लहसुनिया: यदि हम जन्म कुंडली के अनुसार अपने लिए शुभ और सटीक रत्न को धारण करते हैं तो उसका चमत्कार भी देखने का मिल सकता है। रत्न विशेष तौर पर ग्रहों के बल को बढ़ाने का काम करते हैं। अपने लिए शुभ रत्न की पहचान के लिए सबसे जरूरी है कि हमें जन्म कुंडली के बारे में अच्छा आकलन होना चाहिए। यदि हम स्वयं ऐसा करने में सक्षम नहीं है तो किसी विद्वान ज्योतिषी की सलाह से रत्न धारण किया जा सकता है। क्योंकि रत्न का प्रतिफल तभी हमें प्राप्त होगा जब कि सही रत्न का चुनाव किया गया हो। कई मामलों देखा जाता है कि हम उस रत्न को धारण कर लेते हैं जिसकी कि हमें आवश्यकता नहीं होती है। क्योंकि यह जरूरी नहीं है कि कारक ग्रह का ही रत्न धारण किया जाए क्योंकि बहुत ऐसा भी होता है कि कारक ग्रह पहले से ही बहुत बलवान होता है जिसके कारण उसका रत्न धारण कर लेने के बावजूद भी उसका प्रभाव हमें देखने में नहीं आयेगा। इसलिए यह जरूरी है कि यह पता लगाया जाए कि कुण्डली में ऐसा कौनसा ग्रह है जो कि कारक तो है लेकिन पीड़ित या बलहीन होने से वह अपने परिणाम देने में सक्षम नहीं है। इसलिए मैं कह रहा हूं कि किसी कुंडली में रत्न की पहचान बहुत सूक्ष्म विद्या है। गलत रत्न धारण करने से केवल धन की बर्बादी के अतिरिक्त कुछ हासिल नहीं होता है। रत्नों में कुछ रत्न बहुत महंगा है जैसे हीरा और माणिक, पुखराज और नीलम आदि। लेकिन ज्यादातर रत्न बहुत महंगे नहीं है। वैदूर्यमणि अर्थात लहसुनिया उसी श्रेणी का रत्न है। हालांकि लहसुनिया नवरत्नों की फेहरिस्त में है, तथापि बहुत महंगा नहीं। इसलिए जन्म कुंडली के अनुसार जिन लोगों को इसकी आवश्यकता है उन्हें इसे अवश्य पहन लेना चाहिए।
वैदूर्य मणि संस्कृत का शब्द है। लेकिन आम बोलचाल की भाषा में इसे लहसुनिया कहा जाता है। यह गोलाकार पत्थर होता है। जिसे मणि के रूप में पॉलिश किया जाता है। दूसरे पत्थरों की तरह इसकी तराशा नहीं जाता है और न ही कटिंग की जाती है। यह हरे और पीले रंग के मिश्रित रंग में आता है और इसके मध्य में एक सफेद लाइन दिखाई देती है। यह लाईन जितनी सूक्ष्म, बारीक, सफेद और चमकदार होगी उसी तुलना में लहसुनिये की कीमत होती है। लहसुनिया बिल्ली की आंख के सदृश्य दिखाई देता है। इसलिए इसे अंग्रेजी भाषा केट्सआई स्टोन कहा जाता है। लहसुनिया केतु ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। यानी जिन लोगों की कुंडली में केतु कारक होकर कमजोर हो उन्हें अवश्य लहसुनिया धारण कर लेना चाहिए। केतु ग्रह की शुभता को प्राप्त करने के लिए इसे धारण किया जाता है।
जो लोग पीढ़ियों से गरीबी झेल रहे हैं या जिनको बार-बार बिजनेस या नौकरी बदलने के बावजूद भी कोई बड़ी उपलब्धि हासिल नहीं हो रही है उन्हें अवश्य ही अपनी आयु के आधार पर बिल्कुल ठीक वजन का ओरिजनल श्रीलंकाई लहसुनिया धारण करना चाहिए। गरीबी हटाने में लहसुनिया बहुत अच्छा समझा गया है। हालांकि लहसुनिया धारण करने से पूर्व एक बार कुंडली का अवलोकन जरूर करवा लेना चाहिए। क्योंकि लहसुनिया केतु का रत्न है और केतु जब बहुत अच्छी स्थिति में नहीं हो तो वह उठा कर पटक देता है। डिमोशन में केतु की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसके अलावा जिन लोगों को संतान सुख का अभाव है उनके लिए भी वैदूर्यमणि बहुत प्रभावी रत्न कहा गया है। जिन लोगों को धर्म और आध्यात्म में विशेष रूचि है उन्हें अवश्य ही लहसुनिया धारण करना चाहिए। लहसुनिया मोक्षकारक माना जाता है। लहसुनिया धारण करने वाले लोग जन्म और मृत्यु के बंधनों से मुक्त हो जाते हैं।
जैसा कि मैं लिख चुका हूं कि किसी भी रत्न को धारण करने से पूर्व कुंडली का अवलोकन बहुत आवश्यक है। केवल राशि के आधार पर रत्न धारण करने से बहुत ज्यादा लाभ होने की संभावना बहुत कम होती है। जब जन्म कुंडली में केतु तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में हो तो लहसुनिया धारण करना चाहिए। इसके अलावा जब केतु धनु या मीन राशि में हो तो भी इसे धारण किया जा सकता है। केतु की महादशा या अंतर्दशा में भी लहसुनिये को धारण करके लाभ उठाया जा सकता है।
लहसुनिये को हमेशा मध्यमा अंगुली में बुधवार, शुक्रवार या शनिवार का संध्या के वक्त धारण किया जाता है। इसको धारण करने से पूर्व केतु के बीज मंत्र ''ओम स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं सः केतवे नमः'' के कम से कम 11000 मंत्रों के जाप करके इसकी प्राण प्रतिष्ठा करनी चाहिए। लहसुनिया चांदी या सोने में से किसी भी धातु में धारण किया जा सकता है।
Astrologer Satyanarayan Jangid
WhatsApp – 6375962521