ED का पूरा नाम एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट जिसका हिंदी में अर्थ होता है प्रवर्तन निदेशालय। आए दिन अख़बार से लेकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक सभी जगह इस विभाग के द्वारा की गई करवाई की खबरें आती रहती है। बीते दिनों ईडी ने दो बड़ी करवाई की जिसमे इस विभाग ने दो मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया। एक झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन और दूसरे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इन गिरफ़्तारी के बाद राजनीतिक माहौल भी गरमा गया है। हेमंत सोरेन को अवैध सम्पति के आरोप में गिरफ्तार किया था वही 21 मार्च की रात को करीबन दो घंटे की पूछताछ के बाद सीएम केजरीवाल को हिरासत में लिया। ऐसे में अधिकतर आम जन के मष्तिस्क ये सवाल कही न कही रह – रह कर उत्पन्न होता है की इस विभाग का कार्य क्या है और इसकी शक्तियां क्या है। क्योकि 2014 से पहले अधिकतर घोटालों को उजागर केंद्रीय एजेंसी सीबीआई करती थी। अचानक आए दिन अब ईडी की चर्चा अधिकतर देखने को मिलती है। आज के इस व्याख्याता में हम आपको प्रवर्तन निदेशालय के बारे में विस्तार से बताएंगे।
प्रवर्तन निदेशालय केंद्र सरकार के अंतर्गत कार्य करने वाली एजेंसी है। यह वित्त मंत्रालय के रेवेन्यू विभाग के तहत कार्य करती है। आर्थिक अपराध और विदेशी मुद्रा कानून को नियंत्रण में रखने के लिए यह जांच एजेंसी बनाई गई थी। पैसे से लेकर कोई भी हेर – फेर होता है तो इस पूरे मामले पर प्रवर्तन निदेशालय निगाह रखते हुए कार्रवाई करता है। वर्ष 1956 में 1 मई को इसकी शुरुआत हुई। उस समय इसे एन्फोर्समेंट यूनिट कहा जाता था। तब इसकी मुंबई और कलकत्ता में दो शाखा थी। साल 1957 में इसका नाम में बदलाव कर के एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट किया गया और 1960 में इसका एक ऑफिस मद्रास में खुला। इस दौरान देश की कई योजनाओं में बदलाव हुए और उन बदलावों को लागू करने की तैयारी की जा रही थी। कर व्यवस्था में सुधार लाने के प्रयास हो रहे थे। देश में पैसों का फ्लो भी बढ़ रहा था। इसलिए आर्थिक धोखाधड़ी को रोकने के लिए ईडी की जरुरत पड़ी।
शुरुआत में प्रवर्तन निदेशालय की बागड़ोर संभालने का कार्य डायरेक्टर का होता था। इनके सहयोग के लिए आरबीआई से डेपुटेशन पर एक अधिकारी को भेजा जाता था। इसके पश्चात् पुलिस के तीन इंस्पेक्टर भी ईडी की टीम का हिस्सा होते थे। हाल के दिनों में भी इसकी जिम्मेदारी डायरेक्ट के हाथो में है। लेकिन इनके पास एक जॉइंट डायरेक्टर और कई स्पेशल और डिप्टी डायरेक्टर है।
ईडी मनी लॉन्डरिंग, भ्रष्टाचार, आर्थिक अपराध और विदेशी मुद्रा के नियमों को न मानने से जुड़े मामलों में कार्रवाई करती है. यह फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (FEMA) के तहत काम करती है. मान लीजिए थाने में कोई एक करोड़ रुपए या उससे अधिक की हेराफेरी से जुड़ा मामला पहुंचता है और पुलिस ईडी को जानकारी देती है तो ईडी एफआईआर या चार्जशीट की कॉपी लेने के बाद जांच शुरू कर सकती है. अगर ईडी को स्थानीय पुलिस से पहले जानकारी मिल जाती है तो भी जांच शुरू कर सकती है।
प्रवर्तन निदेशालय फेमा का उल्लंघन, हवाला लेनदेन, फॉरेन एक्सचेंज में गड़बड़ी, विदेश में मौजूद संपत्ति पर कार्रवाई और विदेश में संपत्ति की खरीद के मामलों में कार्रवाई करती है। नियमो के तहत ईडी को संपत्ति जब्त करने , छापा मारने और गिरफ्तार करने का भी अधिकार है। यह तक ईडी के पास तो ये भी अधिकार है कि वो बिना पूछताछ के आरोपी की सम्पत्ति जब्त कर सकती है। बल्कि प्रवर्तन निदेशालय के पास तो यह भी अधिकार है की गिरफ्तारी के वक्त आरोपी को कारण बताएगी या नहीं यह एजेंसी की इच्छा पर निर्भर करता है। ईडी के अधिकारी का बयान अदालत में सबूत माना जाता है।
प्रवर्तन निदेशालय के इन सब कार्य और अधिकारों की वजह से देश में काले धन के आरोपी पकड़ में आते है। देश ही नहीं अपितु विदेश में जा रही सम्पति पर ये विभाग अपनी पैनी निगाह रखता है। इस विभाग को लेकर इन दिनों विपक्ष केंद्र सरकार को भी निशाने पर रखते है। लेकिन सरकार की सभी एजेंसी निष्पक्ष और स्वतंत्र हो कर कार्य करती है। इन एजेंसियों को लेकर किसी भी प्रकार का राजनीतिकरण करना कहा तक सही है या गलत ये तो राजनीतिक दलों पर ही निर्भर करता है।