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चीन में घुसकर जापानी सैनिकों ने की थी क्रूरता की सारी हदें पार, निर्मम हत्या, बलात्कार और लूट से कांप उठी थी दुनिया

Ritika Jangid

13 दिसंबर 1937 ये वो दिन था जब जापान और चीन के बीच दूसरा विश्व युद्ध शुरु हुआ था। इस युद्ध में चीनी सेना को हार का सामना करना पड़ा था। यहां चीन के हार में परास्त होने से ज्यादा खौफनाक था जापान का चीनी नागरिकों पर अत्याचार। ये अत्याचार इतना डरावना था कि जो भी उन दिनों को याद करता है उसकी रूह कांप जाती हैं।

क्योंकि अत्याचार की सारी हदें पार करते हुए जापानी सैनिकों ने चीनी नागरिकों का जिंदा दफन किया था, महिलाओं-बच्चियों का बलात्कार किया था और डर पैदा करने के लिए लोगों को जिंदा मारकर उनका मांस खाने की जानकारी भी दर्ज है.

जब ये युद्ध छिड़ा उस समय चीन आज की तरह ताकतवर नहीं था। उसकी सेना कमजोर थी जबकि जापानी सेना ज्यादा मजबूत, संगठित और एकजुट थी। दोनों के बीच जो युद्ध हुआ वह 20वीं शताब्दी के सबसे बड़े एशियाई युद्ध के तौर पर भी जाना जाता है। वहीं जापानी सेना की सेकंड वर्ल्ड वॉर के वक्त की इस क्रूरता को सेकंड चीन-जापान वॉर के नाम से जाना जाता है।

चीन से बदला चाहता था जापान

बता दें, जापान-चीन से काफी समय से ही नाराज था, दरअसल, ये बात 1875 के पास की है जब सोवियत संघ रेलवे प्रोजेक्ट के बहाने कोरिया में घुसा था, इसका देश के अंदर तगड़ा विरोध हुआ। कोरियाई सेना विद्रोह को दबाने में विफल रही तो उसने चीन से मदद मांगी। यह बात जापान को पसंद नहीं आई क्योंकि जापान को कोरिया के प्राकृतिक संसाधन चाहिए थे। उसने कोरिया से इन पर हक मांगा लेकिन चीन से दोस्ती के कारण कोरिया ने जापान को मना कर दिया।

इसलिए कोरिया में चीन की एंट्री से ही जापान ने चीन से बदला लेने की ठानी और पहला युद्ध छिड़ गया। ये दोनों देश घोषित तौर पर पहली बार साल 1894 में आमने-सामने आए। यह युद्ध 17 अप्रैल 1895 तक चला। इस युद्ध में उसने चीनी सैनिकों को सबक सिखाने को अपने कई हजार जवान भेज दिए। उस समय जापान ने कोरिया में तख्तापलट की कोशिश की जिसे चीन की मदद से नाकाम कर दिया गया। कोरिया के किंग बच गए और इस अघोषित युद्ध में बड़ी संख्या में जापानी सैनिक मारे गए। समझौते के बाद यह युद्ध खत्म हुआ।

इसके बाद जुलाई 1937 में एक बार फिर से जापान ने चीन पर आक्रमण कर दिया। इस समय चीन गृह युद्ध का सामना कर था। इस हमले में राष्ट्रवादी सरकार और कम्युनिस्ट जापान के खिलाफ एक साथ आए लेकिन कुछ कर नहीं पाए। जापानी सेना काफी मजबूत थी और वह अपनी पूरी ताकत के साथ चीन के अलग-अलग प्रांतो में घुसती चली गई।

जापान ने पेकिंग, सुईयुनान, चहर आदि कई प्रांतों पर हमला अधिकार जमा लिया। जहां नहीं घुस पाए वहां जापानी वायुसेना ने बमबारी कर चीन को नुकसान पहुंचाया। इस समय चीन की राजधानी नानजिंग चीन हुआ करती थी, जिसपर भी जापान ने कब्जा कर लिया जहां से सरकार चला करती थी।

अत्याचार की हुई थी सारी हदें पार

जापानी सैनिकों ने चीन पर कब्जा तो किया ही लेकिन उसने अत्याचार की सारी हदें पार कर दी थी। बता दें, जापानी सैनिकों ने नानजिंग शहर में मानवता को शर्मशार कर देने वाला नरसंहार मचाया था। क्योंकि यहां लोगों को जिंदा दफन कर दिया गया। महिलाओं-बच्चियों के साथ बलात्कार हुए। तलवार से गर्दन उड़ा देने की घटनाएं बड़े पैमाने पर हुई। यहां तक की इस युद्ध में बच्चों तक को बक्शा नहीं गया। कोई सुरक्षित नहीं था। जापानी सैनिक चीन के आम लोगों को ही निशाना बनाते थे। सोवियत संघ भी चीन के समर्थन में उतरा लेकिन जापान के आगे सब फेल साबित हुए। इस बीच दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया।

जब जापान हुआ कमजोर

धीरे-धीरे चीनी सरकार मजबूत हो रही थी। इस बीच अमेरिका ने भी चीन का साथ देने का फैसला किया और सैन्य सहायता भेजी। ब्रिटेन भी चीन के साथ खड़ा हुआ। इस बीच चीन में कम्युनिस्ट मजबूत होते गए और वह अपने देश में इस नरसंहार को रोकने के लिए पूरी मजबूती के साथ खड़े हुए । अगस्त 1945 में अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम से हमला कर दिया। दोनों शहरों में मची भारी तबाही के बाद जापान कमजोर पड़ने लगा।

दो शहरों पर इतने बड़े पैमाने हुए हमले के बाद जापान तो कमोजर हो ही गया था और इस बीच सोवियत संघ की सेना ने मनचुरिया में जापान के सैनिकों को सरेंडर करने को विवश कर दिया। राष्ट्रवादी सरकार को भी झुकना पड़ा। इसके बाद चीन-जापान का युद्ध खत्म हुआ और ताइवान, नानजिंग चीन को वापस मिल गए।

चीन का दावा है कि इस युद्ध के दौरान चीन के नागारिक और सैनिकों समेत कुल साढ़े तीन करोड़ लोग मारे गए थे। वहीं जापान की डिफेंस मिनिस्ट्री के मुताबिक, जापान के 2 लाख सैनिक मारे गए थे। बता दें, इस दिन को चीन में राष्ट्रीय शोक के रूप में मनाया जाता है।

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