भारत के सर्वाधिक संजीदा राज्य जम्मू-कश्मीर के जम्मू क्षेत्र में हाल के वर्षोंं में आतंकवादी घटनाओं में वृद्धि हुई है, उससे प्रत्येक देशभक्त व्यक्ति को चिन्तित होना स्वाभाविक है। पाक के घुसपैठिये आतंकवादियों ने जम्मू क्षेत्र को अपना लक्ष्य क्यों बना रखा है? यह पत्थर पर लिखी हुई इबारत है कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान अपने पूर्व फौजी तानाशाह राष्ट्रपति जिया-उल-हक की 1978-79 की उस नीति को कस कर पकड़ रखा है जो भारत से सीधा मुकाबला करने के बजाये भारत को हजार जख्म देने में विश्वास करती है। जिया-उल-हक वह हुक्मरान था जिसने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमन्त्री स्व. जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर चढ़वा दिया था। भुट्टो बेशक भारत विरोधी पाकिस्तानी नेता था मगर वह पाकिस्तान में लोकतन्त्र लाने वाला नेता भी था। हकीकत तो यह है कि 1971 में पाकिस्तान के दो टुकड़े होकर बांग्लादेश बन जाने के बाद पाकिस्तान ने समझ लिया था कि लाख अमेरिकी समर्थन के बावजूद वह भारत को सीधे मुकाबले में परास्त नहीं कर सकता है। जुल्फिकार अली भुट्टो ने बांग्लादेश युद्ध के बाद 1972 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री स्व. श्रीमती इन्दिरा गांधी के साथ शिमला में समझौता किया था जिसमें उसने श्रीमती गांधी के सामने गिड़गिड़ा कर अपने लगभग 90 हजार से ज्यादा सैनिकों की जान की भीख मांगी थी।
1971 में हुए बांग्लादेश युद्ध के समय भारतीय फौजों ने इन सैनिकों से आत्मसमर्पण करा लिया था। भुट्टो को इस बात का एहसास हो गया था कि पाकिस्तान भारत के मुकाबले रणभूमि में कभी भी जीत नहीं सकता है। बांग्लादेश युद्ध के बाद एक अन्य फौजी हुक्मरान जनरल याह्या खां ने अपने देश की कमान भूट्टो को सौंप दी थी। वह 1973 तक इस पद को संभाले रहे। अपने कार्यकाल के दौरान भुट्टो ने पाकिस्तान का संविधान बड़े संशोधनों के बाद लागू किया और स्वयं प्रधानमन्त्री बन गये। वह इस पद पर 1977 तक रहे। मगर उनकी सरकार का तख्ता जनरल जिया ने मार्शल लाॅ लागू किया और खुद मुल्क के हुक्मरान बन बैठे। जिया-उल-हक 1988 तक जीवन पर्यन्त राष्ट्रपति रहे और उन्होंने भारत के विरुद्ध टुकड़ों में आतंकवाद फैलाने की नीति बनाई।
गौर करने वाली बात यह है कि इसी जनरल जिया ने 1977 से 1979 तक पंचमेल जनता पार्टी की सरकार के प्रधानमन्त्री रहे स्व. मोरारजी देसाई को पाकिस्तान के सबसे बड़े नागरिक सम्मान 'निशाने पाकिस्तान' से नवाजा। यह अभी तक रहस्य है कि मोरारजी देसाई के किस योगदान के लिए पाकिस्तान ने उन्हें पुरुस्कृत किया। जबकि जनता पार्टी में अटल बिहारी वाजपेयी की जनसंघ पार्टी भी विलीन हो चुकी थी। सवाल यह है कि वर्तमान 2024 में पाकिस्तान की नीति क्या है? दहशतगर्जी के मामले में पाकिस्तान दुनिया भर में बदनाम हो चुका है। हद तो यह हो गई कि अब वह खुद को भी आतंकवाद का शिकार बता रहा है जबकि विश्व की खतरनाक दहशतगर्द तंजीमें लश्करे तैयबा और जैशे मोहम्मद यहां की जमीन पर फल-फूल रही हैं। इन दहशतगर्द तंजीमों को पाकिस्तान में पनपने का पूरा अवसर यहां की फौज ने दिया। अब ये तंजीमें अपने छाया आतंकवादी संगठनों से जम्मू-कश्मीर खास कर जम्मू इलाके में हमारी सेनाओं को अपना निशाना बना रही हैं।
