राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंफोसिस फाउंडेशन की पूर्व अध्यक्ष सुधा मूर्ति को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है। प्रधानमंत्री ने ये जानकारी खुद ट्वीट कर दी और महिला दिवस के मौके पर उनके विभिन्न क्षेत्रों में योगदान की सराहना की। वहीं, राज्यसभा के लिए मनोनीत होने पर सुधा मूर्ति ने खुशी जाहिर की है। उन्होंने कहा है कि वे फिलहाल भारत में नहीं हैं। लेकिन यह उनके लिए महिला दिवस का एक बड़ा उपहार है। देश के लिए काम करना एक नई जिम्मेदारी है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शुक्रिया अदा किया है।
प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर लिखा, 'मुझे खुशी है कि भारत के राष्ट्रपति ने सुधा मूर्ति जी को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है। सामाजिक कार्य, परोपकार और शिक्षा सहित कई क्षेत्रों में सुधा जी का योगदान अतुलनीय और प्रेरणादायक रहा है। राज्यसभा में उनकी उपस्थिति हमारी 'नारी शक्ति' का एक शक्तिशाली प्रमाण है।'
पेशे से इंजीनियर, समाजसेवी और लेखिका सुधा मूर्ति अभी 73 वर्ष की हैं। वो कन्नड और अंग्रेजी साहित्य में अपने योगदान के लिए भी प्रसिद्ध हैं। उन्हें साहित्य अकादमी बाल साहित्य पुरस्कार के अलावा साल 2006 में पद्मश्री और 2023 में पद्म भूषण से सम्मानित किया जा चुका है। आइए जानते हैं राज्यसभा का चुनाव कैसे होता है और राष्ट्रपति किन्हें राज्यसभा के सदस्यों के लिए मनोनीत करते हैं।
संसद के दो सदन होते हैं, लोकसभा और राज्यसभा। राज्यसभा को ऊपरी सदन कहा जाता है। भारत के उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं। ऊपरी सदन के चुनाव में आम जनता हिस्सा नहीं लेती, बल्कि उसके चुने हुए विधायक इसमें हिस्सा लेते हैं। इसीलिए इसके चुनाव को अप्रत्यक्ष चुनाव भी कहा जाता है। राज्यसभा सांसद बनने के लिए कितने वोटों की जरूरत होती है, इसके लिए फॉर्मूला पहले से तय होता है।
फॉर्मूले के तहत राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए एक विधानसभा के कुल विधायकों की संख्या को 100 से गुणा किया जाता है। इस संख्या को राज्य की कुल राज्यसभा सीटों में एक जोड़कर उससे भाग किया जाता है। अब जो नई संख्या मिलती है, उसमें एक और जोड़ दिया जाता है। इसके बाद जो संख्या बनती है, राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए कम से कम उतने विधायकों के वोट जरूरी होते हैं।
राज्यसभा के लिए होने वाले मतदान में सभी एमएलए वोट करते हैं और उनका वोट एक बार ही गिना जाता है। इसलिए वो हर सीट के लिए वोट नहीं कर सकते हैं। राज्यसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नाम के आगे एक से चार तक का नंबर लिखा होता है। ऐसे में विधायकों को चुनाव के दौरान प्राथमिकता के आधार पर वोट देना होता है। उन्हें कागज पर लिखकर बताना होता है कि उनकी पहली पसंद कौन है और दूसरी पसंद कौन। ऐसे में पहली पसंद के वोट जिसे ज्यादा मिलेंगे, वही जीता हुआ माना जाएगा।
बता दें, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 80 में राज्यसभा के कुल सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 तय की गई है। इनमें से 238 सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से चुने जाते हैं। राज्यसभा के 12 सांसदों को राष्ट्रपति सरकार की सलाह पर मनोनीत करते हैं। बता दें, राष्ट्रपति जिन 12 लोगों को नॉमिनेट करती हैं, ये वो लोग होते हैं जो अपने किसी खास क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं।
ये साहित्य, कला, समाज सेवा और राजनीति से जुड़े क्षेत्रों की नामी हस्तियां होती हैं। जिन्होंने भी अपने काम से सुर्खियां बटोरीं और उनके कदम से देश को फायदा हुआ, उन्हें ही इसमें जगह मिलती है। जो भी राज्यसभा के मनोनीत सदस्य होते हैं उनके पास भी वही अधिकार और शक्तियां होती हैं, जो एक लोकसभा या राज्यसभा के चुनकर आए सांसदों को मिलती हैं।
लोकसभा का चुनाव सामान्य परिस्थितियों में हर पांच साल में होता है। लेकिन विपरीत परिस्थितियों में यह बीच में भी भंग की जा सकती है। इससे अलग राज्यसभा एक स्थायी सदन है और यह कभी भंग नहीं होती। इस उच्च सदन के सदस्य छह साल के लिए चुने जाते हैं। हालांकि, ऊपरी सदन में व्यवस्था ऐसी है कि राज्यसभा के एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल हर दूसरे साल पूरा होता रहता है और उनकी जगह पर नया चुनाव होता है।
वैसे अगर राज्यसभा का कोई सदस्य इस्तीफा दे दे या किसी की मृत्यु हो जाए अथवा किसी कारण से किसी सदस्य को सदन के अयोग्य घोषित कर दिया जाए, तो उसकी जगह पर उप चुनाव भी होता है। जिस सीट के लिए बीच में चुनाव होता है, उस पर चुना गया सांसद पूरे छह साल का कार्यकाल पूरा नहीं करता, बल्कि वह उतने ही समय के लिए सांसद बनता है, जितना समय पहले के सदस्य के कार्यकाल का बचा होता है।