1985 से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लोग बेहतर कनेक्टिविटी का इंतजार कर रहे हैं। जिसके पूरा होने का सालों से इंतजार है। इस दिशा में रैपिड ट्रेन की परिकल्पना तो बीती सदी में ही तैयार हो गई थी, लेकिन इसके ट्रैक पर दौड़ने का सपना अब भी आंखों में ही है।वहीं इसके लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट भी तैयार की जा चुकी है, लेकिन इसके लिए अभी तक मंजूरी नहीं मिल पाई है। इनमें से केवल दिल्ली मेरठ कॉरिडोर के उपर काम किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि अगले साल तक यह पूरा हो जाएगा। इसके अलावा दिल्ली अलवर और दिल्ली पानीपत कॉरिडोर की डीपीआर को 2019 से केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय की मंजूरी मिलने का इंतजार है।
दिल्ली-एनसीआर में बढ़ती आबादी और यातायात के दबाव को देखते हुए भारतीय रेलवे ने 1998 में आरआरटीएस की आवश्यकता पहचानी।
दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा, फरीदाबाद, गाजियाबाद सहित एनसीआर के शहर पहले से ही देश के सबसे बड़े शहरी समूहों में से एक थे।
शुरुआती योजना मौजूदा रेलवे कॉरिडोर के साथ-साथ आरआरटीएस बनाने की थी। बताया जाता है कि उस समय रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष ने यहां के सर्वे के लिए वरिष्ठ अधिकारियों के साथ एक सैलून कोच में यात्रा भी की थी। लेकिन तब आरआरटीएस की योजना परवान नहीं चढ़ सकी। 2009 में यह योजना पुनर्जीवित हुई। तब एनसीआर 2032 के परिवहन पर कार्यात्मक योजना में दिल्ली से मेरठ, रेवाड़ी, पानीपत, पलवल, रोहतक और बड़ौत को तेजी से कनेक्टिवटी प्रदान करने के लिए 520 किमी की लंबाई के साथ कुल आठ आरआरटीएस कॉरिडोर विकसित करने का प्रस्ताव तैयार हुआ। दो अन्य कॉरिडोर गाजियाबाद से खुर्जा और हापुड़ तक प्रस्तावित थे।
पहले चरण में प्राथमिकता वाले तीन आरआरटीएस कॉरिडोर- दिल्ली मेरठ (82 किमी), दिल्ली-गुरुग्राम-एसएनबी-अलवर (198 किमी) एवं दिल्ली-सोनीपत-पानीपत (103 किमी) विकसित करने का प्रस्ताव तैयार हुआ। 2011 में यूपीए सरकार ने इन योजनाओं को सैद्धांतिक मंजूरी दी थी। 2013 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन विकास निगम (एनसीआरटीसी) काे आरआरटीएस बनाने के लिए एक कंपनी के रूप में शामिल किया गया। दिल्ली मेरठ कॉरिडोर पर तो तेजी से काम चल रहा है, लेकिन दिल्ली अलवर और दिल्ली-पानीपत कॉरिडोर को अभी तक केंद्रीय आवास व शहरी विकास मंत्रालय से मंजूरी ही नहीं मिली है। दरअसल, इन दोनों ही कॉरिडोर को उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली सरकार की मंजूरी भी चाहिए। उत्तर प्रदेश और राजस्थान सरकार की मंजूरी मिल चुकी है जबकि दिल्ली सरकार की मंजूरी का आज भी इंतजार है। संभवतया इसीलिए केंद्र सरकार ने भी अभी इन कॉरिडोरों को स्वीकृति नहीं दी है।
दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ आरआरटीएस कॉरिडोर पर साहिबाबाद से दुहाई तक 17 किमी लंबे प्राथमिकता खंड पर तो रैपिड ट्रेन, जिसे नमो भारत का नाम दिया गया है, गत अक्टूबर से ही चल रही है। 14 किमी लंबे दिल्ली खंड में भी सराय काले खां, न्यू अशोक नगर और आनंद विहार (भूमिगत) तीनों स्टेशनों ने आकार ले लिया है। इसके साथ ही इस खंड में वायाडक्ट निर्माण भी अंतिम चरण में है और जल्द पूर्ण होने वाला है। दिल्ली खंड में नौ किमी एलीपेटिड जबकि पांच किमी भूमिगत हिस्सा है। भूमिगत हिस्सा पहले ही बनकर तैयार हो चुका है। एलीवेटिड खंड मे लगभग आठ किमी वायाडक्ट का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है और अब सिर्फ एक किमी बाकी है। आधारभूत ढांचा तैयार होने के साथ साथ सभी स्टेशनों में फिनिशिंग के कार्य भी जारी हैं।
इन तीनों स्टेशनों को यात्रियों की सुविधा के लिए मल्टी-माडल इंटीग्रेशन के तहत परिवहन के अन्य माध्यमों के साथ जोड़ा जाएगा। 82 किमी लंबे दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ कॉरिडोर पर जहां-जहां संभव है, आरआरटीएस स्टेशनों को सार्वजनिक परिवहन के अन्य साधनों मसलन बस अड्डों, हवाई अड्डों, मेट्रो स्टेशनों व रेलवे स्टेशनों से जोड़ा जा रहा है। अधिकारियों के मुताबिक अगले लगभग पांच छह माह में ट्रैक लगभग पूरा तैयार हो जाएगा और सात से आठ माह में इसका ट्रायल शुरू हो जाने की उम्मीद की जा सकती है। दिल्ली- अलवर कॉरिडोर को इसे लेकर अंतिम फैसला बेशक नहीं हुआ है, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी परिवहन निगम (एनसीआरटीसी) ने इसके नए रूट के जियोटेक्निकल सर्वे का टेंडर निकाल दिया है। अब इस रूट को पहले चरण में शाहजहांपुर -नीमराना- बहरोड़ (एसएनबी) की जगह धारूहेड़ा तक ले जाया जा सकता है।
इससे यह ट्रैक 107 किमी की बजाए 36 किमी घटकर 71 ही किमी रह जाएगा। वहीं इसके स्टेशन 17 से कम होकर 13 रह जाएंगे। डिपार्टमेंट फोर प्रमोशन आफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (डीपीआइआइटी- केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय) के तहत गठित नेटवर्क प्लानिंग ग्रुप द्वारा शहरी कनेक्टिविटी को बढ़ावा एवं विनिर्माण को समर्थन देने के लिए इस कॉरिडोर को पहले ही चिन्हित कर चुका है। इसे पीएम गतिशक्ति मास्टर प्लान के दायरे में तैयार किया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक, पहले चरण में अब इसे सराय काले खां से धारूहेड़ा तक ही ले जाने की बात हो रही है। इसमें भी पहले इसे एयरोसिटी के बाद वाया कापसहेड़ा सरहौल से राष्ट्रीय राजमार्ग लाने की योजना बनी थी, लेकिन अब एयरोसिटी के बाद भी राष्ट्रीय राजमार्ग पर ही एलिवेटिड ट्रैक बनाया जाएगा। बताते हैं कि एनएचएआइ अधिकारियों के साथ इस पर वार्ता चल रही है। नए रूट पर ज्यादा यात्री मिलने की संभावना है। ट्रेन का प्रस्तावित रूट घटने से चार स्टेशन भी कम हो जाएंगे।