पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab & Haryana High Court) ने रेप के मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट किया है कि सीमन की गैर मौजूदगी पीड़िता से लैंगिक संपर्क की संभावना खारिज करने का आधार नहीं हो सकती है। कोर्ट ने कहा कि लैंगिग संपर्क को साबित करने के लिए स्पर्म का मौजूद होना जरूरी शर्त नहीं है। बता दें कि हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी आठ साल की बच्ची से दुष्कर्म के दोषी की सजा के खिलाफ अपील को खारिज करते हुए की है।
हाइलाइट्स
नरवाना के रहने वाले दोषी ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। दाषी ने बताया कि उसके खिलाफ पोक्सो एक्ट में बच्ची के साथ दुष्कर्म को लेकर मामला दर्ज किया गया था। अभियोजन पक्ष के मुताबिक 2016 में याचिकाकर्ता पीड़िता को अपने साथ ले गया था। पीड़िता के मिलने के बाद उसका मेडिको-लीगल टेस्ट किया गया था। वहीं आरोपी ने पीड़िता से दुष्कर्म करने की बात स्वीकार की थी। रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों के बाद ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता को दोषी ठहराया था और 12 साल कैद की सजा सुनाई थी।
याचिकाकर्ता ने कहा कि इस मामले में उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे और न ही बच्चे के यौन अंग में सीमन पाए गए थे। ऐसे में लैंगिक संपर्क की संभावना ही नहीं रह जाती। इसे लेकर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि लैंगिक संपर्क को साबित करने के लिए सीमन का होना आवश्यक शर्त नहीं है।
पाक्सो एक्ट के अनुसार किसी बच्चे के यौनअंग, मुंह या शरीर के किसी हिस्से में अन्य प्रकार की वस्तु का प्रवेश भी लैंगिक यौन हमले की श्रेणी में आता है। हालांकि पीड़िता बाल गवाह है लेकिन भरोसेमंद है, जिसने घटना के बारे में विस्तार से बताया है।
दोषी के वकील के तर्क को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि सीमन के बिना भी यदि साक्ष्य से पता चलता है कि किसी नाबालिग लड़की के पाइवेट पार्ट में किसी वस्तु या शरीर के हिस्से का प्रवेश हुआ है, तो यह यौन अपराध है।
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