संपादकीय

बलात्कार पर राजनीति क्यों?

Aditya Chopra

भारत मंे महिलाओं के सम्मान व सुरक्षा को लेकर जो दलगत राजनीति हो रही है उसमें स्त्री को उपभोग्या समझने का मूल मुद्दा गायब होता जा रहा है और समाज आज भी इसी रोगी मानसिकता की गिरफ्त से बाहर नहीं निकल पा रहा है। इस सिलिसिले में सबसे ताजा मामला मध्य प्रदेश के उज्जैन नगर का है जहां अर्ध रात्रि के बाद एक व्यस्त इलाके में एक नवयुवती के साथ फुटपाथ पर ही एक व्यक्ति बलात्कार करता रहा और राहगीर उसका वीडियो बनाते रहे मगर कोई इस कुकृत्य को रोकने के लिए आगे नहीं बढ़ा। यह शर्मनाक कार्य राज्य के मुख्यमन्त्री श्री मोहन यादव के चुनाव क्षेत्र में ही किया गया। इस घटना से यह अन्दाजा लगाया जा सकता है कि स्त्री सम्मान के प्रति समाज में किस हद तक संवेदनहीनता व्याप्त है। दूसरी तरफ प. बंगाल की राजधानी कोलकाता के एक अस्पताल में एक मेडिकल छात्रा के साथ बलात्कार करके उसकी हत्या करने का मामला इतना गरमाया हुआ है कि पूरा प. बंगाल ही इस मुद्दे के राजनीतिकरण की वजह से उबला हुआ है और मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच चुका है।
असली सवाल यह है कि बलात्कार कोई राजनैतिक मुद्दा नहीं है मगर राजनैतिक दल इसे भी राजनीति में घसीट कर दलगत स्वार्थों को साधने की फिराक में लगे रहते हैं। प. बंगाल में तृणमूल कांग्रेस पार्टी की नेता ममता बनर्जी की सरकार है और भाजपा यहां प्रमुख विपक्षी दल है अतः इसने मेडिकल छात्रा के साथ हुए बलात्कार व हत्या के मामले पर ममता सरकार को चारों तरफ से घेरने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी। अब मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है और इसके शहर उज्जैन में हुई घटना को राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस एक मुद्दा बना रही है और कह रही है कि भाजपा शासन में स्त्री का सम्मान सुरक्षित नहीं है। असल सवाल यह है कि महिला का सम्मान किस-किस राज्य में और किस पार्टी के शासन में सुरक्षित है? क्या यह केवल कानून-व्यवस्था का मामला है। यदि मध्य प्रदेश को ही लें तो यहां हर रोज महिलाओं के साथ 18 मामले बलात्कार के होते हैं। कुछ मामलों में हत्या तक भी हो जाती है। एेसी ही स्थिति उत्तर प्रदेश से लेकर लगभग हर राज्य की है। अतः सवाल सामाजिक नजरिये व मानसिकता का भी बनता है। प. बंगाल में तो हत्या व बलात्कार को रोकने के लिए ममता दीदी ने राज्य विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर इसमें एेसे अपराध को रोकने के लिए एक बहुत सख्त 'अपराजिता कानून' बनाया । इस कानून में प्रावधान है कि बलात्कार करने के बाद हत्या करने वाले अपराधी को फांसी की सजा दी जाये और बलात्कारी को बिना पैरोल की रियायत दिये उम्रकैद की सजा मिले। यह कानून विधानसभा ने सर्वस​म्मति से बनाकर राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेज दिया मगर राज्यपाल ने इसे राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के अनुमोदन के लिए अग्रसरित कर दिया।
प. बंगाल में मुख्यमन्त्री व राज्पाल के बीच चल रही लाग-डांट से पूरा देश भलीभांति परिचित है। राज्यपाल ने प. बंगाल सरकार द्वारा इस सम्बन्ध में कानून के बारे में दी गई तकनीकी रिपोर्ट को राष्ट्रपति के पास भेजने का सहारा बनाया है। कहने को तो मध्य प्रदेश में भी बलात्कारी को उम्रकैद या फांसी की सजा दिये जाने का प्रावधान है मगर इसके बावजूद बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं। इस मामले में स्त्री के प्रति समाज को अपना नजरिया बदलना होगा और उसे यथोचित सम्मान देना होगा परन्तु पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण में महिला को 'काम वस्तु' समझने की भावना प्रबलता में पैठ कर रही है। विभिन्न उपभोक्ता वस्तुओं व सेवा सुविधाओं के विज्ञापनों में महिलाओं को जिस तरह पेश किया जाता है उसका असर भी समाज की मानसिकता पर पड़ रहा है। अतः स्त्री को केवल उपभोग्या मानने की मानसिकता बलवती हो रही है। उज्जैन की घटना वास्तव में रोंगटे खड़ी कर देने वाली है। हालांकि पुलिस ने बलात्कारी को घटना के दो घंटे बाद ही पकड़ कर उसे अदालत के सामने पेश कर दिया और वह व्यक्ति पीड़िता से शादी करने के लिए भी तैयार है परन्तु सवाल यह है कि उसमें एेसा कुकृत्य करने की हिम्मत कैसे और क्यों आयी? पुलिस के अनुसार पीड़ित महिला ने अर्धरात्रि के तीन बजे के बाद अपने साथ बलात्कार होने की घटना की रिपोर्ट दर्ज कराई और अपराधी लोकेश का नाम भी बताया। पुलिस ने लोकेश को दो घंटे की भीतर ढूंढकर गिरफ्तार कर लिया और अगले दिन अदालत में पेश कर दिया। उसने अपना अपराध स्वीकार किया और युवती के साथ शादी करने की बात भी कही। मगर विपक्षी कांग्रेस पार्टी कह रही है कि प. बंगाल में बलात्कार की घटना के विरोध में पूरे देश में आन्दोलन करने वाली भाजपा अब कहां है? पीडि़ता से मिलने अभी तक एक भी भाजपा नेता नहीं पहुंचा है और एेसी हृदय विदारक घटना पर मुख्यमन्त्री चुप्पी साधे बैठे हुए हैं। बलात्कार चाहे प. बंगाल में हो या मध्य प्रदेश में मगर स्त्री की अस्मिता पर ही चोट पहुंचती है। इसी अस्मिता की रक्षा करने की जरूरत है। वह भी उस देश में जहां नारी को पूजा तक जाता है।