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कब है अक्षय तृतीया और क्या है इसका महत्व क्यों होता है खास ?

Astrologer Satyanarayan Jangid

Horoscope: अक्षय के शाब्दिक अर्थ की बात करें तो जिसका क्षय नहीं हो अर्थात् ऐसा कुछ जो कभी खत्म नहीं हो। और तृतीया का अर्थ तीसरी तिथि है। यह दिन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होने के कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। इसका महत्व आप इस बात से लगा सकते हैं कि राजस्थान या समस्त उत्तर भारत में इस दिन को विशेष शुभ दिन माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन किसी भी नये कार्य की शुरुआत की जा सकती है। उसके लिए किसी तरह से पंचांग आदि देखने या चन्द्र बल या मुहूर्त आदि को देखने की आवश्यकता नहीं होती है। यह जगत प्रसिद्ध साढे़ तीन सर्वसिद्ध अबूझ मुहूर्तों में से एक है। आम बोलचाल की भाषा में इसे आखातीज भी कहा जाता है।

राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में किसी जमाने में इस दिन हजारों की संख्या में बाल विवाह होते थे। हालांकि अब भी यह कुरीति प्रचलन में है। लेकिन सामाजिक संस्थाओं के योगदान, शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति और सरकार के बाल विवाह निषेध कानून के सख्त पालन के कारण काफी हद तक इस पर लगाम लगी है। फिर भी पूरी तरह से बाल विवाह बंद नहीं हुए हैं। हम सभी का यह कर्तव्य है कि बाल विवाह की सूचना संबंधित अथॉरिटी का दें। अक्षय तृतीया को चूंकि बाल विवाह का प्रसिद्ध दिन है अतः इस दिन विशेष सतर्कता की आवश्यकता होती है।

क्या है विशेष ?

आमतौर पर सभी शुभ कार्यों को अक्षय तृतीया को किये जा सकते हैं। जैसे जमीन, गहने या किसी भी वस्तु की खरीद करना, भूमि पूजन, गृह-प्रवेश, वाहन की खरीद, किसी दुकान, ऑफिस, फैक्ट्री आदि की शुरुआत करना, विशेष पूजा, मंत्र साधना या अनुष्ठान का आयोजन करना, पितरों का पिंडदान या तर्पण, गंगा-स्नान आदि सभी शुभ कार्य किये जा सकते हैं। इसके अलावा इस दिन दान का विशेष महत्व बताया गया है। अपनी क्षमता और श्रद्धा के अनुसार सभी लोगों को इसलिए दान या गो-सेवा जरूर करनी चाहिए। इसके अलावा अक्षय तृतीया चूंकि विशेष ग्रीष्म ऋतु में आती है इसलिए इस दिन जल के दान का अपना अलग महत्व है। पक्षियों के लिए जल के मिट्टी से बने बर्तनों जैसे कुल्हड़ आदि में पानी की व्यवस्था करनी चाहिए। ग्रीष्म ऋतु से संबंधित चीजें और खाद्य पदार्थ छतरी, पंखें, ककड़ी, चप्पल, चीनी, इमली, नींबू, चावल आदि का दान भी किया जा सकता है।

खाने में इस दिन सभी प्रदेशों में अलग-अलग रीति रिवाज प्रचलन में है। जैसे राजस्थान में इस दिन खिचड़ी बनाई जाती है और इस खिचड़ी को इमली के रस के साथ खाया जाता है। मान्यता है कि इमली में शरीर की गरमी को सोखने का विशेष गुण होता है।

कब है अक्षय तृतीया ?

वैशाख शुक्ल पक्ष, तृतीया, विक्रम संवत् 2081, शुक्रवार। तदनुसार अंग्रेजी दिनांक 10 मई 2024 को सूर्योदयी तृतीया तिथि है। इस दिन अक्षय तृतीया तिथि सम्पूर्ण दिन और रात्रि में रहेगी। इसलिए पूरा दिन ही शुभ है। वृषभ राशि का चन्द्रमा होने से दक्षिण और पूर्व दिशा की बिजनेस यात्रा से विशेष लाभ उठाया जा सकता है। वृभष राशि वालों के लिए यह दिन विशेष शुभ है क्योंकि अक्षय तृतीया को चन्द्रमा वृषभ राशि में होकर उच्च का हो जाता है और रोहिणी नक्षत्र है, जिसका स्वामी चन्द्रमा है। इसलिए वृषभ राशि के लोग किसी नये कार्य की शुरूआत करे तो उसे सफल होने की संभावना बढ़ जाती है।

क्या कहती है पौराणिक कथा ?

