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पहली बार कब हुआ EVM का इस्तेमाल, जानें इसका अब तक का राजनैतिक सफर

Desk News

आगामी लोकसभा चुनाव में जब पहला मतदाता मत डालने के लिए मतदान इकाई का बटन दबाएगा तो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) 2004 के बाद से पांच संसदीय चुनावों में इस्तेमाल किए जाने के महत्वपूर्ण मील के पत्थर तक पहुंच जाएगी। EVM की यात्रा विभिन्न घटनाक्रमों से परिपूर्ण रही है क्योंकि समय-समय पर कुछ राजनीतिक दलों ने इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं तो वहीं अन्य ने हेराफेरी की बहुत कम गुंजाइश के साथ जल्द परिणाम घोषित किए जाने के लिए इसकी सराहना भी की है। EVM की कल्पना पहली बार 1977 में की गई थी। इसकी प्रतिकृति हैदराबाद स्थित इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) द्वारा 1979 में विकसित की गई थी। यह परमाणु ऊर्जा विभाग के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम था।

  • EVM की यात्रा विभिन्न घटनाक्रमों से परिपूर्ण रही है
  • समय-समय पर कुछ राजनीतिक दलों ने EVM पर सवाल उठाए हैं
  • EVM की कल्पना पहली बार 1977 में की गई थी
  • यह परमाणु ऊर्जा विभाग के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम था

पहली बार कब हुआ EVM का उपयोग?

छह अगस्त 1980 को राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के सामने निर्वाचन आयोग द्वारा मशीन का प्रदर्शन किया गया था। EVM को लेकर व्यापक सहमति पर पहुंचने के बाद, निर्वाचन आयोग ने उनके उपयोग के लिए संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत निर्देश जारी किए। केरल में परूर विधानसभा सीट के चुनाव के दौरान 19 मई 1982 को 50 मतदान केंद्रों पर प्रायोगिक आधार पर मशीनों (EVM) का पहली बार  इस्तेमाल किया गया था। कानून में स्पष्ट प्रावधान के बिना EVM के इस्तेमाल को बाद में उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी। शीर्ष अदालत ने EVM में खामियों या इसके फायदों पर कोई टिप्पणी करने से परहेज किया लेकिन कहा कि मशीनों से मत डालने का निर्वाचन आयोग का आदेश उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता।

इस धारा ने दिलाया EVM के इस्तेमाल का अधिकार

जिन 50 मतदान केंद्रों पर ईवीएम का इस्तेमाल किया गया था, उनके संबंध में परूर निर्वाचन क्षेत्र से जीतने वाले उम्मीदवार के चुनाव को रद्द कर दिया गया था। दिसंबर 1988 में जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन किया गया और कानून में एक नई धारा 61ए शामिल की गई, जो आयोग को EVM के इस्तेमाल का अधिकार देती है। भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL), बेंगलुरु ने ईवीएम का प्रारूप प्रदर्शित करने के बाद ईवीएम के निर्माण के लिए ECIL के साथ इसे चुना गया। केंद्र सरकार ने 1990 में दिनेश गोस्वामी की अध्यक्षता में चुनाव सुधार समिति का गठन किया जिसमें कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों के प्रतिनिधि शामिल थे। समिति ने तकनीकी विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा ईवीएम की जांच की सिफारिश की। विशेषज्ञ समिति ने सर्वसम्मति से बिना किसी देरी के ईवीएम के उपयोग की सिफारिश की और इसे तकनीकी रूप से मजबूत, सुरक्षित और पारदर्शी बताया।

2001 में EVM में हुए कई तकनीकी परिवर्तन

भारतीय चुनाव आयोजित करने के लिए ईवीएम के उपयोग पर साल 1998 में एक आम सहमति बनी थी और उनका उपयोग मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के 16 विधानसभा क्षेत्रों में किया गया था। ईवीएम का उपयोग 1999 में 46 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों तक बढ़ाया गया और फरवरी 2000 में हरियाणा चुनावों में 45 विधानसभा सीटों पर मशीनों का उपयोग किया गया। इसके बाद सभी विधानसभा चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल किया गया। साल 2004 के लोकसभा चुनावों में सभी 543 निर्वाचन क्षेत्रों में ईवीएम का इस्तेमाल किया गया था। वर्ष 2001 में ईवीएम में कई तकनीकी परिवर्तन किए गए और वर्ष 2006 में मशीनों को और उन्नत किया गया। साल 2006 से पहले के समय वाली ईवीएम को M1 EVM के रूप में जाना जाता है जबकि 2006 से 2010 के बीच निर्मित EVM को M2 EVM कहा जाता है। वर्ष 2013 से निर्मित नवीनतम पीढ़ी के EVM को M3 EVM के नाम से जाना जाता है।

क्या है VVPAT मशीन?

चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और सत्यापन में सुधार के लिए, वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मशीनों के उपयोग को शुरू करने के लिए 2013 में चुनाव नियम, 1961 में संशोधन किया गया था। इनका इस्तेमाल पहली बार नगालैंड की नोकसेन विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में किया गया था। एक ईवीएम में कम से कम एक बैलेट यूनिट, एक कंट्रोल यूनिट और एक VVPAT होता है। ईवीएम की संभावित लागत 7,900 रुपये प्रति बैलेट यूनिट, 9,800 रुपये प्रति कंट्रोल यूनिट और 16,000 रुपये प्रति वीवीपैट शामिल है। साल 2019 के बाद से, प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में बगैर किसी नियत क्रम में चुने गए पांच मतदान केंद्रों से VVPAT पर्चियों का मिलान अधिक पारदर्शिता के लिए EVM गणना के साथ किया जाता है। चुनाव आयोग के अनुसार, अब तक कोई बेमेल नहीं हुआ है।

कई बार EVM की विश्वसनीयता पर उठे सवाल

कई विपक्षी दलों ने ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं और मांग की है कि अधिक पारदर्शिता के लिए सभी निर्वाचन क्षेत्रों में पर्चियों का मिलान ईवीएम गिनती के साथ किया जाना चाहिए। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक बार ईवीएम को "मोदी वोटिंग मशीन" कहा था जबकि उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी  की नेता मायावती की मांग है कि "मतपत्र प्रणाली फिर से शुरू की जाए"। हालांकि, सरकार ने स्पष्ट कहा है कि मतपत्र प्रणाली को फिर से शुरू करने का कोई प्रस्ताव नहीं है। पिछले साल अगस्त में लोकसभा में एक लिखित जवाब में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा था कि निर्वाचन आयोग ने सूचित किया है कि मतपत्र प्रणाली को फिर से लागू करने के बारे में कुछ प्रतिवेदन प्राप्त हुए हैं। उन्होंने कहा= कि आयोग 1982 से ईवीएम का इस्तेमाल कर चुनाव करा रहा है। उन्होंने कहा कि ईवीएम और वीवीपीएटी मशीनों के इस्तेमाल को जनप्रतिनिधित्व कानून के स्पष्ट प्रावधानों के रूप में संसद ने कानूनी मंजूरी दी है। ईवीएम को लेकर विपक्षी दलों द्वारा जताई गई चिंताओं पर मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने हाल में कहा था कि राजनीतिक दलों को राजी करने की जिम्मेदारी निर्वाचन आयोग की है। उन्होंने यह भी कहा कि वर्षों से ईवीएम ने उन सभी के पक्ष में परिणाम दिए हैं जिन्होंने इसकी विश्वसनीयता पर चिंता जताई है।

प्रत्यक्ष चुनावों में EVM वोटों का 'एग्रीगेटर'

पिछले संसदीय चुनाव के दौरान मुख्य निर्वाचन आयुक्त रहे सुनील अरोड़ा ने अफसोस जताया है कि चुनावी हार झेल रहे दलों द्वारा ईवीएम को फुटबॉल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने कहा, "ईवीएम से छेड़छाड़ संभव नहीं है। जहां तक षडयंत्र और हेराफेरी की आशंकाओं का संबंध है, वे निश्चित रूप से त्रुटिरहित हैं। लेकिन तकनीकी खामी संभव है, जैसा कि किसी अन्य उपकरण के मामले में होता है लेकिन उसे तुरंत ठीक कर लिया जाता है।" दिलचस्प बात यह है कि EVM प्रत्यक्ष चुनावों में वोटों के 'एग्रीगेटर' के रूप में काम करती है। राष्ट्रपति और राज्यसभा चुनावों जैसी आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली में इसका उपयोग नहीं होता है।