दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराया था। जहां हिरोशिमा पर गिराया गया बम 'लिटिल बॉय' था जबकि नागासाकी पर 'फैट मैन' बम गिराया गया था। ऐसा माना जाता है कि अमेरिका के इस हमले में हिरोशिमा के 1,40,000 लोग और, नागासाकी में करीब 74,000 लोग मारे गए थे। लेकिन इस बमबारी का असर पीढ़ियों तक देखने को मिल रहा है। इस युद्ध के दौरान अमेरिका ने जापान को पूरी तरह बर्बाद करने की रणनीति तैयार कर ली थी और उसके कई शहरों पर परमाणु बम गिराने की योजना थी।
लेकिन देखने वाली बात है कि परमाणु बम के निशाने पर आने वाले इन शहरों में टोक्यो का नाम नहीं था। क्योंकि परमाणु हमले से महीनों पहले ही अमेरिका ने इतिहास की सबसे विनाशकारी बमबारी से टोक्यो का नामोनिशान मिटाने की सोच ली थी। इसे बमबारी को 'बॉम्बिंग ऑफ टोक्यो' कहा जाता है। आइए जानते हैं परमाणु हमले से पहले अमेरिका द्वारा टोक्यो में मचाई गई तबाही का पूरा किस्सा।
अमेरिका द्वारा टोक्यो पर की गई बमबारी को 'ग्रेट टोक्यो एयर रेड' व 'बॉम्बिंग ऑफ टोक्यो' के नाम से भी जाना जाता है। यह बमबारी हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमले से चार महीने पहले यानी 9 मार्च 1945 को की गई थी। दरअसल, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने दुश्मन देशों के खिलाफ एक ऑपरेशन शुरू किया था, जिसको नाम दिया गया था 'ऑपरेशन मीटिंग हाउस'। इस ऑपरेशन के दौरान अमेरिका ने अपने बी-29 विमानों को टोक्यो पर बमबारी के लिए भेजा था।
बी-29 विमानों काफी ऊंचाई तक तेज गति से बड़े-बड़े बम लेकर उड़ान भर सकते थे। इन्हें 20 साल की लगातार रिसर्च के बाद बनाया गया था। दूसरे विश्व युद्ध तक इन्हें ऐसा तैयार किया गया था कि ये 18 हजार फुट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकते थे और इसके क्रू को ऑक्सीजन मास्क लगाने की जरूरत भी नहीं पड़ती थी। ऊंची पर उड़ने के कारण ये एंटी एयरक्राफ्ट गन की रेंज से भी बाहर होते थे और दुश्मन के लड़ाकू विमान पहुंचने तक काफी नुकसान कर जाते थे।
इतनी सारी क्वालिटी होने के बावजूद भी बी-29 की जापान में शुरुआती बमबारी की फेल बताई गई थी। दरअसल, तब इन विमानों ने इतनी ऊंचाई से बम गिराए कि उनमें से 20 फीसदी ही निशाने तक पहुंच पाए। इसके लिए अमेरिकी क्रू ने कम दृश्यता को जिम्मेदार ठहराया था। इसके साथ यह भी कहा गया कि इन विमानों की उड़ान के कारण उत्पन्न होने वाले तेज हवा के झोंके भी बमों को गिराने पर अपने टारगेट से भटका देते थे।
इसलिए जब टोक्यो पर हमला किया गया तो विमानों को 5,000 से 8,000 फुट की ऊंचाई पर उड़ाया गया। इसके लिए रात का समय चुना गया, ताकि जापान को मुकाबले का कम से कम समय मिले। इन विमानों में फायर बम लोड किए गए, जिससे लकड़ी के घरों से बसे टोक्यो को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाया जा सके। 9 मार्च, 1945 की शाम को इन विमानों ने जापान से करीब 1500 मील दूर अलग-अलग आईलैंड पर बनाए गए अमेरिकी बेस से करीब सात घंटे की उड़ान भरी।
देर रात 1:30 बजे से सुबह 3 बजे के बीच जब लोग गहरी नींद में सोए हुए थे उस बीच अमेरिकी बी-29 विमानों ने पांच लाख से ज्यादा एम-69 बम टोक्यो पर बरसा दिए। इन्हें 38-38 बमों के ग्रुप में गिराया गया, जिनका वजन छह पाउंड था। ये बम विमान से गिराते ही अलग होकर छोटे-छोटे पैराशूट के सहारे जमीन पर अपने निशाने की ओर बढ़ जाते थे। सीएनएन की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिकी बी-29 विमानों ने उस रात जापान की राजधानी टोक्यो पर 1500 टन फायर बम बरसाए थे।
10 मार्च 1945 को सुबह 'ऑपरेशन मीटिंगहाउस' खत्म हो गया यानी यह ऑपरेशन सिर्फ एक ही दिन चला, लेकिन इस एक दिन में टोक्यो में मरने वाले लोगों का आकड़ा हिरोशिमा और नागासाकी में हुई मौतों से ज्यादा था। इस हमले में 1.25 लाख से ज्यादा लोग घायल हो गए। इसके अलावा करीब 10 लाख लोग बेघर हो गए। हमले में लगभग सब कुछ जल गया था, लकड़ी के घर, टाटामी चटाइयाँ, लोगों के बाल, कपड़े और जानवर।
वहीं, बी-29 के फ्लाइट इंजीनियर रहे जिम विल्ड के बेटे बॉमन ने सीएनएन को बताया कि विमानों के नीचे सबकुछ लाल दिख रहा था। देखते ही देखते बी-29 विमानों में धुआं भरता चला गया। नीचे से इतनी तेज गर्म हवा उठ रही थी कि 37 टन के विमान को 5000 फुट ऊपर हवा में उछाल देती और फिर क्षण भर में नीचे गिरा देती थी। हमले के बाद जब बी-29 विमान वापस लौट रहे थे तो टोक्यो से 150 मील दूर तक आग की लपटें दिखाई दे रही थीं। हालांकि इस घटना में 14 अमेरिकी विमान भी दुर्घटनाग्रस्त हो गए थे, जिसमें करीब 96 वायुसैनिक मारे गए।