सम्राट चन्द्रगुप्त के पूर्व जन्म की कथा को भी अक्षय तृतीया से जोड़ कर देखा जाता है। कथा के अनुसार धर्मदास नामक एक प्रसिद्ध बनिया था। धर्म के प्रति उसकी अगाध आस्था थी। प्रतिदिन देवताओं के पूजन और ब्राह्मण भोजन के उपरान्त ही वह अपना व्यापार आरम्भ करता था। एक दिन उसने अक्षय तृतीया का महात्म्य सुना। उसके बाद वह प्रति वर्ष अक्षय तृतीया का व्रत और अनुष्ठान पूरी भक्ति भाव और निष्ठा से करने लगा। कहा जाता है कि उसके यज्ञ में देवता भी ब्राह्मणों का वेष धारण करके आते थे। मान्यता है कि यही बनिया अपने अगले जन्म में कुशावती नगरी का राजा बना। सभी तरह के वैभव के बावजूद भी शालीन और धर्म के प्रति आस्थावान बना रहता था। अपना अधिकतर समय भक्ति में व्यतीत करता था। मान्यता है धर्मदास ने अपना अगला जन्म सम्राट चन्द्रगुप्त के रूप में लिया।

श्री परशुराम जयंती ?

पुराणों के अनुसार इस दिन अर्थात् अक्षय तृतीया को भगवान श्री विष्णु ने परशुराम का अवतार लिया था। परशुराम जी जन्म से ब्राह्मण थे लेकिन कर्म से क्षत्रिय थे। इनका प्रिय शस्त्र परशु था, जिसे वे हमेशा अपने साथ रखते थे। इसलिए इनको परशुराम कहा जाता है। कहा जाता है उन्होंने 21 बार भारत से क्षत्रियों को नष्ट कर दिया था

जैन धर्म में अक्षय तृतीया का महत्व

जैन धर्म विश्व के प्राचीन धर्मों में से एक है। और अक्षय तृतीया जैन धर्म में एक सबसे पर्वों में से एक माना जाता है। इससे जुड़ी कथा भी बहुत रोचक है। मान्यता है कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव ने एक वर्ष के लिए घोर तपस्या की। जैसा कि आप जानते हैं कि भगवान श्री ऋषभदेव सन्यास ग्रहण करने से पूर्व हस्तिनापुर के सम्राट थे। बाद में उन्होंने सन्यास ले लिया। जब वे एक वर्ष की तपस्या के उपरान्त हस्तिनापुर आये तो उस समय वहां उनके पौत्र सोमयश का शासन था। जैसे ही उनके पहुंचने की सूचना हुई लोग दर्शनार्थ उनके सामने जाने लगे। उसी समय सोमयश के पुत्र श्रेयांश कुमार ने आदिनाथ को पहचान लिया। लेकिन उस तत्काल खाने की कोई व्यवस्था नहीं थी। इसलिए गन्ने के रस को शुद्ध मानते हुए उन्हें गन्ने का रस अर्पित किया गया। इसी रस से आदिनाथ भगवान ने व्रत का पारायण किया। मान्यता है कि उस दिन वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी। गन्ने का इक्षु भी कहा जाता है। सायद इक्षु से ही अक्षय शब्द की उत्पत्ति हुई होगी। इसलिए जैन समाज में अक्षय तृतीया को इक्षु तृतीया भी कहा जाता है।

जैन धर्म में तभी से वर्षी तप की शुरुआत हुई। और यह वर्तमान में अनवरत जारी है। इस वर्षी तपस्या का आरम्भ प्रत्येक संवत् वर्ष में कार्तिक कृष्ण अष्टमी से आरम्भ होता है और अगले वर्ष वैशाख शुक्ल तृतीया को पारायण किया जाता है। विक्रम संवत के आधार पर गणना करने पर यह वर्षी तप वास्तव में एक वर्ष का न होकर करीब 13 माह का होता है।

अक्षय तृतीया से संबंधित कुछ खास बातें:-

– भारत में इस दिन बहुत से प्रदेशों में पतंग महोत्सव मनाया जाता है।

– माना जाता है गंगा का अवतरण इसी दिन हुआ था।

– सत युग, त्रेता युग और द्वापर युग का प्रारम्भ इसी तिथि को हुआ।

– भगवान श्री परशुराम जी का अवतार इसी तिथि को हुआ था।

– ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण भी अक्षय तृतीया को ही हुआ था। इसलिए उनका नाम अक्षय रखा गया।

– श्री बद्रीनाथ जी की मूर्ति की स्थापना और विशेष पूजा इसी तिथि को की जाती है।

– वृन्दावन स्थित श्री बांके बिहारी की मंदिर में इस दिन चरण दर्शन होते हैं।

– जैन धर्म में वर्षी तप पारायण इसी दिन होता है।

– मान्यता है कि इसी दिन 18 दिनों के बाद महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था।

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