी। जब वह पीएम बने तो प्रवासी भारतीयों ने जमकर जश्न मनाया था। इन्फो​सिस के संस्थापक भारतीय उद्योगपति नारायणमूर्ति के दामाद ऋषि सुनक खुद हिन्दू होने पर गर्व महसूस करते हैं और अपने आवास पर भी पूजा-अर्चना करते हैं तथा दीवाली मनाते हैं। उनकी पत्नी अक्षता मूर्ति का भी भारतीय काफी सम्मान करते हैं। प्रवासी भारतीयों को लगता था कि अब उनके जीवन में सुधार होगा और सुनक उनके जीवन को सहज बनाने के लिए कुछ कदम उठाएंगे लेकिन सुनक ने प्रवासी भारतीयों की किसी भी समस्या का समाधान नहीं किया और कोई कदम नहीं उठाए। इमीग्रेशन के मुद्दे पर ऋषि सुनक लेबर पार्टी की नीतियों की काट ढूंढ पाने में नाकाम रहे।

लेबर पार्टी के नेता स्टार्मर 4 साल तक नेता विपक्ष रहे और उन्होंने कंजरवेटिव पार्टी की नाकामियों और उसके खिलाफ उठने वाले आक्रोश को बहुत करीब से देखा और इसे अपनी पार्टी की मजबूती के लिए इस्तेमाल किया। कंजरवेटिव पार्टी ने ग्राउंड जीरो से चुनाव जीता है। भारत ब्रिटेन में लोकतांत्रिक ढंग से ​निर्वाचित सरकार का स्वागत करेगा। ब्रिटेन में सत्ता परिवर्तन होने से भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते की सम्भावना पर अनिश्चितता छा गई है। एफटीए के 26 अध्याय हैं। भारतीय उद्योग सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में अपने कुशल पेशेवरों के लिए ​ब्रिटेन के बाजार में अधिक पहुंच की मांग कर रहा है। इसके अलावा भारत शून्य सीमा शुल्क पर कई वस्तुओं के लिए बाजार चाहता है। उम्मीद है ​कि ब्रिटेन की नई सरकार भारत के साथ संबंधों में निरंतरता बनाए रखेगी और कीर स्टार्मर के नेतृत्व में लेबर पार्टी भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने की हर सम्भव कोशिश करेगी।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com