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Chhath 2024: जानिए कब और कैसे मनाई जाएगी छठ पूजा, क्या है शुभ मुहूर्त?

छठ पूजा: प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का पर्व

Pannelal Gupta

Chhath 2024: छठ महापर्व षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला पर्व है यह पर्व नियम संयम और तपस्या का पर्व है जो चार दिनों तक चलता है, लेकिन इसकी तैयारी हफ्ते पहले से ही शुरू हो जाती है। छठ पूजा सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है। सूर्य देव को जीवनदाता माना जाता है और छठी मैया को संतान की देवी। इस पर्व के माध्यम से लोग प्रकृति के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं। सूर्य, जल और वायु इन तीनों तत्वों की पूजा की जाती है।

इन जगहों पर मनायी छठ पूजा?

आपको बता दें कि, छठ पर्व मूल रूप से बिहार और पूर्वांचल से शुरू हुआ है। लेकिन अब यह भारत के अलग अलग राज्यों और विदेशों में भी मनाया जाता है। बिहार और पूर्वांचलवासी ही नहीं अन्य क्षेत्रों में रहन वाले लोग भी अब छठ पर्व के प्रति आस्थावान होकर छठ व्रत करने लगे हैं। छठ एकमात्र ऐसा पर्व है जो प्रकृति की पूजा करने के साथ उससे जुड़े रहने का अनुभव कराती है।

छठ 2024 का शुभ समय

द्रिक पंचांग के अनुसार, छठ पूजा का पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है. इस साल 2024 में षष्ठी तिथि 7 नवंबर दिन गुरुवार को तड़के सुबह (पूर्वाहन) 12 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगी और 8 नवंबर दिन शुक्रवार को तड़के सुबह (पूर्वाहन) 12 बजकर 34 मिनट पर समाप्त होगी। पंचमी तिथि यानी 6 नवंबर को खरना पड़ रहा है। दिन भर निर्जला व्रत करने के बाद शाम में व्रती महिलाएं छठी मैया की पूजा करके प्रसाद ग्रहण करेंगी। इसी के बाद से लगभग 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाएगा।

नहाय खाय 5 नवंबर 2024 मंगलवार

खरना 6 नवंबर 2024 बुधवार

संध्या अर्घ्य 7 नवंबर 2024 गुरुवार

सुबह अर्घ्य 8 नवंबर 2024 शुक्रवार

नहाय खाय (5 नवंबर 2024): छठ पूजा के पहले दिन, श्रद्धालु नदी या तालाब में स्नान करते हैं और केवल शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं।

खरना (6 नवंबर 2024): दूसरे दिन, व्रती दिन भर निर्जला उपवास रखते हैं। शाम को पूजा के बाद प्रसाद के रूप में खीर, रोटी और फल खाए जाते हैं।

संध्या अर्घ्य (7 नवंबर 2024): तीसरे दिन, व्रती सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के किनारे जाकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। यह छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है।

प्रातःकालीन अर्घ्य (8 नवंबर 2024): चौथे दिन, उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जिसके बाद व्रती अपना व्रत तोड़ते हैं और प्रसाद वितरण करते हैं।

क्यों मनायी जाती छठ पूजा?

छठ मैया के बारे में कथा है कि यह ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं और सूर्यदेव की बहन हैं। छठ मैया को संतान की रक्षा करने वाली और संतान सुख देने वाली देवी के रूप में शास्त्रों में बताया गया है जबकि सूर्यदेव अन्न और संपन्नता के देवता है। इसलिए जब रवि और खरीफ की फसल कटकर आ जाती है तो छठ का पर्व सूर्य देव का आभार प्रकट करने के लिए चैत्र और कार्तिक के महीने में किया जाता है।

36 घंटे का निर्जला व्रत

हिन्दू धर्म में छठ पूजा में छठी मैया और सूर्य देवता की विधि-विधान से पूजा की जाती है. दिवाली के छह दिन बाद छठ पर्व मनाया जाता है. छठ पूजा चार दिनों तक चलता है, जिसमें शुरुआत होती है नहाय-खाय और खरना से. फिर डूबते और उगते सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है. इसमें व्रती महिलाएं नदी में कमर तक जल में डूबकर सूर्यदेवता को अर्घ्य देकर उनकी पूजा करती हैं. इसमें 36 घंटों तक निर्जला व्रत रखा जाता है, जो बेहद ही कठिन माना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठी मइया की पूजा करने से व्रती को आरोग्यता, सुख-समृद्धि, संतान सुख का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

खरना क्या होता है?

छठ महापर्व का दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। इस साल खरना 6 नवंबर 2024, बुधवार के दिन है। खरना वाले दिन व्रती महिलाएं निर्जला उपवास रखती है। शाम के समय गुड़ की खीर को पकाया जाता है और उसे रोटी पर रखकर भगवान को अर्पित करने के बाद सभी लोगों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।

पारण क्या होता है?

छठ महापर्व के चौथे और अंतिम दिन को उषा अर्घ्य कहा जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं उगते सूर्य को अर्घ्य देती है, जिसके बाद ही महिलाएं व्रत का पारण करती है, अर्थात व्रत का समापन करती हैं। पारण के बाद सभी को छठ का विशेष प्रसाद जिसे ठेकुआ कहा जाता है, लोगों को बांटा जाता है।

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