सिख कौम दीपावली को बन्दी छोड़ दिवस में मनाती है मगर शायद ज्यादातर सिख भी इस इतिहास से आज तक वाकिफ नहीं हो सके हैं। सभी गुरुद्वारा साहिबान में भी दीपमाला की जाती है और घरों में भी लोग अपने हिसाब से रोशनी-सजावट कर मिठाइयां और तोहफे एक दूसरे को देकर इस दिन को मनाते हैं। इस बार दीपावली उन दिनों में आ रही है जब आज से 40 वर्ष पूर्व देश की प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में हजारों सिखों का कत्लेआम किया गया था। दिल्ली सिख गंुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी हर साल 31 अक्तूबर से 3 नवम्बर तक इन दिनों को रोष दिवस के रूप में मनाती आ रही है। इस बार इन्हीं दिनों में दीपावली आने के कारण दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी ने फैसला लिया है कि किसी भी एेतिहासिक गुरुद्वारा साहिब में दीपमाला नहीं की जायेगी। कमेटी प्रबन्धकों ने संगतों से भी अपील की है कि वह पीड़ित परिवारों को संवेदना देने हेतु अति आवश्यक होने पर ही इस बार पर्व को मनाएं। श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार साहिब ने भी सिख संगत से अपील करते हुए आदेश जारी कर घरों में केवल घी के दीये जलाकर त्यौहार मनाने की बात कही है। देखा जाए तो कमेटी प्रबन्धकों की अपील का सिख संगत पर कोई ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ने वाला क्योंकि साल में एक बार आने वाले पर्व को हर कोई मनाने की चाहत रखता है, हां इतना जरूर है कि जहां तक हो सके सादगी के साथ पर्व को मनाया जा सकता है। वहीं कमेटी प्रबन्धक भी इस बात को भली-भान्ति जानते होंगे मगर उन्होंने संगत से अपील कर अपनी जिम्मेवारी पूरी कर दिखाई है क्योंकि अगर वह ऐसा ना करते तो विपक्षी दलों को कमेटी प्रबन्धकों को घेरने का एक और मौका मिल जाना था।
दीपावली पर्व का सिख धर्म में खास महत्व है क्योंकि इसी दिन गुरु हरिगोबिन्द साहिब जी ने ग्वालियर के किले में कैद 52 हिन्दू राजाओं को आजाद करवाया था। बादशाह जहांगीर ने गुरु जी को ग्वालियर के किले से रिहाई के समय शर्त रखी कि जो भी राजा गुरु जी को पकड़कर बाहर आ जाएगा उसे भी गुरुजी के संग रिहा कर दिया जाएगा। गुरु जी ने रातोंरात 52 कलियों वाला कुर्ता सिलवाया जिसकी एक-एक कली पकड़कर सभी 52 हिन्दू राजा भी जहांगीर की कैद से रिहा हो गए। कैद से बाहर आकर जब गुरु जी अमृतसर की धरती पर पहुंचे तो सिखों ने पूरे शहर को दीप जलाकर रोशन किया तभी से सिख धर्म के लोग इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हुए अपने घरों में दीये जलाते हैं। यह दिन दीवाली के दिन ही आता है इसलिए सिख दिवाली वाले दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं। समाज सेवी दविन्दरपाल सिंह पप्पू का मानना है कि गुरु साहिब चाहते तो अकेले बादशाह जहांगीर की कैद से रिहा हो सकते थे मगर उन्होंने अपने साथ दूसरे राजाओं को भी कैद मुक्ति करवाकर एक सन्देश समुची मानवता को दिया उसी प्रकार सिख जत्थेबंदीयों को भी चाहिए कि गुरु साहिब के मार्ग पर चलते हुए कम से कम कौम की बेहतरी के लिए एकजुटता दिखाएं।
दिल्ली में पंजाबियों का जलवा छाया
पंजािबयों के पहरावे, सभ्याचार, गायकी, खानपान के सभी दीवाने होने लगे हैं। देश ही नहीं विदेशों की धरती पर भी पंजाबियों ने अपना दम दिखाया है। देश की राजधानी दिल्ली जहां पंजािबयों की गिनती काफी अधिक है में जब पंजाबी गायकी के किंग दलजीत दोसांझ अपने शौ के दौरान पहुंचे तो पंजािबयों का प्यार देखकर भावुक भी हो उठे। पंजाबीयों के साथ गैर पंजाबी भी उनकी गायकी को सुनने के लिए कई महीनों से इन्तजार कर रहे थे और कईयों ने टिकटों के लिए काफी मुशक्कत भी की और ना मिलने के चलते मायूस भी हुए। दलजीत दोसांझ में भी दिल्ली शौ के दौरान एक अलग किस्म का जोश देखने को मिला। दलजीत ने हाथ में तिरंगा लेकर पंजािबयांे सहित समूचे देशवासियों को एक सन्देश भी दिया जिसके बाद