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राजस्थान का पत्थर, इटली का संगमरमर, 18 लाख ईंट से UAE में बना पहला हिंदू मंदिर कई मायनों में है खास

Ritika Jangid

संयुक्त अरब अमीरात (UAE) है तो एक मुस्लिम देश, लेकिन अगले एक हफ्ते में UAE की राजधानी अबू धाबी में मंदिर के घंटों के आवाज गूंजेगी, शंखनाद होगा। देव प्रतिमा के आगे दीप जलेंगे। आरती होगी और प्रसाद बटेगा। ये सब 18 फरवरी को अबू धाबी में बने भव्य हिंदू मंदिर का उद्घाटन के बाद मुमकिन है। इस मंदिर का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे, जिसके बाद इस मंदिर को आम जनता के लिए खोल दिया जाएगा।

अबु धाबी में बने स्वामी नारायण मंदिर का निर्माण भारत और यूएई के बीच सद्भाव के प्रतीक के तौर पर किया गया है। ये मंदिर अयोध्या में बन रहे राम मंदिर की तरह भव्य है। ऐसा पहली बार है कि किसी मुस्लिम देश में हिंदू मंदिर बना हो। आइए एक नजर इस मंदिर की खासियतों पर डालते हैं।

27 एकड़ जमीन में बना बीएपीएस मंदिर

बता दें, स्वामी नारायण मंदिर 27 एकड़ जमीन पर बनाया गया है, जिसमें साढ़े 13 एकड़ में मंदिर का हिस्सा बना है और बाकी साढ़े 13 एकड़ में पार्किंग एरिया बनाया गया है। इसकी ऊंचाई 108 फीट, लंबाई 79.86 मीटिर और चौड़ाई 54.86 मीटर है। ये हिंदू मंदिर एशिया का सबसे बड़ा मंदिर है। मंदिर परिसर के अंदर एक बड़ा एम्फीथिएटर, एक गैलरी, एक लाइब्रेरी, एक फूड कोर्ट, एक मजलिस, 5,000 लोगों की क्षमता वाले दो कम्युनिटी हॉल, गार्डन और बच्चों के खेलने के क्षेत्र शामिल हैं।

मालूम हो, इस मंदिर को बनाने में 18 लाख ईंटों का भी इस्तेमाल किया गया है। वहीं, 27 एकड़ जमीन पर बने इस भव्य मंदिर का निर्माण 700 करोड़ रुपये में हुआ है। मंदिर निर्माण के लिए संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान ने जमीन दान की थी।

बता दें, मंदिर संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी अबूधाबी में बने इस हिंदू मंदिर का नाम बीएपीएस हिंदू मंदिर है, जिसे बीएपीएस संस्था के नेतृत्व में बनाया गया है। बीएपीएस एक ऐसी संस्था है, जिसने दुनियाभर में 1,100 से ज्यादा हिंदू मंदिरों का निर्माण किया है। दिल्ली में अक्षरधाम मंदिर का निर्माण भी इसी संस्था ने किया है।

मंदिर में 2 गुंबद, 7 शिखर

स्वामी नारायण मंदिर को भारत कारीगरों ने बनाया है। जिसे अरबी और हिंदू संस्कृति का प्रतीक माना गया है। मंदिर में दो घुमत (गुंबद) 7 शिखरों का निर्माण किया गया है और प्रत्येक शिखर के अंदर नक्काशी रामायण, शिव पुराण, भागवतम और महाभारत के साथ-साथ जगन्नाथ, भगवान स्वामीनारायण, भगवान वेंकटेश्वर और भगवान अयप्पा को दर्शाता है।

वहीं, पिछले चार सालों से संगमरमर के टुकड़ों को तराशकर उन्हें स्तंभों के साथ भगवान राम एवं भगवान गणेश जैसे हिंदू देवताओं की मूर्तियों में तब्दील करने वाले राजस्थान के कारीगर बहुत गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं क्योंकि उनकी कला को अबू धाबी के पहरले हिंदू मंदिर में जगह मिली है।

अयोध्या में बने राम मंदिर जैसी समानताएं

इस मंदिर के निर्माण में राजस्थान के जयपुर के पिंक सैंड स्टोन (लाल बलुआ पत्थर) और इटली का संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है। इसकी शिलाएं भरतपुर से ले जाई गईं हैं। यूएई की भीषण गर्मी में भी इन पत्थरों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

ये मंदिर अयोध्या में बने राम मंदिर से भी लिंक करता है। जैसे अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में भी लाल बलुआ पत्थर का इस्तेमाल हुआ था। वहीं, इस मंदिर के निर्माण में भी अयोध्या की ही तरह न तो लोहे का प्रयोग हुआ है, और न ही स्टील का। बल्कि, इंटरलॉकिंग पद्धति से शिलाओं की फिटिंग की गई है। यह पद्धति किसी भी निर्माण कार्य को हजारों सालों की मजबूती देता है।

मंदिर परिसर में लगाई गईं 96 घंटियां

मंदिर के बाहरी हिस्से में 96 घंटियां लगाई गई हैं। साथ ही मंदिर के अंदर पत्थरों पर जो नक्काशी की गई है उसमें रामायण और महाभारत के साथ-साथ हिंदू धर्मग्रंथों और पौराणिक कथाओं का भी वर्णन किया गया है। बता दें, मंदिर की सुंदरता में बाहरी स्तंम्भों पर जो नक्काशी की गई है, उसमें रामायण की अलग-अलग कहानियों का वर्णन नक्काशी में चित्रित किया गया है।

एक तरफ राम जन्म, सीता स्वयंवर, राम वनगमन, युद्ध, लंका दहन, राम-रावण युद्ध और भरत-मिलाप जैसे प्रसंगों को नक्काशी में बड़ी ही खूबसूरती से उकेरा गया है। ये दृश्य आंखों में रामकथा को देखने का सुकून देता है। यहां नक्काशी में मौजूद हाथी भारतीय संस्कृति का प्रतीक हैं, तो वहीं एक तरफ ऊंट अरबी संस्कृति को दिखाता है। तो वहीं अरबी घोड़े भारत और अरब के बीच मैत्री संबंध का प्रतीक हैं।