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Christmas Day साल के अंतिम सप्ताह को पूरी दुनिया में बड़ी धूम – धाम से मनाया जाता है। जिसके पीछे की दो बड़ी वजह है पहला क्रिसमस डे को मनाना और दूसरा नव वर्ष के आगमन की तैयारी। हमारा देश भारत विविधताओं में एकता का देश है जहा अलग अलग धर्म, संस्कृति और मान्यताओ को मानने वाले लोग एक साथ रहते है, अगर कैलेंडर की तारीख देखे तो यहां हर दिन कोई न कोई त्यौहार है और हो भी क्यों न यहाँ अलग अलग धर्म के लोग एक साथ रहते है और साथ ही सभी त्योहारों को धूम धाम के साथ मनाते है। अब बात क्रिसमस डे की हो रही है तो क्रिस्टमस आमतौर पे ईसाई धर्म के लोगो का त्यौहार है लेकिन आज सभी धर्म के लोग क्रिसमस को बड़े ही प्यार से मानते है। बहुत लोग क्रिसमस डे मनाते है लेकिन उन्हें ये नहीं पता होता है की आखिर क्रिसमस डे क्यों मनाते है.. और सोचिये पहली बार क्रिसमस डे कब मनाया गया होगा,,, और इस दिन को मनाने के पीछे क्या वजह हो सकती है। आमतौर पर सबको ये बात पता है की दिन यीशु यानी जीसस क्राइस्ट का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन को ईसाई धर्म की मान्यताओं के अनुसार क्रिसमिस डे के रूप में मनाते है।
बहुत समय पहले, नाजरेथ नामक एक जगह थी जहाँ मरियम (मैरी) नाम की एक महिला रहती थी। वह बहुत मेहनत थी और दूसरों के लिए भी अच्छी थी। वह यूसुफ नामक एक आदमी से प्यार करती थी जो एक बहुत अच्छा युवा था। मान्यताओं के अनुसार एक दिन, ईश्वर ने एक सन्देश के साथ गेब्रियल नामक परी को मरियम के पास भेजा। उसने उसे बताया की ईश्वर लोगों की सहायता के लिए धरती पर एक पवित्र आत्मा भेज रहा है। वह आत्मा मैरी के बेटे के रूप में पैदा होगी और उसे यीशु नाम देना।
मैरी यह सुनकर चिंतित हो गई की उसके अविवाहित होते हुए यह कैसे हो सकता है। परी ने उससे कहा की यह ईश्वर की तरफ से एक चमत्कार होगा तुम्हें इसके बारे में ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है। उसने यह भी बताया की एलिज़ाबेथ नाम के उसके चचेरे भाई जिनके बच्चे नहीं थे वे जॉन बैपटिस्ट नाम एक बच्चे को भी जन्म देंगे जो यीशु के जन्म के लिए रास्ता तैयार करेगा।
यह सुनकर मैरी ईश्वर इच्छा से सहमत हो गई। वह एलिज़ाबेथ से मिलने गई और तीन महीने बाद वापस लौट आई। तब तक वह गर्भवती हो चुकी थी। इससे यूसुफ चिंतित था और उसने मरियम से शादी नहीं करने के विचार शुरू किए। लेकिन एक रात सोते समय, एक परी यूसुफ को सपने भी दिखाई दी, उसने उसे ईश्वर की इच्छा के बारे में बताया। यूसुफ अगली सुबह उठा और उसने फैसला लिया की वह मैरी को अपनी पत्नी बना लेगा।
शादी के बाद यूसुफ और मरियम बेथहलम चले आए। जब वे वहां पहुंचे तो उन्होंने पाया की वहां भीड़ बहुत थी और उनके रहने के लिए वहाँ कोई जगह नहीं बची। इसलिए उन्होंने एक जानवरों के खलिहान में रहने का फैसला किया। वही पर मरियम ने ईश्वर के पुत्र को जन्म दिया और उसे यीशु नाम दिया।
ईश्वर ने यीशु का जन्म आकाश में एक उज्ज्वल सितारे द्वारा संकेतित किया। दुनिया के विभिन्न हिस्सों के बुद्धिमान पुरुषों ने इस सितारे के महत्व को समझ लिया था। उन्होंने यीशु के जन्मस्थान तक पहुंचने के लिए उस तारे का पालन किया। वे बच्चे और उसके माँ-बाप के लिए उपहार लेकर आए। बेथहलम के अन्य हिस्सों में, जहाँ चरवाहे अपने जानवर चरा रहे थे। स्वर्गदूत उन्हें अच्छी खबर देने लगे। उन्होंने दुनिया पर पवित्र आत्मा का स्वागत करने के लिए गाने गाये और यीशु के जन्म का आनंद लिया।
Christmas Day पहली बार ईसाई रोमन सम्राट और रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन के शासनकाल के दौरान 336 ईसवी में मनाया गया था। इसके बाद पोप जुलियस ने 25 दिसंबर को ऑफिशियल जीसस क्राइस्ट का जन्म दिवस मनाने का फैसला लिया था। वही यूरोपीय लोग 25 दिसंबर को सूर्य के पुनर्जन्म के मौके पर त्योहार मनाते थे। इस दिन को बड़े दिन के रूप में भी जाना जाता है।
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