संपादकीय

क्या दिल्ली के भाग्य छींका टूटेगा?

Shera Rajput

दिल्ली को लेकर भाजपा में गहन आत्ममंथन का दौर जारी है। भाजपा का एक खेमा इस राय की जोरदार वकालत कर रहा है कि देश की राजधानी दिल्ली आम आदमी पार्टी की कथित अराजक नीतियों का भार नहीं उठा पा रही है, जिससे दिल्लीवासियों का जीवन दूभर हुआ जा रहा है। दिल्लीवासी पिछले दो महीनों की बारिश से पैदा हुए जलभराव व जाम जैसी रोज की समस्याओं से जूझ रहे हैं। भले ही आप के नेता नंबर दो मनीष सिसोदिया की रिहाई का रास्ता साफ हो गया हो, पर यहां लोग अभी भी असमंजस में हैं कि जिस पार्टी का सर्वोच्च नेता और उसके कई अन्य महत्वपूर्ण सहयोगी जेल में हों उस पार्टी का रास्ता किधर जाता है? क्या है इस पार्टी का भविष्य? इसका रोड मैप? सो, भाजपा का यह खेमा खम्म ठोक कर अपने पार्टी हाईकमान से कह रहा है कि 'क्यों नहीं आने वाले दिनों में दिल्ली को 'मेट्रोपॉलिटन काऊंसिल' का दर्जा दे दिया जाए।'
वहीं भगवा पार्टी के अंदर ही एक दूसरा खेमा वह भी है जो लगातार इस बात की गुहार लगा रहा है कि दिल्ली को मौजूदा विशेष राज्य का दर्जा बनाए रखना चाहिए और पार्टी को अभी से चुनावों की तैयारियों में जुट जाना चाहिए। जब से 24 के चुनाव में भाजपा ने यहां की सभी सातों सीटें जीत ली हैं, इस खेमे के मंसूबों के पताकों को नई हवा मिलने लगी है। दिल्ली भाजपा में एक हालिया जनमत सर्वेक्षण के नतीजों की भी खूब चर्चा है जिसमें एक एजेंसी की ओर से दावा हुआ है कि अगर आज की तारीख में दिल्ली में विधानसभा चुनाव होते हैं तो इसमें भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभर सकती है।
इसी सर्वे में दावा हुआ है कि आप के तकरीबन 65 फीसदी मुस्लिम वोट और दलित वोटरों का भी एक बड़ा तबका शिफ्ट होकर कांग्रेस की ओर आ गया है, सो ऐसे में जब कांग्रेस व आप एक-दूसरे का वोट काटेंगे तो इस चुनावी घमासान के कीचड़ में बेसाख्ता कमल खिल सकता है। सो, दिल्ली को लेकर भाजपा शीर्ष का असमंजस बरकरार है कि दिल्ली के विषेश राज्य का दर्जा खत्म किया जाए या फिर यहां यथास्थिति बनाए रखते हुए विधानसभा के चुनाव करवा दिए जाएं।
अन्नामलाई की रुखाई से हैरान भाजपा नेतृत्व
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने 2024 चुनावों की आधारशिला रखते हुए बेहद अरमानों से तमिलनाडु में अपेक्षाकृत एक नए चेहरे अन्नामलाई पर दांव लगाया था। उन्हें तमिलनाडु में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की महती जिम्मेदारी सौंपी गई और लोकसभा का चुनाव लड़ने के भी लिए कोयंबटूर जैसी एक आसान सीट दी गई, जहां की भगवा जमीन पहले से काफी मजबूत थी। पर जब 2024 के चुनावी नतीजे सामने आए तो तमिलनाडु में भगवा कमल मुरझा गया, उम्मीदें आसमां पर थीं पर चुनावी नतीजों ने भाजपा को इस दक्षिण भारतीय राज्य में जमीन पर ला दिया। जब चुनावी नतीजों के बाद भाजपा शीर्ष ने अन्नामलाई की क्लास लगानी चाही तो उन्होंने झट से अपने इस्तीफे की पेशकश कर दी, साथ ही तीन महीनों की छुट्टी की अर्जी भी लगा दी ताकि वे लंदन में एक 'शार्ट टर्म' कोर्स कर सकें। पर नाराज़ हाईकमान ने उनकी यह छुट्टी की अर्जी अभी तक स्वीकार नहीं की है, उन्हें उनके पद से हटाने की कवायद जारी है, उनके विकल्प की जोर-शोर से तलाश हो रही है, भाजपा शीर्ष चाहता है कि उनका 'रिप्लेसमेंट' भी उनकी उपस्थिति में अपना पद ग्रहण करें ताकि राज्य के पार्टी कार्यकर्ताओं में एक सकारात्मक संदेश जा सके। जब पार्टी के नंबर दो से उनकी वन-टू-वन बात हुई तो पूर्व आईपीएस अफसर रहे अन्नामलाई ने भी पार्टी चाणक्य से आसानी से कह दिया कि 'तमिलनाडु अभी 'नेशनल पॉलिटिक्स' के लिए तैयार नहीं है।' यह बात भाजपा चाणक्य को खासा नागवार गुजरी, कहते हैं अपने खास लोगों से उन्होंने वेदनापूर्ण स्वरों में कहा, 'इसीलिए बाहरी लोगों पर इतना भरोसा नहीं करना चाहिए।'
