यूं तो लव जिहाद और लैंड जिहाद तो खबरों में थे ही, हाल ही में सलमान खुर्शीद की भतीजी, मारिया आलम खां ने इंडी गठबंधन की एक चुनावी सभा में वोट जिहाद का बम फोड़ दिया और कहा कि जो मुसलमान भाजपा या संघ के हितैषी हैं उसका हुक्का-पानी बंद किया जाना चाहिए। यूं तो चुनाव में हर प्रकार की खुराफात की जाती है और हद तो यह है कि प्रत्याशियों के कथित रूप से कपड़े तक उतार दिए जाते हैं मगर इस प्रकार की असंवैधानिक और ज़हरीली भाषा पहली बार सुनने में आई है।
वास्तव में भारत की चुनावी प्रणाली इतनी मजबूत और पुरानी है कि दूसरे किसी देश में यह देखने में नहीं आती, जिसका कारण है कि डा. भीम राव अंबेडकर और उनकी टीम ने न केवल विश्व का सबसे बड़ा संविधान बनाया बल्कि सबसे सशक्त क़ानून बनाया, जिसमें हर बात को ध्यान में रखकर सभी वर्गों के अधिकारों को सुरक्षित करने की बात की गई है। भारत में किसी भी धर्म का व्यक्ति चुनाव के समय किसी भी राजनीतिक दल को अपना मत दे सकता है। मारिया द्वारा इस प्रकार की भड़काऊ भाषा एक सार्वजनिक सभा से बोलना क़ानूनी तौर से असंवैधानिक और मज़हबी ऐतबार से गैर कानूनी है। न केवल ऐसे व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए बल्कि उसके विरुद्ध सख्त कानूनी कार्यवाही भी होनी चाहिए।
यूं तो सलमान खुर्शीद एक नामचीन अधिवक्ता, कांग्रेस के प्रवक्ता और रिश्ते में मारिया के चाचा लगते हैं, उन्होंने अपनी भतीजी की भर्त्सना नहीं की और स्वयं को इस पचड़े से बाहर रखा है मगर उनको खुल कर एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ और वकील होने के नाते इस आग लगाने वाले बयान के विरुद्ध सार्वजनिक तौर पर बयान देना चाहिए था क्योंकि मात्र इससे अपने को अलग करने से कोई फायदा नहीं।
यहां शब्द 'जिहाद' की व्याख्या आवश्यक है। वास्तव में "जिहाद" का अर्थ है, अपने अधिकारों के लिए यत्न व कर्मठ कार्य करना। एक तो साधारण 'जिहाद' होता है, एक होता है, 'जिहाद-ए-अकबर'। साधारण 'जिहाद' क्या होता है, समझें। उदाहरण के तौर पर यदि किसी भी देश के मुस्लिमों से कहा जाता है कि वे नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिदों में न जाएं तो यह मुस्लिमों के अधिकारों के विरुद्ध होगा। 'जिहा' का अर्थ है कि मुस्लिम मौखिक रूप से सरकार से नमाज़ की इजाज़त मांगेंगे। अगर आज्ञा नहीं मिली तो वे दबाव डाल कर कहा जाएगा। अगर तब भी बात नहीं मानी गई तो फिर हथियार उठाना पड़ सकता है। यिद ये सभी व्यर्थ हों तो फिर वह मुस्लिम ख़ामोशी से दुआ करके, सजदे में जाकर अल्लाह से मदद की गुहार लगाता है। जहां तक 'जिहाद-ए-अकबर' की बात है, इसका अर्थ है अपनी कमियों और बुराईयों से लड़ना, उन्हें रोकना, उनसे जिहाद करना। वास्तव में यही असली जिहाद है। 'लव जिहाद', 'लैंड जिहाद' आदि कुछ भी नहीं है।
– फिरोज बख्त अहमद