भारत में कई ऐसे राज्य है जहां सरकार ने शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया हुआ है। देखा जाए तो बिहार, गुजरात, मिजोरम, नागालैंड और लक्षद्वीप में पूरी तरह से शराबबंदी लागू है। लेकिन बिहार-गुजरात में शराबबंदी के बावजूद जहरीली शराब पीने से कई लोगों की मौत की खबरें सामने आती रहती हैं। वहीं कई राज्य ऐसे भी है जहां महिला शराब पर बैन लगाने के लिए धरना दे चुकी है।
हालांकि ये देखने वाली बात है कि सरकार को फायदा भी सबसे ज्यादा शराब बिक्री से ही होता है। एक-एक बोतल के लिए लोग लंबी कतारे लगाने के लिए तैयार रहते हैं। वहीं लॉकडाउन इसका सबसे अच्छा उदाहरण है जब लंबे लॉकडाउन के बाद शराब की दुकान खोली गई थी तो एक ही दिन में करोड़ों की कमाई हुई थी। बता दें, एक दिन में यूपी में 300 करोड़ से ज्यादा की शराब की बिक्री हो गई तो राजस्थान में 2 घंटे के अंदर ही करीब 60 करोड़ रुपये की शराब बिक गई।
हाल ही में गुजरात सरकार ने राज्य की गिफ्ट सिटी में शराब पर लगा प्रतिबंध हटा दिया है। बता दें, ये निर्णय गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस टेक-सिटी (गिफ्ट सिटी) में वैश्विक कारोबारी माहौल बनाने के लिए सरकार ने लिया है। वहीं 1991 में मणिपुर में भी शराबबंदी लागू की गई थी हालांकि वहां सरकार द्वारा इस कानून में कुछ छूट दे दी गई। आइए इस आर्टिकल में जानते है कि शराबबंदी का देश में क्या इतिहास रहा है और कैसे पूरी तरह शराबबंदी सरकार के लिए मुश्किल काम है।
ब्रिटिश भारत में कई भारतीयों ने देश में शराबबंदी के लिए आंदोलन किया था। महात्मा गांधी ने शराब के सेवन को एक सामाजिक बुराई मानते हुए शराबबंदी की वकालत करने में अहम भूमिका निभाई थी। फिर जब साल 1947 में भारत को आजादी मिली तो शराबबंदी को भारत के संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांत में शामिल किया गया।
मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई ने 1954 में शराब पर पहली बार बैन बॉम्बे (अब का मुंबई) पर लगाया था। ये प्रतिबंध वहां की कोली समुदाय पर लगाया गया था जहां महाराष्ट्र के धारावी में शराब बनाई जाती थी। जिसके बाद कोली समुदाय ने भी मोरारजी पर आरोप लगाए कि वह विदेशी शराब बेचते हैं। दरअसल, कोली समुदाय जामुन, अमरूद, संतरा, सेब और चीकू इत्यादि फलों से शराब बनाया करते थे और उनके पास कानूनी रूप से शराब बनाने का ही एकाधिकार था।
गुजरात देश में शराब पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला राज्य था बॉम्बे से अलग करके 1960 में जब इस राज्य का गठन किया गया तब महात्मा गांधी का जन्मस्थल होने की वजह से यहां पूर्णतः शराबबंदी लागू कर दी गई, जो आज भी लागू है। हालांकि आज यहां जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत के मामले डरा देने वाले होते है।
बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने 2016 में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। जो अब भी जारी है। लेकिन इस राज्य में भी जहरीली शराब के कारण होने वाली मौत के मामले सामने आते रहते है। एनसीआरबी के डेटा के अनुसार जहरीली शराब पीने से पिछले 6 सालों में यानी 2016 से 2021 के बीच राज्य में 23 लोगों की मौत हुई है।
1997 में मिजोरम में भी शराबबंदी कानून लागू किया गया था, जिसे 2015 में हटा दिया गया और फिर 2019 में इस कानून को फिर लागू कर दिया गया। हालांकि पड़ोसी राज्यों और म्यांमार से आ रही अवैध शराब के चलते राज्य में पूर्णतः शराबबंदी कानून का ज्यादा असर देखने को नहीं मिला। 2009 से 2019 तक राज्य पुलिस और एक्साइज व नारकोटिक्स विभाग (ईएनडी) ने शराब पीने के 26 हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए थे।
1989 में नागालैंड में भी पूर्ण शराबबंदी कानून लागू किया गया। देखने वाली बात है कि सिर्फ कोविड महामारी के दौरान प्रदेश में अवैध शराब की बिक्री के एक हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे। साथ ही प्रदेश में शराब के अलावा नशीली दवाओं के सेवन के मामले भी अक्सर सामने आते रहते हैं।