जब पटनायक ने दुखड़ा रोया
ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री व बीजद प्रमुख नवीन पटनायक इन चुनावों में हुई अपनी इतनी बुरी हार को पचा नहीं पा रहे। उन्हें कहीं शिद्दत से इस बात का इल्म है कि उनके सबसे खासमखास रहे पांडियन की दगा की वजह से ही आज राज्य में बीजद का हाल बेहाल है। सो पिछले दिनों जब नवीन पटनायक दिल्ली आए तो कहते हैं उन्होंने भाजपा के एक बड़े नेता से मिल कर उनके समक्ष अपना दुखड़ा रोया। सूत्र बताते हैं कि नवीन बाबू ने भाजपा नेता से दो टूक कहा कि बीजद को लेकर उन्हें जो भी बात करनी हो वे सीधे उनसे यानी नवीन से करें, नवीन ने इशारों-इशारों में भाजपा नेता को बता दिया कि किसी तीसरे व्यक्ति यानी पांडियन को बीच में लाने की कोई जरूरत नहीं।
सूत्र बताते हैं कि नवीन ने पांडियन को दरकिनार रखते हुए अपना उत्तराधिकारी ढूंढ लिया था, यह और कोई नहीं बल्कि दिल्ली में रहने वाले नवीन के भतीजे अरुण पटनायक हैं। यही वजह थी कि इस दफे नवीन पटनायक दो विधानसभा सीटों कांटाबंजी और हिंजली से चुनाव लड़ रहे थे। उनका इरादा था कि दोनों सीटों से चुनाव जीतने के बाद हिंजली की अपनी परंपरागत सीट से वे इस्तीफा दे देंगे और वहां से अपने भतीजे अरुण को चुनाव लड़वा देंगे, पर जो नवीन पटनायक 24 सालों में कभी एक भी चुनाव नहीं हारे वे इस बार कांटाबंजी से चुनाव हार गए, नवीन जानते थे कि यह उस घर के भेदी की ही चाल थी जो उनके इरादों को पस्त करना चाहता था और स्वयं को नवीन का स्वाभाविक उत्तराधिकारी मानता था, जो 15 सालों से साए की तरह नवीन के साथ था। आज नवीन चाह कर भी पांडियन पर पटलवार नहीं कर पा रहे, क्योंकि वही उनके अब तक के सबसे बड़े राजदार माने जाते हैं। कहते हैं कि पांडियन ने भी इशारों-इशारों में यह संदेश नवीन तक पहुंचवा दिया है कि उन्हें बिना वजह ज्यादा छेड़ा गया तो इसकी तपिश नवीन बाबू को ही झेलनी पड़ेगी।
…और अंत में
जब से इस लोकसभा चुनाव में सपा के टिकट पर अयोध्या यानी फैजाबाद लोकसभा सीट से वरिष्ठ समाजवादी नेता अवधेश प्रसाद विजयी रहे हैं, राहुल व अखिलेश की जोड़ी सदन में इन्हें सिर-माथे पर बिठा कर रखती है। इस दलित नेता अवधेश प्रसाद को पूरा यकीन था कि अखिलेश उन्हें सदन में पार्टी का उप नेता बनाएंगे, पर अखिलेश ने लोकसभा में सपा संसदीय दल का उप नेता बाबू सिंह कुशवाहा को घोषित कर दिया। कहते हैं इस पर भरी महफिल में अवधेश प्रसाद अखिलेश पर बेतरह भड़क गए और बोले 'आप बात तो पीडीए की करते हैं, पर इसमें से आपका 'डी' यानी दलित ही गायब है। आपने एक ऐसे व्यक्ति को उप नेता बनाया है जिन पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगे हैं, उन्हें आपने जीतने के लिए भी जौनपुर जैसी सबसे सेफ सीट दी।'
अखिलेश ने बड़ा दिल दिखाते हुए अवधेश प्रसाद को अलग ले जाकर समझाया-ये बातें अकेले में बताने की हैं। मैं एक पार्टी चला रहा हूं, जानता हूं कि कुशवाहा बिरादरी जो अभी-अभी बहिन जी से अलग हुई हैं उसे साथ लेना कितना जरूरी है। वैसे भी मैं अब पीडीए नहीं एबीडीपी पर काम रहा हूं यानी अल्पसंख्यक, ब्राह्मण, दलित, पिछड़ा।' सो, फिलहाल अवधेश प्रसाद अधिष्ठाता मंडल के सदस्य बन कर ही संतुष्ट होने को मजबूर हो गए हैं।

– त्रिदिब रमण