मोबाइल फोन आज इंसानों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है। तमाम कामों को पूरा करना हो, या किसी दूर बैठे रिश्तेदार से बात करनी हो। कुछ घर बैठ सिखना हो या फिर तस्वीर लेनी हो, प्रत्येक काम में फोन जरूरी है। फोन ने जितना काम लोगों के लिए सरल बना रहा है, उतना ही नुकसान पर्यावरण को भी दे रहा है।
जी हां, फोन से इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा होता है। प्रत्येक शख्स के पास आज फोन है, शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसके पास ये नहीं हो। यहां तक की कुछ लोगों के पास एक नहीं 2-3 फोन तक भी होते है। ऐसे में इलेक्ट्रॉनिक कचरा बढ़ता दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, जो पर्यावरण के खतरे की घंटी है।
जानकारी के मुताबिक, दुनियाभर में लगभग 1600 करोड़ से ज्यादा मोबाइल फोन का इस्तेमाल किया जा रहा है जिनमें से लगभग एक तिहाई यानी 530 करोड़ से ज्यादा मोबाईल फोन को हर साल कचरे में फेंक दिया जाता है। अंतरराष्ट्रीय अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण फोरम (डब्लूईईई) की रिपोर्ट के मुताबिक यदि फेंक दिए गए मोबाइल को एक के ऊपर एक रख दिया जाए तो इसकी ऊंचाई लगभग 50 किलोमीटर होगी जो इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से भी 120 गुना ऊंचा होगा। इसी रिपोर्ट के अनुसार एक और चौंकाने वाला खुलासा ये हैं कि प्रत्येक वर्ष 8 किलो ई-वेस्ट एक इंसान उत्पन्न कर रहा है जो सालभर में 61.3 लाख टन होगा।
डब्लूईईई की ये रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय व्यापार के आंकड़ों पर आधारित हैं जिनमें से ई-कचरे के कारण बढ़ती पर्यावरणीय समस्याओं को बताया गया है। इसी रिपोर्ट में ये भी पता चलता है कि ये मोबाइल फोन उन इलेक्ट्रानिक कचरों में से हैं जिन्हें लोग अक्सर अपने पास जमा करते हैं यानी पुराने मोबाइल फोन को फेंकने या ई-वेस्ट में डालने के इतर लोग अपने पास ही रखते हैं, अगर उन्हें भी जोड़ा जाए तो ई-कचरे का पहाड़ अनुमान से बहुत ज्यादा है।
सबके बड़ा सवाल है कि दुनियाभर में इतना ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक कचरा क्यों बढ़ रहा है? इसका कारण है दुनियाभर में इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की तेजी से बढ़ती खपत। आज बाजार में मौजूद इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का जीवन काल छोटा है। इस वजह से इन्हें जल्द फेंक दिया जाता है। जैसे ही नई टेक्नोलॉजी आती है, पुराने को डंप कर दिया जाता है। इसके साथ ही कई देशों में इन उत्पादों की मरम्मत और रिसाईक्लिंग की सीमित व्यवस्था है या बहुत महंगी है। ऐसे में जैसे ही कोई उत्पाद खराब होता है, लोग उसे ठीक कराने की जगह बदलना ज्यादा पसंद करते हैं।
भारत में ई-वेस्ट के सालों में जो आकड़े सामने आये है, वो काफी डरा देने वाले है क्योंकि जितनी रफ्तार से ई-वेस्ट उत्पन्न हो रहा है, उनके निपटारे की रफ्तार उतनी ही धीमी है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के अनुसार, 2021-22 के दौरान देश में 2021-22 में 16.01 लाख टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ, लेकिन केवल 33 प्रतिशत कचरा ही एकत्रित और प्रोसेस किया गया था। बाकी लगभग 70 प्रतिशत कचरा प्रदूषण का कारण बन रहा है।
वहीं, दिसंबर 2020 में जारी रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 में देश में लगभग 10.1 लाख टन इलेक्टॉनिक कचरा निकला था। 2017-18 में ये आंकड़ा 25,325 टन था। दूसरी ओर रिपोर्ट में ये भी खुलासा हुआ था कि रिसाईकल करना तो दूर की बात है देश में बड़ी मात्रा में ई-कचरा इकट्ठा भी नहीं किया जाता।
वहीं, ऐसे में इस कचरे में मौजूद कीमती धातु जिसे फिर ठीक किया जा सकता था वो बेकार हो जाती है जो संसाधनों की बर्बादी का कारण भी बनती है। साल 2019 में इलेक्ट्रानिक कचरे को रिसाइकल न करने से हुए नुकसान की बात करें तो वो लगभग 4.3 लाख करोड़ रुपए है जो दुनिया के कई देशों की जीडीपी से भी ज्यादा है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, ई-वेस्ट का कुछ हिस्सा लैंडफिल में दबकर खत्म हो जाता है, लेकिन ये लंबे समय तक खतरनाक प्रदूषण को फैलाने का काम करता है। साथ ही इलेक्ट्रिक कचरे के कारण बड़ी मात्रा में तांबा और पैलेडियम जैसी धातुओं और खनिजों की बर्बादी भी होती है। आंकड़ों के मुताबिक मोबाइल फोन के उत्पादन में शामिल खनन, शोधन और प्रसंस्करण के दौरान 80% ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। बता दें, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बनाने में जहरीले पदार्थों (शीशा, पारा, कैडमियम आदि) का इस्तेमाल होता है।
यूएनआईटीएआर के सस्टेनेबल साइकल प्रोग्राम के सीनियर साइंटिस्ट और ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर के प्रमुख रिसर्चर डॉ. कीस बाल्डे के अनुसार, सभी देशों में ई-वेस्ट रिसाइकल की वापसी की दर अलग-अलग है, लेकिन अंतरार्ष्ट्रीय स्तर पर सिर्फ 17% ई-वेस्ट ही इकठ्ठा होकर रिसाइकिल संभव हो पाता है।
एक अन्य आंकड़े के मुताबिक अगर वर्ष 2019 में उत्पादित इलेक्ट्रॉनिक कचरे को रिसाइकल कर लिया गया होता वो करीब 425,833 करोड़ रुपए का फायदा होता। यह दुनिया के कई देशों के जीडीपी से भी ज्यादा है। आपको बता दें कि यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी की ओर से जारी ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर 2020 रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में दुनिया में 5.36 करोड़ मीट्रिक टन ई-कचरा पैदा हुआ था।
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