संपादकीय

सर्द ब्रिटेन में कश्मीर को लेकर गर्मी क्यों?

Rahul Kumar Rawat

'कश्मीर फाइल्स' फिल्म को लेकर दुनिया भर में मशहूर हुए फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री ने पिछले सप्ताह जब ऑक्सफोर्ड डिबेट में जाने से मना कर दिया तो यह खबर सुर्खियों में आ गई लेकिन क्या आपको पता है कि विवेक जब 2022 में ऑक्सफोर्ड के एक कार्यक्रम में शामिल होने वाले थे तो ऐन मौके पर कार्यक्रम ही रद्द कर दिया गया। कारण यह था कि मुट्ठी भर पाकिस्तानियों ने विरोध जता दिया था।
यह पुरानी घटना मैं आपको इसलिए बता रहा हूं कि विवेक अग्निहोत्री को ऑक्सफोर्ड ने फिर से एक डिबेट के लिए आमंत्रित किया था जिसका विषय था 'सदन स्वतंत्र कश्मीर राज्य में विश्वास करता है' जरा सोचिए कि ऐसे एकतरफा विषय पर क्या कोई हिंदुस्तानी बहस में भाग लेना पसंद करेगा? पूरे विश्व को पता है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। यहां तक पाकिस्तान के कब्जे वाला और पाकिस्तान द्वारा चीन को गलत तरीके से उपहार में दिया गया कश्मीर का हिस्सा भी भारत का अभिन्न अंग है। जब वह हमारा अंग है तो ऐसे किसी विषय का सवाल ही पैदा नहीं होता। विवेक ने ऑक्सफोर्ड को सही जवाब दिया कि बहस का विषय भारत की संप्रभुता के लिए सीधी चुनौती है, और यह मुझे अस्वीकार्य है, मैं इसे न केवल अप्रिय बल्कि अपमानजनक मानता हूं, कश्मीर बहस का नहीं बल्कि मानवीय त्रासदी का विषय है। ऑक्सफोर्ड बौद्धिक खेल के लिए घावों को फिर से न कुरेदे।

मैं विवेक से बिल्कुल सहमत हूं। ऑक्सफोर्ड तो क्या, दुनिया के किसी देश का सदन भी यदि जम्मू-कश्मीर को हमसे जुदा करने की बात भी जुबां पर लाए तो हमें वह कदापि मंजूर नहीं। जहां तक ऑक्सफोर्ड का सवाल है तो मेरे मन में बार-बार यह सवाल उठता है कि ब्रिटेन की हालत तो खुद खराब है, वह देश भीषण समस्याओं से जूझ रहा है। बेरोजगारी, आर्थिक संकट और आरोग्य सेवा में कमी से पूरा देश जूझ रहा है। कहने का मतलब है कि खुद का घर तो संभल नहीं रहा है, दूसरे के घर में झांक रहे हैं? यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है कि सर्द ब्रिटेन में कश्मीर को लेकर गर्मी क्यों बढ़ी हुई है? ऑक्सफोर्ड क्या किसी का तोता बना हुआ है जो अपने अदृश्य मालिक या संचालनकर्ता की भाषा बोल रहा है? ब्रिटेन को समझना चाहिए कि फूट डालो और राज करो का जमाना चला गया। उसे ऐसी हरकतों से दूर रहना चाहिए, मुझे याद आ रहा है कि जब अनुच्छेद 370 का खात्मा हुआ था तब भी ऑक्सफोर्ड ने बहस का आयोजन किया था जिसका विषय था 'क्या कश्मीर का विशेष अधिकार हटाना चाहिए था?' उसमें भाजपा नेता बैजयंत पांडा और वामपंथी नेता मरहूम सीताराम येचुरी ने भाग लिया था। मैं तब भी सोच रहा था कि ऐसी किसी बहस में भाग ही क्यों लेना?

मैं स्पष्ट कर दूं कि एक लोकतांत्रिक देश के स्वतंत्र नागरिक और स्वतंत्र विचारों का घनघोर पक्षधर होने के नाते मैं मानता हूं कि हर विषय पर बहस होनी चाहिए लेकिन सवाल है कि जब किसी षड्यंत्र के तहत बहस किए जाने का अंदेशा हो तो हम क्यों जाएं? विवेक को जिस बहस के लिए बुलाया गया था उसमें पाकिस्तान के भी किसी वक्ता को आमंत्रित किया गया था। निश्चित रूप से इस बहस के माध्यम से कश्मीर मुद्दे को वैश्विक स्तर पर तूल देने की कोशिश की जाती। बहस से गुरेज नहीं है, बहस के विषय से गुरेज है, भारत सरकार को भी इस तरह के विषय पर आयोजन की मुखालफत करनी चाहिए। बहस करना है तो इस विषय पर कीजिए कि कश्मीर में आतंकवाद ने अब तक 40 हजार से ज्यादा जानें ले ली हैं। एक पूरी पीढ़ी जन्म से लेकर जवानी पार तक पहुंच गई लेकिन उसने दुनिया नहीं देखी, न स्कूल देखे, न खेल के मैदान देखे, न फिल्में देखीं। उसने देखा तो बस लादा गया आतंकवाद जिसने बचपन छीन लिया, जवानी छीन ली, महिलाओं को बेवा बना दिया, मां की कोख सूनी कर दी। चीन में दस लाख से ज्यादा वीगर मुसलमानों की दर्दनाक जिंदगी की बात ऑक्सफोर्ड क्योें नहीं करता? उसे केवल कश्मीर ही नजर आता है? चीन की बात वह इसलिए नहीं करता क्योंकि चीन के साथ वह गलबहियां डाले हुए है।

वहां ऑक्सफोर्ड चाइना फोरम नाम की संस्था चलती है, कौन सा देश क्या कर रहा हैै, मैं इस पर नहीं जाना चाहता लेकिन यह जरूर जानता हूं कि भारत के खिलाफ हर तरफ से साजिशें चल रही हैं। मैं विदेश मंत्री एस. जयशंकर की इस बात से पूरा इत्तेफाक रखता हूं कि उपनिवेशवादियों का नजरिया भारत के प्रति नहीं बदला है। उन्हें यह बात पच नहीं रही है कि जो देश सैकड़ों साल गुलाम रहा, वह खुद को गुलाम बनाने वाले देश को भी आर्थिक तरक्की में बहुत पीछे छोड़ चुका है और जल्दी ही दुनिया की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बनने वाला है। हमारे पड़ोसियों को भी यह बात नहीं पच रही है, वे हर हाल में भारत को पीछे खींचना चाहते हैं, इसलिए आतंकवाद से लेकर दूसरे तमाम तरह के षड्यंत्र रचे जा रहे हैं लेकिन ऐसी ताकतों से मैं कहना चाहता हूंं कि तुम लाख मुश्किलें खड़ी कर लो लेकिन अब भारत की रफ्तार रुकने वाली नहीं है।

इतिहास के पन्नों पर
दफन हो गईं त्रासदियां
ये नए दौर का भारत है
हम न रुकेंगे, न हम झुकेंगे
मेरे प्यारे दुश्मनों…
हम तो अब
आंख में आंख डालकर देखेंगे।