वास्तविकता यह है कि जम्मू इलाका 2002 से लेकर 2018 तक दहशतगर्द हमलों से दूर रहा है। जाहिर है कि इन दहशतगर्द तंजीमों को पाकिस्तान की फौज संरक्षण बख्शती है। पाकिस्तान में फिलहाल शहबाज शरीफ की लोकतान्त्रिक सरकार है मगर भारत-पाक के बीच की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा पर शान्त वातावरण है जबकि 1971 के बाद दोनों देशों के बीच खिंची वास्तविक नियन्त्रण रेखा को पार करके पाकिस्तानी आतंकवादी घुसपैठ कर रहे हैं। इस मामले में भारत की गुप्तचर एजैंसियां क्या कर रही हैं? पाकिस्तान अभी तक हमारा मित्र देश नहीं हो सका है क्योंकि उसकी हैसियत एक आक्रमणकारी देश की है। यही स्थिति चीन की भी है। तुर्रा यह है कि चीन और पाकिस्तान परम मित्र हैं। हमें याद रखना चाहिए कि 1963 में पाकिस्तान ने चीन को जम्मू-कश्मीर के पाक अधिकृत कश्मीर की 5000 वर्ग किलोमीटर जमीन सौगात में देकर उसके साथ नया सीमा समझौता किया था। भारत के नजरिये से यह भूभाग बहुत संवेदनशील है। पहले कश्मीर घाटी में पाकिस्तान ने आतंकवाद फैलाया और अब वह जम्मू इलाके को अपना निशाना बना रहा है। पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों के नाम पर आतंकवादी घटनाएं करवाता रहता है मगर 2019 में जब जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा भारत की संसद द्वारा रद्द किया गया और इस राज्य को लद्दाख व जम्मू-कश्मीर में बांटा गया तो सर्वत्र यह आज सुनाई पड़ रहा था कि अब जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद जड़ से समाप्त कर दिया जायेगा। परन्तु एेसा हम देख नहीं रहे हैं। इस सन्दर्भ में भारतीय सेना के पूर्व जनरल के उस बयान का हवाला देना बहुत जरूरी है जो उन्होंने इस साल के शुरूआती महीने जनवरी में दिया था।
जनरल पांडेय ने स्वीकार किया था कि जम्मू के पुंछ राजौरी आदि इलाकों में आतंकवाद पर 2003 में ही काबू कर लिया गया था। 2018 तक यह इलाका पूरी तरह शान्त था। मगर इसके बाद इस इलाके में भी आतंकवादी घटनाएं होने लगीं। 2022 व 2023 वर्षों में जम्मू क्षेत्र में तीन-तीन आतंकवादी हमले भारतीय सेना पर हुए जबकि चालू वर्ष में अभी तक छह हमले सेना के जवानों पर हो चुके हैं। इसकी वजह यह भी बताई जा रही है कि जम्मू के मोर्चे पर सेना की पर्याप्त मौजूदगी नहीं है। एेसी सूरत में गुप्तचर एजेंसियों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि 2022 में आतंकवादियों का मुकाबला करते हुए जहां केवल छह रणबांकुरे शहीद हुए थे। वहीं 2022 में इस इलाके की रक्षा करते हुए छह सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। वहीं 2023 में इनकी संख्या बढ़कर 21 हो गई। चालू वर्ष में इनकी संख्या अब तक 11 हो चुकी है। जाहिर है कि जम्मू क्षेत्र पर अब आतंकवादियों की नजरें गढ़ी हुई हैं। इसलिए भारत को भी अब एेसी रणनीति बनानी होगी जिसमें कश्मीर भी सुरक्षित रहे और जम्मू भी।