देश के अन्य राज्यों में भी सरकार ने शराबबंदी करने की कोशिश की। लेकिन ये प्रयोग विफल रहें जिसके बाद यह बैन हटाना पड़ा। इन राज्यों में आंध्रप्रदेश, हरियाणा और मणिपुर जैसे राज्यों के नाम शामिल हैं बता दें, आंध्र प्रदेश में 1995 में शराबबंदी कानून लागू किया गया था जो 16 महीने चली। रिपोर्ट्स के अनुसार 16 महीने के इस प्रतिबंध में ही सरकार को 1200 करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा था। हरियाणा में भी शराबंबदी का लागू कानून सिर्फ 2 साल तक ही चल सका।
शराबबंदी को लेकर 2017 के दिसंबर महीने में आंध्र प्रदेश के निडामर्रु गांव की लगभग 40 महिलाओं ने धरना दिया था। महिलाओं ने 16 दिनों तक ये प्रदर्शन किया था और उनकी बात नहीं माने जाने पर उन्होंने तालाब में छलांग लगा दी थी। महिलाओं ने प्रदर्शन गांवों में शराब के चलते उनके घरवालों की दुर्दशा को देखते हुए किया गया था। देश के अन्य राज्यों में भी महिलाओं ने ऐसे प्रदर्शन किये हैं
। कहीं ये प्रदर्शन शराब के कारण पुरुषों द्वारा किये जाने वाले अत्याचार को देखते हुए किये गए तो जहरीली शराब के कारण भी। सरकार ने प्रदर्शनकारीयों की मांगे मानी लेकिन हर क्षेत्र में सरकार इस कानून का लागू करने में सक्षम नहीं है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत में कई राज्यों में जहरीली शराब पीने के कारण मरने वालों का आंकड़ा कम नहीं है। जुलाई 2009 में गुजरात में जहरीली शराब पीने से 136 लोगों की मौत हो गई थी। वहीं जून 2015 में मुंबई में अवैध शराब पीने से 95 लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी थी। जबकि 2015 में मुंबई के एक उपनगर में हुई जहरीली शराब त्रासदी के बाद महाराष्ट्र विधानसभा में पूर्ण शराबबंदी की मांग उठाई गई थी।
इकॉनोमिक रिसर्च एजेंसी ICRIER और लॉ कंसल्टिंग फर्म PLR Chambers की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 16 करोड़ लोग शराब पीते हैं। इस संख्या में 95 फीसदी पुरुष हैं। इन पुरुषों की आयु 18 से 49 वर्ष के बीच है। इसके अलावा इस संख्या में पांच फीसदी महिलाएं हैं, जो शराब का सेवन करती हैं। वहीं क्रिसिल द्वारा 2020 में किए गए सर्वे के अनुसार देश में सबसे ज्यादा शराब पीने वाले राज्यों में पहले स्थान पर छत्तीसगढ़ का नाम था। जहां 35.6 प्रतिशत लोग शराब पीते हैं।
ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि इन सभी आंकड़ों को देखते हुए सरकार के लिए शराबबंदी कानून लागू करना इतना कठिन क्यों है। तो बता दें कि इसके दो कारण है, जिसमें से एक अवैध शराब की तस्करी बढ़ना और दूसरा शराबबंदी के कारण सरकार के रेवेन्यू को नुकसान होना।
जैसे बिहार और गुजरात में शराबबंदी लागू है लेकिन पड़ोसी राज्यों से वहां शराब की तस्करी होती रहती है। मालूम हो, 2022 में ही गुजरात के सूरत में पुलिस ने 56 लाख रुपए की अवैध शराब जब्त की थी। इसके अलावा गुजरात चुनाव के समय लगभग 15 करोड़ रुपए की अवैध शराब जब्त की गई थी।
अवैध शराब के अलावा दूसरा कारण सरकार के राजस्व का भी अच्छा खाना नुकसान होता है। जहां गुजरात हो हर साल शराबबंदी के चलते 2 से 3 हजार करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ता है तो वहीं बिहार सरकार इससे हर साल 4 हजार करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान उठा रही है। मणिपुर में शराबबंदी के कानून में राजस्व को देखते हुए ढील दी गई है, जिससे सरकार को सालाना 600 करोड़ रुपए का राजस्व मिलने की उम्मीद है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2019-20 में सभी राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों को एक्साइज ड्यूटी के तौर पर 1 लाख 75 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का राजस्व प्राप्त हुआ था। 2018-19 में यह आंकड़ा करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपये था। इससे आप जान ही गए होंगे की पूरे देश में पूर्ण शराबबंदी करना सरकार के लिए क्यों मुश्किल हैं।
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