सोशल मीिडया पर इस बात के चर्चे भी होने लगे कि बहुत ही अजीब सी बात है कि आज एक पंजाबी को अपनी देशभक्ति का सबूत देना पड़ता है जबकि इतिहास गवाह है कि पंजाबी कौम अपनी दिलेरी के लिए जानी जाती है और देश पर मर-मिटने में पंजाबी हमेशा सबसे आगे दिखाई पड़ते हैं। दलजीत ने पंजाबियों को भी पंजाबी होने का अहसास करवाया क्योंकि आज ज्यादातर घरों में लोग अपने बच्चों से पंजाबी बोलने में परहेज करते हैं जबकि देश के अन्य राज्यों के लोग गर्व से अपने राज्य की भाषा कोे बातचीत में इस्तेमाल करते हैं, पर पंजाबी अंग्रेजी या फिर राष्ट्रीय भाषा हिन्दी का प्रयोग अधिक करते हैं, उन्हें बचपन से ही बच्चों से पंजाबी में बात करनी चाहिए।
वेंटीलेटर पर पड़े अकाली दल बादल को मिली आक्सीजन
कांग्रेस के बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी शिरोमिण अकाली दल है मगर आज शायद उसे अपना वजूद बचाना भी मुश्किल होता दिखाई दे रहा है। पंजाब विधानसभा की 4 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में िशराेमणि अकाली दल का हिस्सा ना लेना इस बात की ओर इशारा करता है कि कहीं ना कहीं उन्हें अपनी हार निश्चित दिखाई दे रही थी जिसके चलते उन्होंने चुनाव से बाहर रहना ही मुनासिब समझा। वहीं अकाली दल को उपचुनाव से भी अधिक खतरा इस बात का था कि कहीं शिरोमिण कमेटी चुनाव के दौरान विरोधी उन्हें पटखनी ना दे दें क्योंकि समूचा विपक्ष एकजुट होकर अकाली दल से शिरोमिण कमेटी छीनने की फिराक में था।
हालांकि उन्हें नामोशी का सामना ही करना पड़ा। अकाली दल के उम्मीदवार हरजिन्दर सिंह धामी के खिलाफ विपक्षी दल ने मैदान में बीबी जागीर कौर को उतारा जिन्हें पिछली बार 45 वोट मिले थे मगर इस बार उसमें भी कटौती हो गई और केवल 33 मत ही वह हासिल कर सकी। जबकि एक दिन पूर्व हुई मीटिंग में 45 से 50 सदस्यों ने उनके हक में वोट डालने का आश्वासन दिया था। अकाली दल के भी ज्यादातर सदस्य सुखबीर सिंह बादल को ना हटाए जाने के चलते पार्टी हाईकमान से खफा दिखाई दे रहे थे जिसके चलते माना जा रहा था कि क्रॉस वोटिंग करते हुए वह अकाली दल को सबक सिखा सकते हैं। मगर अकाली दल को उस समय राहत की सांस आई जब हरजिन्दर सिंह धामी ने पहले से भी अधिक मतों के अंतराल से बीबी जागीर कौर को पटखनी दे दी। देखा जाए तो यह जीत शिरोमिण अकाली दल की नहीं है इसके पीछे कई कारण रहे। विपक्षी दल के ज्यादातर नेतागण खुलकर बोल नहीं रहे थे मगर असल में उन्हें जागीर कौर अध्यक्ष के रूप में स्वीकार नहीं थी। उसके बजाए अगर किसी और को उम्मीदवार बनाया जाता तो हरजिन्दर सिंह धामी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता था। अब पार्टी वर्करों का एक ही लक्ष्य होगा कि किसी भी तरह से हरजिन्दर सिंह धामी जत्थेदार अकाल तख्त पर दबाव बनाकर सुखबीर सिंह बादल को तनख्वाह मुक्त करवा लें ताकि भविष्य में वह पुनः प्रधानगी की बागडौर संभाल सकें।
महाराष्ट्र सरकार द्वारा सिखों को सम्मान
महाराष्ट्र की एकनाथ शिन्दे सरकार के द्वारा पंजाबी साहित्य अकादमी महाराष्ट्र में मलकीत सिंह बल को बतौर चेयरमैन की सेवा सौंपकर समूचे सिख समुदाय को सम्मान दिया है। मलकीत सिंह बल समाज सेवा में भी बढ़-चढ़कर रुचि लेते हैं। मलकीत सिंह बल को यह जिम्मेवारी मिलने से सिख समुदाय के इलावा ट्रांसपोर्ट व्यवसाय से जुड़े लोगों में भी काफी प्रसन्नता दिखाई दे रही है।
उनके दिल्ली आगमन पर प्रसिद्ध ट्रांसपोर्टर तरलोचन सिंह ढिल्लों और उनकी टीम ने दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के साथ मिलकर उनका शानदार स्वागत रकाबगंज स्थित कार्यालय में किया। मलकीत सिंह बल महाराष्ट्र में पंजाबियों को एकजुट कर पंजाबी संस्कृति को बढ़ावा देने की बात कर रहे हैं इसके सथ ही बंजारा, सिकलीगर, लुबाणा आदि जो बिरादरियां समाज से अलग होती जा रही हैं, उन्हें पुनः एकजुट कर उनकी समस्याओं का निवारण करने को प्राथमिकता बता रहे हैं।